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GEOGRAPHY CHAPTER-1 ब्रह्मांड तथा ब्रह्मांड की उत्पत्ति से सम्बंधित सिद्धांत


GEOGRAPHY  CHAPTER-1   ब्रह्मांड  तथा ब्रह्मांड की उत्पत्ति से सम्बंधित सिद्धांत
 
HELLO EVERYONE WELCOME TO ANTORA ACADEMY.
 
इस चैप्टर में हम ब्रह्मांड की उत्पत्ति से सम्बंधित सिद्धांत, बिग-बैंग सिद्धांत व लार्ज  हैड्रॉन कोलाइडर, तारे:जन्म और मृत्यु (जीवन चक्र) ,सौरमंडल सूर्य से सम्बंधित कुछ विशिष्ट तथ्य, ग्रह - पृथ्वी: कुछ विविध तथ्य , प्लूटो व बौने ग्रह, उपग्रह , सुपर मून , ब्लू मून , ब्लड मून , चन्द्रमा से सम्बंधित कुछ विशिष्ट तथ्य , चन्द्रयान-1 , चन्द्रयान-2 , कृत्रिम उपग्रह , उल्काश्म व उल्कापिंड ,पुच्छल तारे या धूमकेतु , क्षुद्रग्रह या अवान्तर ग्रह का अध्ययन करेंगे
 
ब्रह्मांड -
 
मानव मस्तिष्क में एक क्रमबद्ध रूप में जब सम्पूर्ण विश्व का चित्र उभरा तो उसने इसे ब्रह्मांड (COSMOS) की संज्ञा दी।
140 में मिस्त्र-यूनानी परम्परा के प्रख्यात खगोलशास्त्री क्लाडियस टॉलमी (140 .) ने सर्वप्रथम इसका नियमित अध्ययन कर 'जियोसेंट्रिक अवधारणा' का प्रतिपादन किया।
इस अवधारणा के अनुसार, पृथ्वी ब्रह्मांड के केन्द्र में है तथा सूर्य व अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं।
1543 . में कॉपरनिकस ने जब 'हेलियोसेन्ट्रिक अवधारणा' का प्रतिपादन किया तो उसके पश्चात् ब्रह्मांड के संदर्भ में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। इस अवधारणा के तहत  1805 . में ब्रिटेन के खगोलशास्त्री हरशेल ने दूरबीन की सहायता से अंतरिक्ष का अध्ययन कर बताया कि सौरमंडल आकाशगंगा का एक अंश मात्र है
1925 . में अमेरिका के खगोलशास्त्री एडविन पी.हव्वल ने  यह स्पष्ट किया कि दृश्यपथ में आने वाले ब्रह्मांड का व्यास 250 करोड़ प्रकाश वर्ष है तथा इसके अंदर हमारी आकाशगंगा की भाँति लाखों आकाशगंगाएँ हैं। वस्तुतः ब्रह्मांड की अवधारणा में क्रमिक परिवर्तन हुए एवं इसकी उत्पत्ति की व्याख्या के संदर्भ में कई सिद्धांत भी दिए गए हैं, जिनमें निम्न प्रमुख है-
 
ब्रह्मांड की उत्पत्ति से सम्बंधित सिद्धांत 
1. बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory): जॉर्ज लैमेन्टर। 
2. साम्यावस्था सिद्धांत (Steady State Thoery):थॉमस गोल्ड एवं हर्मन बाडी। 
3. दोलन सिद्धांत (Pulsating Universe Theory) :डॉ. एलन संडेजा
 
बिग बैंग सिद्धांत : ब्रह्मांड की उत्पत्ति के सम्बंध में यह सर्वाधिक मान्य सिद्धांत है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन बेल्जियम के खगोलज्ञ  जॉर्ज लैमेन्टर ने 1960-70 . में किया था। इनके अनुसार, ब्रह्मांड लगभग 15 अरब वर्ष पूर्व एक विशालकाय अग्निपिड था. जिसका निर्माण भारी पदार्थों से हुआ। इसमें अचानक विस्फोट (ब्रह्मांडीय विस्फोट या बिग बैंग) के कारण पदार्थों का बिखराव हुआ था जिससे काले व सामान्य पदार्थ निर्मित हुए तथा उनके समूहन से अनेक ब्रह्मांडीय पिण्डों का सृजन हुआ। इनके चारों ओर सामान्य पदार्थों का जमाव हुआ. जिससे उनके आकार में वृद्धि हुई। इस प्रकार, आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ। इनमें पुनः विस्फोट से निकले पदार्थों के समूहन से बने असंख्य पिंड तारे कहलाए।
इसी प्रक्रिया से कालान्तर में ग्रहों व उपग्रहों का भी निर्माण हुआ। इस प्रकार, 'विग बैंग' परिघटना से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई तथा तभी से ब्रह्मांड में निरन्तर विस्तार जारी है। इसके साक्ष्य के रूप में आकाशगंगाओं के बीच बढ़ती दूरी का संदर्भ दिया जाता है।
ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने के लिए यूरोपियन सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च, ' सर्न (CERN) ने 30 मार्च, 2010 को जेनेवा में पृथ्वी की सतह से 100 फीट नीचे एवं 27 किमी. लंबी सुरंग में लार्ज  हैड्रान कोलाइडर हिग्स बोसॉन से मिलता-जुलता सव-एटोमिक पार्टिकल की खोज करने में सफलता हासिल की है। इससे ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने के विषय में महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है। 14 फरवरी 2013 को लार्ज हैड्रन कोलाइडर को बन्द कर दिया गया था, परन्तु इसे जू, 2015 से पुनः प्रारम्भ कर दिया गया है।
ब्रह्मांड में अनुमानतः 100 अरब आकाशगंगाएँ (Galaxy) हैं। आकाशगंगा असंख्य तारों का एक विशाल पुंज होता है, जिसमें एक केन्द्रीय बल्ज (Bulge) एवं तीन घूर्णनशील भुजाएँ होती हैं। ये तीनों घूर्णनशील भुजाएँ अनेक तारों से निर्मित होती है। बल्ज, आकाशगंगा के केन्द्र को कहा जाता है। यहाँ तारों का संकेन्द्रण सर्वाधिक होता है। प्रत्येक आकाशगंगा में अनुमानत: 100 अरब तारे होते हैं।
लिमन अल्फा ब्लॉब्स अमीबा के आकार की एवं 20 करोड़ प्रकाश वर्ष चौड़ी विशालकाय आकाशगंगाओं और गैसों का समूह है। इस विशालकाय संरचना की आकाशगंगाएँ ब्रह्मांड में उपस्थित अन्य आकाशगंगाओं की अपेक्षा एक-दूसरे से चार गुनी ज्यादा नजदीक है।
एंड्रोमेडा हमारी आकाशगंगा के सबसे निकट की आकाशगंगा है, जो हमारी आकाशगंगा से 2.2 मिलियन प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। हमारी आकाशगंगा को मंदाकिनी कहा जाता है। इसकी आकृति 'सर्पिल' (Spiral) है।
इस प्रकार की आकाशगंगा में नए व पुराने तारे सम्मिलित होते हैं। मिल्की वे रात के समय दिखाई पड़ने वाले तारों का समूह है, जो हमारी आकाशगंगा का ही भाग है।
ऑरियन नेबुला हमारी आकाशगंगा के सबसे शीतल और चमकीले तारों का समूह है, हमारी आकाशगंगा का व्यास एक लाख प्रकाश वर्ष है।
सूर्य हमारी आकाशगंगा का एक तारा है। यह आकाशगंगा की परिक्रमा 200 मिलियन (बीस करोड़) वर्षों से भी अधिक समय में कर रहा है।
प्लेनेमस सौरमंडल से बाहर बिल्कुल एक जैसे दिखने वाले जुड़वा पिंडों का एक समूह है।
साइरस या डॉग स्टार पृथ्वी से 9 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है तथा सूर्य के दोगुने द्रव्यमान वाला तारा है। यह सूर्य से 20 गुना अधिक चमकीला है एवं यह रात्रि में दिखाई पड़ने वाला सर्वाधिक चमकीला तारा है। 
प्रॉक्सिमा सेंचुरी सूर्य का निकटतम तारा है। यह सूर्य से 4.3 प्रकाश वर्ष दूर है।
गैलीलिओ ने सन् 1609 में पहली बार दूरबीन का इस्तेमाल करते हुए रात में आसमान का अध्ययन किया। उन्होंने ऐसे तारों की पहचान की जिन्हें नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता है।
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 4 अगस्त. 2015 को राजस्थान के उदयपुर के फतेहसागर स्थित सौरकोलाइडर (LHC) नामक ऐतिहासिक महाप्रयोग सफलतापूर्वक किया। इसमें 1000 से भी अधिक वैज्ञानिक शामिल थे। इसमें प्रोटॉन बीमों को लगभग प्रकाश की गति से टकराया गया तथा 'हिग्स बोसॉन' के निर्माण का प्रयास किया गया। इस महाप्रयोग के माध्यम से ब्रह्मांड की उत्पत्ति सम्बंधित वैसी अनसुलझी अवधारणाओं की परख की जाएगी, जिन्हें अब तक 'डार्क मैटर', 'डार्क एनर्जी', "एक और डाइमेंशन' 'गॉड पार्टिकल' के नाम से पुकारा जाता रहा है।
वस्तुत: इस महाप्रयोग के माध्यम से वैज्ञानिक 15 अरब वर्ष पहले हुई उस ब्रह्मांडीय घटना को प्रयोगशाला में दोहराना चाहते हैं, जिसे विज्ञान की दुनिया में 'बिग बैंग' के नाम से जाना जाता है। ऐसी अवधारणा है कि 'गॉड पार्टिकल' के नाम से जाना जाने वाला 'हिग्स बोसॉन' में ही ब्रह्मांड के रहस्य छिपे हैं, क्योंकि इसे सबसे बेसिक यूनिट माना जाता है।
उपरोक्त महाप्रयोग द्वारा सर्न (CERN) ने अन्ततः 4 जुलाई, 2012 को  वेधशाला में एशिया की सबसे बड़ी सौर दूरबीन मल्टी एप्लिकेशन सोलर टेलीस्कोप (मास्ट) का शुभारम किया। इस दूरबीन से सूर्य के प्रति मिनट डिजिटल वेलोसिटी की तस्वीरें प्राप्त कर सूर्य के बारे में अधिक-से-अधिक जानकारी प्राप्त की जा सकेगी तथा इससे दिन में आकाशीय गतिविधियों पर भी नजर रखी जा सकती है। चीन विश्व की सबसे बड़ी रेडियो दूरबीन 'फास्ट' (फाइव हंड्रेड मीटर अपार्चर रिफयरिकल रेडियो टेलीस्कोप) का निर्माण कर रहा है। इस दूरबीन के निर्मित होने के पश्चात् नासा की 'केपलर' दूरबीन पीछे छूट जाएगी।
 
तारे: जन्म और मृत्यु (जीवनचक्र) -
 
आकाशगंगा के घूर्णन से ब्रह्मांड में विद्यमान गैसों का मेघ प्रभावित होता है तथा परस्पर गुरुत्वाकर्षण के कारण उनके केन्द्र में नाभिकीय संलयन शुरू होता है व हाइड्रोजन के हीलियम में बदलने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। इस अवस्था में यह तारा बन जाता है।
केन्द्र का हाइड्रोजन समाप्त होने के कारण तारे का केन्द्रीय माग संकुचित व गर्म हो जाता है, किन्तु इसके बाह्य परत में हाइड्रोजन का हीलियम में बदलना जारी रहता है। धीरे-धीरे तारा ठंडा होकर लाल रंग का दिखाई देने लगता है, जिसे रक्त दानब (Red Giants) कहा जाता है। इसके बाद हीलियम ,कार्बन में और कार्बन भारी पदार्थों जैसे- लोहा में परिवर्तित होने लगता है।
इसके फलस्वरूप तारे में तीन विस्फोट होता है, जिसे सुपरनोवा विस्फोट (Supermova) कहते हैं।
यदि तारों का द्रव्यमान 1.4 Ms (जहाँ Ms सूर्य का द्रव्यमान है) से कम होता है तो वह अपनी नाभिकीय ऊर्जा को खोकर श्वेत वामन (White Dwarf) में बदल जाता है। जिसे जीवाश्म तारा (Foogil Sur) भी कहा जाता है।
श्वेत वामन ठंडा होकर काला वामन (Black Dwarf) में परिवर्तित हो जाता है।
1.4 Ms को चन्द्रशेखर सीमा (Chandrashekhar limit) कहते हैं। इससे अधिक द्रव्यमान होने पर, मुक्त घूमते इलेक्ट्रॉन अत्यधिक वेग पाकर नाभिक को छोड़कर बाहर चले जाते हैं तथा न्यूट्रॉन बचे रह जाते हैं। इस अवस्था को न्यूट्रॉन तारा या पल्सर कहते हैं।
न्यूट्रॉन तारा भी असीमित समय तक सिकुड़ता चला जाता है अर्थात् न्यूट्रॉन तारे में अत्यधिक परिमाण में द्रव्यमान अंततः एक ही बिन्दु पर सकेन्द्रित हो जाता है। ऐसे असीमित घनत्व के द्रव्य युक्त पिंड को कृष्ण छिदृ या ब्लैकहोल कहते हैं। इस ब्लैकहोल से किसी भी द्रव्य, यहाँ तक कि प्रकाश का पलायन भी नहीं हो सकता। इसीलिए ब्लैकहोल को देखा नहीं जा सकता।
ब्लैकहोल की संकल्पना को प्रतिपादित करने का श्रेय "जॉन कीलर' को दिया जाता है।
रॉग ब्लैकहोल दो या अधिक ब्लैकहोलों का समूह है। क्वेसर एक चमकीला खगोलीय पिड है, जो अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित करता है।
नासा ने अब तक पहचाने गए सबसे पुराने तारे की खोज की है. जिसे 'केप्लर 444' नाम दिया गया है।
 
सौरमंडल -
 
सूर्य एवं उसके चारों ओर घूमने वाले करने वाले ग्रह 172 उपग्रह, धूमकेतु, उल्काएँ एवं क्षुद्रग्रह संयुक्त रूप से सौरमंडल कहलाते है।
सूर्य जो कि सौरमंडल का जन्मदाता है, एक तारा है, जो ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करता है। सूर्य की ऊर्जा का स्रोत, उसके केन्द्र में हाइड्रोजन परमाणुओं का नाभिकीय संलयन द्वारा हीलियम में बदलना है। 
 
सूर्य की संरचना :
 
सूर्य का जो भाग हमें आँखों से दिखाई देता है, उसे प्रकाशमंडल (Thorosphere) कहते हैं।
सूर्य का वाहतम भाग जो केवल सूर्यग्रहण के समय दिखाई देता है. कोरोना (Corona) कहलाता है।
कभी-कभी प्रकाशमंडल से परमाणुओं का तूफान इतनी तेजी से निकलता है कि सूर्य की आकर्षण शक्ति को पार कर अंतरिक्ष में चला जाता है। सौर ज्वाला (Solar Flares) कहते हैं। जब यह पृथ्वी  के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो हवा के कणों से टकराकर रंगीन प्रकाश (Aurora Light) उत्पन्न करता है, जिसे उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव पर देखा जा सकता है। उत्तरी ध्रुव पर इसे  अरौरा बोरियालिस एवं दक्षिणी ध्रुव पर अरोरा ऑस्ट्रलिस कहते हैं।
सौर ज्वाला जहां से निकलती है, वहाँ काले धबे से दिखाई पड़ते हैं। इन्हें ही सौर-कलंक (Sun Spots) कहते हैं। ये सूर्य के अपेक्षाकृत उठे भाग हैं, जिनका तापमान 1500°C होता है। सौर कलंक प्रबल चुम्बकीय विकिरण उत्सर्जित करता है. जो पृथ्वी के बेतार संचार व्यवस्था को बाधित करता है। इनके बनने-बिगड़ने की प्रक्रिया औसतन ।। वर्षों में पूरी होती है, जिसे सौर-कलंक चक्र (Sunspot-Cycle) कहते हैं।
सूर्य के कोरोना का अध्ययन एवं धरती पर इलेक्ट्रॉनिक संचार में व्यवधान पैदा करने वाली सौर-लपटों की जानकारी हासिल करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन 'इसरो' ने आदित्य-1 उपग्रह का निर्माण किया। इसका प्रक्षेपण वर्ष 2017-20 के दौरान किया ।
आदित्य-1 उपग्रह सोलर कॅरोनोग्राफ यंत्र की मदद से सूर्य के सबसे बाह्य भाग का अध्ययन करेगा। 

 सूर्य से सम्बंधित कुछ विशिष्ट तथ्य

 

 

पृथ्वी से न्यूनतम दूरी 

 

पृथ्वी से अधिकतम दूरी

 

पृथ्वी से माध्य दूरी 

 

सूर्य का व्यास



तलीय गुरूत्व

 

 केन्द्रीय घनत्व

 

आयतन

 

द्रव्यमान

 

रासायनिक संघटन






फोटोस्फेयर ताप (सतह का ताप) 

 

केन्द्र का ताप 

 

सूर्य धब्बों का ताप 



 

14.70 करोड़ किमी.

 

15.21 करोड़ किमी.

 

14.98 करोड़ किमी.

 

1392000 किमी.



पृथ्वी से 28 गुना

 

100 ग्राम प्रति घन सेमी.

 

पृथ्वी से 13 लाख गुना



पृथ्वी से 3.32,000 गुना

 

 हाइड्रोजन-71%,

 

 हीलियम 26.5%,

 

अन्य तत्व-2.5%



-

 

6000°C

 

- 15 मिलियन °C

 

- 1500°C





घूर्णन अवधि



सूर्य की आयु 

 

सामान्य तारे का संभावित जीवन काल 

 

सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश पहुँचने में लगा समय 

 

सूर्य के प्रकाश की चाल 

 

1 प्रकाश वर्ष (सूर्य के प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गई दूरी) 

 

1 पारसेक (दूरी की सबसे बड़ी इकाई)

25.38 दिन (भूमध्य रेखा के सापेक्ष), 33 दिन (ध्रुवों के सापेक्ष)

 

5 बिलियन वर्ष (लगभग) 

 

10 बिलियन वर्ष (लगभग)

 

8 मिनट, 20 सेकेंड

 

3 x 10* m/s

 

(3 लाख किमी./सेकेंड) 9.45 x 103 किमी.

 

3.6 प्रकाश वर्ष

ग्रह -
 
तारों की परिक्रमा करने वाले प्रकाश रहित आकाशीय पिण्ड को ग्रह कहा जाता है। ये सूर्य से ही निकले हुए पिंड हैं तथा सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
इनका अपना प्रकाश नहीं होता. अत: ये सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं व ऊष्मा प्राप्त करते है। सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा पश्चिम से पूर्व दिशा में करते है, परन्तु शुक्र व अरूण इसके अपवाद है तथा ये सूर्य के चारों और पूर्व से पश्चिम दिशा में परिभ्रमण करते हैं। 
 
आंतरिक ग्रहों के अंतर्गत बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल आते हैं। सूर्य से निकटता के कारण ये भारी पदार्थों से निर्मित हुए हैं
 
बाह ग्रहों में वृहस्पति, शनि, अरूण व वरूण आते हैं, जो हल्के पदार्थों से बने हैं। आकार में बड़े होने के कारण इन ग्रहों को 'ग्रेट प्लेनेट्स' भी कहा जाता है।
सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह वृहस्पति और सबसे छोटा बुध है। 
 
सौरमंडल के ग्रहों का सूर्य से दूरी के बढ़ते क्रमों में विवरण निम्नानुसार है
 
1. बुध (Mercury) :
 
बुध सूर्य का सबसे निकटतम तथा सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है।
यह 88 दिनों में सूर्य की परिक्रमा पूर्ण कर लेता है। सूर्य और पृथ्वी के बीच में होने के कारण बुध एवं शुक्र को अन्तर्ग्रह (Interior Planets) भी कहते हैं।
वायुमंडल के अभाव के कारण बुध पर जीवन सम्भव नहीं है, क्योंकि यहाँ दिन अति गर्म व रातें बर्फीली होती हैं।
इसका तापान्तर सभी ग्रहों में सबसे अधिक (560C) है। बुध का एक दिन पृथ्वी के 90 दिन के बराबर होता है।
परिमाण (mass) में यह पृथ्वी का 18वाँ भाग है। बुध के सबसे पास से गुजरने वाला कृत्रिम उपग्रह मैरिनर-10 था. जिसके द्वारा लिए गए चित्रों से पता चलता है कि इसकी सतह पर कई पर्वत, क्रेटर और मैदान है। इसका कोई भी उपग्रह नहीं है।
नासा द्वारा वर्ष 2004 में बुध ग्रह के लिए भेजा गया मानव रहित अंतरिक्ष यान 'मैसेन्जर' 30 अप्रैल, 2015 को बुध ग्रह की सतह से टकराकर नष्ट हो गया। 
 
2. शुक्र (Venus) :
 
यह सूर्य से निकटवर्ती दूसरा ग्रह है तथा सूर्य की परिक्रमा 225 दिनों में पूरी करता है। यह ग्रहों की सामान्य दिशा के विपरीत सूर्य की पूर्व से पश्चिम दिशा में परिकमण करता है।
यह पृथ्वी के सर्वाधिक नजदीक है, जो सूर्य व चन्द्रमा के बाद सबसे चमकीला दिखाई पड़ता है। इसे 'सांझ का तारा' या 'भोर का तारा' भी कहते हैं. क्योंकि यह शाम को पश्चिम दिशा में तथा सुबह पूरब दिशा में दिखाई देता है।
आकार व द्रव्यमान में पृथ्वी से थोड़ा ही कम होने के कारण इसे 'पृथ्वी की बहन' कहा जाता है।
शुक्र के वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड 90-95% तक है। इस कारण यहाँ प्रेशर कुकर की दशा (PrESSITE Cooker Condition) उत्पन्न होती है।
बुध के समान इसका कोई भी उपग्रह नहीं है। 
 
3. पृथ्वी (Earth):
 
यह सूर्य से दूरी के क्रम में तीसरा ग्रह है तथा सभी ग्रहों में आकार की दृष्टि से पांचवां स्थान रखता है।
यह शुक्र और मंगल ग्रह के बीच स्थित है। यह अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर भ्रमण करती है।
यह अपने अक्ष पर 231/2%' झुकी हुई है। इसका एक परिक्रमण लगभग 365 दिन में पूरा होता है।
इसकी सूर्य से औसत दूरी लगभग 15 करोड़ किमी. है।
चारों ओर मध्यम तापमान, ऑक्सीजन और प्रचुर मात्रा में जल की उपस्थिति के कारण यह सौरमंडल का अकेला ऐसा ग्रह है, जहाँ जीवन है।
अंतरिक्ष से यह जल की अधिकता के कारण नीला दिखाई देता है। अतः इसे 'नीला ग्रह' भी कहते हैं।

पृथ्वी  से सम्बंधित कुछ विशिष्ट तथ्य

 

 

आकृति

 

अक्षधुवीय व्यास

 

भूमध्यरेखीय व्यास







जलीय भाग

 

स्थलीय भाग

 

औसत घनत्व

 

पृथ्वी की अनुमानित आयु

 

धरातल के क्षेत्रफल

 

परिभ्रमण समय

 

परिक्रमण समय

 

.

 

परिक्रमण वेग

 

परिक्रमण मार्ग की लंबाई

 

सूर्य से न्यूनतम दूरी

 

सूर्य से अधिकतम दूरी

 

सूर्य से माध्य दूरी

 

सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश पहुंचने में लगा समय

 

चंद्रमा से दूरी

 

समुद्रतल से स्थल को सर्वाधिक ऊँचाई

 

समुद्रतल से सागर की सर्वाधिक गहराई

-जियॉड (Geoid)

 

-12.714किमी.

 

-12.756 किमी.







-71%

 

-29%

 

-5.52 (पानी के घनत्व के सापेक्ष)

 

-4.6 बिलियन वर्ष

 

-51.1 करोड़ वर्ग किमी.

 

-23 घंटे 56 मिनट 4 सेकेंड

 

-365 दिन 5 घंटे 48 मि. 46 से.

 

 

29.8 किमो./सेकेंड

 

 - 96 करोड़ किमी.

 

-14.70 करोड़ किमी.

 

-15.21 करोड़ किमी.

 

-14.98 करोड़ किमी.

 

-8 मिनट, 20 सेकेंड

 

-384000 किमी.

 

-8848 मो. (माउंट एवरेस्ट)

 

-11033 मी. (मैरियाना ट्रेच)

 
4. मंगल (Mars) :
 
यह सूर्य से दूरी के क्रम में पृथ्वी के बाद चौथा ग्रह है।
यह सूर्य की परिक्रमा 687 दिनों में पूरी करता है। मंगल की सतह लाल होने के कारण इसे 'लाल ग्रह' भी कहते हैं।
इस ग्रह पर वायुमंडल अत्यंत विरल है।
इसकी घूर्णन गति पृथ्वी के घूर्णन गति के समान है
फोबोस और डीमोस मंगल के दो उपग्रह हैं । 'डीमोस' सौरमंडल का सबसे छोटा उपग्रह है।
इस ग्रह का सबसे ऊंचा पर्वत 'निक्स ओलंपिया' है, जो एवरेस्ट से तीन गुना ऊँचा है।
 
मंगल से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य
 
सूर्य से दूरी : 22.79 करोड़ किमी.
 
व्यास : 6794 किमी.
 
सूर्य की परिक्रमा : 686.98 दिन
 
घूर्णन गति : 24 घंटे, 37 मिनट, 23 सेकेण्ड
 
घनत्व : 3.93 ग्राम/सेमी. (पृथ्वी का 0.71)
 
गुरूत्वाकर्षण : पृथ्वी का 0.38
 
सतह तापमान : -87C से -5c
 
उपग्रह : 2 (फोबोस व डीमोस)
 
वायुमंडल : कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, आर्गन
 
अक्षीय झुकाव : 25 DEGREE
 
मानवीय मिशन : मैरिनर-4, मार्सपाथ पाइंडर, मार्स ओडीसी, फिनिक्स, मार्स क्यूरियोसिटी रोवर, मावेन,मंगलयान (भारत)
 
पृथ्वी के अलावा यह एकमात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन की संभावना व्यक्त की जा रही है
 
सर्वप्रथम मार्स ओडेसी नामक कृत्रिम उपग्रह से यहाँ बर्फ छत्रकों और हिमशीतित जल की सूचना मिली थी।
मंगल पर जीवन की संभावना तथा उसके वातावरण के अध्ययन के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने नवम्बर, 2011 में मार्स साइंस लैबोरेटरी (MSL) या मार्स क्यूरियोसिटी रोवर को प्रक्षेपित किया।
6 अगस्त, 2012 को नासा का यह अंतरिक्षयान मंगल ग्रह पर 'गेल क्रेटर' नामक स्थान में पहुँचा। वर्तमान समय में यह नासा के 'डीप स्पेस नेटवर्क' को विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक संदेश, फोटो व अन्य सूचनाएँ इस भेज रहा है।
18 दिसम्बर, 2015 को क्यूरियोसिटी रोवर ने मंगल ग्रह पर सिलिका का भंडार खोजा है।
2006 से सक्रिय अंतरिक्ष यान 'मार्स रिकॉनेसिएंश आर्बिटर' (MRO) से ली गई तस्वीरों के अध्ययनों के आधार पर नासा ने 28 सितम्बर, 2015 को मंगल ग्रह पर जल-प्रवाह की भी घोषणा की।
नासा द्वारा इस बात की पुष्टि की गई है कि मंगल पर खारे पानी की बहती धाराएँ उपस्थित हैं।
मंगल ग्रह पर वायुमण्डल के अध्ययन के लिए नासा ने एक अन्य मिशन 'मावेन' (Mars Atmosphere and Volatile Evolution Mission, MAVEN) 18 नवम्बर, 2013 को प्रक्षेपित किया था. जो 22 सितम्बर,2014 को मंगल की कक्षा में पहुँच गया।
नासा ने अगले 25 वर्षों में जर्नी टू मार्स' मिशन के तहत मंगल ग्रह पर मानव बस्तियाँ बसाने की त्रिस्तरीय योजना तैयार करने की घोषणा की है।
 
मंगल ग्रह के वैज्ञानिक अन्वेषण के लिए भारत का प्रथम अभियान 'मार्स आर्बिटर मिशन' (MOM) या 'मंगलयान है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, इसरो (ISRO) द्वारा मंगलयान का सफल प्रक्षेपण 5 नवम्बर 2013 को किया गया।
यह प्रक्षेपण सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र, श्री हरिकोटा से धुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV C-25) के माध्यम से किया गया, जो मंगल ग्रह की कक्षा में 24 सितम्बर, 2014 को पहुँचा। इस सफलता से भारत 'मार्शियन इलीट क्लब' (अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ) में शामिल हो गया है। '
टाइम पत्रिका' ने भी मंगलयान को वर्ष 2014 के 25 सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में जगह देते हुए इसे 'द सुपरस्मार्ट स्पेसक्राफ्ट' की संज्ञा दी।
 
इसरो के अनुसार, मंगलयान का प्रमुख उद्देश्य पृथ्वी नियंत्रित मुक्ति चालन, मंगल की कक्षा में प्रवेश तथा कक्षीय चरण में सुरक्षित रहने एवं कार्य निष्पादन की क्षमता के साथ अंतरग्रहीय अंतरिक्षयान का डिजाइन व निर्माण करना था। इसके वैज्ञानिक उद्देश्यों में मंगल की सतह तथा उसके वातावरण का अन्वेषण शामिल है। मंगल ग्रह की भौगोलिक जलवायवीय एवं वायुमण्डलीय प्रक्रियाओं के अध्ययन के लिए मंगलयान पर पाँच वैज्ञानिक नीति भार (Payloads ) स्थापित किए गए हैं। मंगलयान ने 24 सितम्बर, 2015 को मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक अपना एक वर्ष पूरा कर लिया ।
 
5. बृहस्पति (Jupiter) :
 
यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है, जो सूर्य की परिक्रमा 11.9 वर्ष में करता है। सौरमंडल में इसके 67 उपग्रह हैं, जिनमें 'गैनिमीड' सबसे बड़ा है।
यह सौरमंडल का सबसे बड़ा उपग्रह है 
आयो, यूरोपा, कैलिस्टो,अलमथिया आदि इसके अन्य उपग्रह हैं।
बृहस्पति को लघु सौर-तंत्र (Miniature Solar System) भी कहते हैं।
इसके वायुमंडल में हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन और अमोनिया जैसी गैसें पाई जाती हैं। यहाँ का वायुमंडलीय दाब पृथ्वी के वायुमंडलीय दाब की तुलना में 1 करोड़ गुना अधिक है। यह तारा और ग्रह दोनों के गुणों से युक्त होता है, क्योंकि इसके पास स्वयं की रेडियो ऊर्जा है।
 
6. शनि (Saturn) :
 
यह आकार में दूसरा बड़ा ग्रह है। यह सूर्य की परिक्रमा 29.5 वर्ष में पूरी करता है।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता या रहस्य इसके मध्यरेखा के चारों ओर पूर्ण विकसित वलयों का होना है, जिनकी संख्या 7 है। यह वलय अत्यंत छोटे-छोटे कणों से मिलकर बने होते हैं, जो सामूहिक रूप से गुरुत्वाकर्षण के कारण इसकी परिक्रमा करते हैं।
शनि को 'गैसों का गोला' (Globe of Gases) एवं गैलेक्सी समान ग्रह (Galaxy Like Planet) भी कहा जाता है। आकाश में यह ग्रह पीले तारे के समान दृष्टिगत होता है । इसके वायुमंडल में भी  बृहस्पति की तरह हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन और अमोनिया य गैसे मिलती हैं।
अब तक इसके 62 उपग्रहों का पता लगाया जा चुका है।
टाइटन शनि का सबसे बड़ा उपग्रह है जो आकार में बुध ग्रह के लगभग बराबर है।   यह नारंगी रंग का है। टाइटन पर वायुमडल और गुरुत्वाकर्षण दोनों बराबर हैं।
इसके अन्य प्रमुख उपग्रह मीमांसा, एनसी लाडू, टेथिस ,डीआन, रीया, हाइपेरियन, इपापेटस और फोबे हैं । इसमें फोबे शनि की कक्षा में घूमने के विपरीत दिशा में परिक्रमा करता है। शनि अंतिम ग्रह है जिसे आँखों से देखा जा सकता है।
 
7. अरूण (Uranus) :
 
इसकी खोज 1781 . में सर 'विलियम हरशेल' द्वारा की गई। यह सौर मंडल का सातवाँ तथा आकार में तृतीय ग्रह है। अधिक अक्षीय झुकाव के कारण इसे 'लेटा हुआ ग्रह' भी कहते है।
यह सूर्य को परिक्रमा 84 वर्षो में पूरा करता है। यह भी शुक्र ग्रह की भाँति ही ग्रहों की सामान्य दिशा के विपरीत पूर्व से पश्चिम दिशा में सूर्य के चारों ओर परिभ्रमण करता है।
इस ग्रह पर वायुमंडल बृहस्पति और शनि को ही भाँति काफी सघन है. जिसमें हाइड्रोजन, होलियम, मीथेन एवं अमोनिया हैं। दूरदर्शी से देखने पर यह हरा दिखाई देता है। सूर्य से दूर होने के कारण यह काफी ठंडा है।
शनि की भाँति अरूण के भी चारों ओर वलय है, जिनकी संख्या 5 हैं। ये हैं- अल्फा, बीटा,गामा, डेल्टा और इपसिलान। इसके 27 उपग्रह हैं।
अरूण पर सूर्योदय पश्चिम दिशा में एवं सूर्यास्त पूरब की दिशा में होता है। ध्रुवीय प्रदेश में इसे सूर्य से सबसे अधिक ताप और प्रकाश मिलता है।
 
8. वरूण (Neptune) :
 
इसकी खोज जर्मन खगोलशास्त्री 'जोहान गाले' ने की। यह 165 वर्ष में सूर्य की परिक्रमा पूरा करता है। यहाँ का वायुमंडल अति घना है इसमें हाइड्रोजन, होलियम, मीथेन और अमोनिया विद्यमान रहती हैं। यह ग्रह हल्का पीला दिखाई देता है। इसके 13 उपग्रह हैं । इनमें ट्टिटोन व मेरीड प्रमुख हैं।
 
प्लूटो (Pluto)
 
यम या कुबेर (प्लूटो) की खोज 1930 . में 'क्लाइड टॉम्बैग' ने की थी तथा इसे सौरमंडल का नौवाँ एवं सबसे छोटा ग्रह माना गया था परंतु 24 अगस्त. 2006 में चेक गणराज्य के प्राग में हुए इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (IAU) के सम्मेलन में वैज्ञानिकों ने इससे ग्रह का दर्जा छीन लिया।
सम्मेलन में 75 देशों के 2500 वैज्ञानिकों ने ग्रहों की नई परिभाषा दी उनके अनुसार ऐसा ठोस पिंड जो अपना गुरूत्व करने लायक विशाल हो, गोलाकार हो एवं सूर्य का चक्कर काटता हो, ग्रहों के दर्जे में आएगा। साथ ही, इसकी कक्षा पड़ोसी ग्रह के रास्ते में नहीं होनी चाहिए
प्लूटो के साथ समस्या यह हुई कि उसकी कक्षा वरुण (नेपच्यून) की कक्षा (ऑरबिट) से ओवरलैप करती है।। सीरीस, शेरॉन (Charon) और इरोस (2003 यूबी-313/जेना) को ग्रह मानने के विचार को भी अस्वीकृत कर दिया। नई परिभाषा में इन चारों को बौने ग्रह (Dwarf Planet) का दर्जा दिया गया है। इस प्रकार, अब सौरमंडल में मात्र 8 ग्रह रह गए हैं।
 
नासा द्वारा सौर प्रणाली की बाह्य सीमाओं पर अवस्थित ड्वार्फ ग्रह प्लूटो तथा इसके चन्द्रमाओं एवं क्षुद्रग्रह बहुल क्षेत्र "क्यूपर बेल्ट' के अध्ययन हेतु भेजा गया अंतरिक्ष अन्वेषण यान 'न्यू होराइजंस' जुलाई, 2015 में अपनी यात्रा पूरी कर प्लूटो के निकट पहुंचा। यह प्लूटो और इसके पाँच चन्द्रमाओं (शेरॉन, हाइड्रा, निक्स, कार्बेरोस एवं स्टाइक्स) का अन्वेषण कर आँकड़े और चित्र पृथ्वी पर संप्रेषित कर रहा है।


 
ग्रहों से सम्बंधित कुछ विशिष्ट तथ्य

 

आकार के अनुसार ग्रहों का अवरोही क्रम

 

1. बृहस्पति 2. शनि  3.अरूण  4. वरूण  5. पृथ्वी  6. शुक्र 7.मंगल  8. बुध

 

द्रव्यमान के अनुसार ग्रहों का अवरोही क्रम

 

1. बृहस्पति   2. शनि 3. वरूण 4. अरूण 5. पृथ्वी 6. शुक्र 7. मंगल 8. बुध



घनत्व के अनुसार ग्रहों का अवरोही क्रम

 

1. बृहस्पति 2. शनि 2. शुक्र 3. वरूण 4. अरूण 5. पृथ्वी 6. शुक्र 7. मंगल 8. बुध

 

टेरेस्ट्रीयल ग्रह

 

1. बुध 2. शुक्र 3. पृथ्वी 4. मंगल

 

जोबियन ग्रह

 

1. बृहस्पति 2. शनि 3. अरूण 4. वरूण

 

दूरी के अनुसार ग्रहों का आरोही क्रम

 

1. बुध  2. शुक्र 3. पृथ्वी 4. मंगल 5. बृहस्पति 6. शनि 7. अरूण 8. वरूण

 

परिक्रमण अवधि के अनुसार ग्रहों का आरोही क्रम

 

1. बुध 2. शुक्र 3. पृथ्वी 4. मंगल 5. बृहस्पति 6. शनि 7. अरूण 8. वरूण

 

परिक्रमण वेग के अनुसार ग्रहों का अवरोही क्रम

 

1. बुध 2. शुक्र 3. पृथ्वी 4. मंगल 5. बृहस्पति 6. शनि 7. अरूण 8. वरूण


उपग्रह 
 
वे आकाशीय पिंड है, जो अपने-अपने ग्रहों की परिक्रमा करते है तथा अपने ग्रह के साथ-साथ सूर्य की भी परिक्रमा करते है। ग्रहों की भाँति इनकी भी अपनी चमक नहीं होती, अतः ये भी सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं।
ग्रहों के समान उपग्रहों का परिक्रमा पथ भी 'पावलयाकार" (Parabolic) होता है।
बुध और शुक्र का कोई उपग्रह नहीं है
सबसे अधिक उपग्रह बृहस्पति के है।
पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चन्द्रमा है। 

चन्द्रमा से सम्बंधित कुछ विशिष्ट तथ्य

 

 

पृथ्वी से माध्य दूरी

 

पृथ्वी से अधिकतम दूरी (अप-भू दूरी)

 

पृथ्वी से न्यूनतम दूरी (उप-भू दूरी)

 

पृथ्वी के चारों ओर घूमने की अवधि (परिभ्रमण काल)

 

चन्द्रमा की घूर्णन अवधि (अपने अक्ष पर)

 

चन्द्रमा पर वायुमंडल

 

चन्द्रमा का व्यास

 

चन्द्रमा का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान के अनुपात में

 

घनत्व (पानी के सापेक्ष)

 

घनत्व (पृथ्वी के सापेक्ष)

 

चन्द्रमा की सतह का अदृश्य भाग

 

चन्द्रमा के उच्चतम पर्वत की ऊँचाई

 

-384,365 किमी.

 

-4.06.000 किमी.

 

 -3 64,000 किमी.

 

-27 दिन 7 घंटे 43 मिनट, 11.47 सेकेंड 

 

-27 दिन 7 घंटे 43 मिनट, 11.47 सेकेंड

 

 -अनुपस्थित

 

-3476 किमी.

 

-1: 81.30

 

-3.34

 

-0.6058

 

-0.41 (41%)

 

-35.000 फीट ; लीबनिट्ज पर्वत, जो कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित है।

 


 


 
सुपर मून:
 
 
चन्द्रमा एवं पृथ्वी के बीच की दूरी औसतन 384,000 किमी. है। चूंकि चन्द्रमा परवलयाकार कक्षा में पृथ्वी को परिक्रमा करता है, इसी कारण पृथ्वी एवं चन्द्रमा की दूरी बदलती रहती है।
'सुपर मून' वह स्थिति है जब चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। इसे 'पेरिजी फुल मून' भी कहा जाता है| इसमें चन्द्रमा 14% ज्यादा बड़ा एवं 30% अधिक चमकीला दिखाई पड़ता है।
27 सितम्बर, 2015 को विश्व के अनेक भागों में सुपर मून चन्द्रग्रहण की परिघटना  देखी गई. जिसमें सुपर मून व चन्द्रग्रहण दोनों घटनाएँ एक साथ घटित हुई। ऐसा सन् 1982 के बाद पहली बार हुआ। 
 
ब्लू मून -
 
 
कैलेन्डर माह में जब दो पूर्णिमाएँ हो तो दूसरी पूर्णिमा का चाँद 'ब्लू मून' कहलाता है। इसका नीले रंग से कोई सम्बंध नहीं है।
इसका मुख्य कारण दो पूर्णिमाओं के बीच के अंतरल का 31 दिनों से कम होना है। ऐसा हर दो-तीन साल पर होता है। जुलाई, 2015 में ब्लू मून की स्थिति देखी गई।
 
ब्लड मून:
 
 
लगातार चार पूर्ण चन्द्रग्रहणों (Lunar Tetrad) को 'ब्लड मून' (Blood Moon) की संज्ञा दी गई है। चार पूर्ण चन्द्रग्रहणों को 'टेटाड' भी कहा जाता है। जब पृथ्वी, चन्द्रमा पर पूर्ण छाया डालता है तब पूर्ण चन्द्रग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती है। इसमें चन्द्रमा का रंग लाल हो जाता है। इसे ही 'ब्लड मून' (रक्त चन्द्र) कहा जाता है। पूर्ण चन्द्रग्रहण दुर्लभ होते हैं। सामान्यतया तीन चन्द्रग्रहणों में से एक पूर्ण चन्द्रग्रहण की घटना होती है।
किसी स्थान पर एक दशक में चार से पाँच ग्रहण को खगोलीय घटना घटित होती है।
 
चन्द्रयान-1 -
 
भारत ने 22 अक्टूबर, 2008 को आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 'धुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान' (PSLV-CIIX) के जरिए अपने पहले चन्द्र अभियान 'चन्द्रयान-1' को रवाना किया। बंगलुरू में स्थित स्पेस क्राफ्ट कंट्रोल सेंटर' (SCC) द्वारा पांच बार ऊपरी कक्षाओं में स्थानान्तरित किए जाने के बाद 8 नवम्बर, 2008 को "चन्द्रयान-1' अपने 5वें और अंतिम चरण के बाद चन्द्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया। 
अमेरिका, यूरोप, रूस, जापान व चीन के बाद भारत चद्रमा की कक्षा में पहुंचने वाला छठा देश है। 
 अभियान में भारत द्वारा निर्मित मानव रहित अंतरिक्ष यान मून इम्पैक्ट प्रोब को चन्द्रमा की सतह पर उतारा गया।
चन्द्रयान-1 ने चन्द्रमा पर बर्फ के होने की जानकारी दी है। इसने चंद्रमा की भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर 1.2 किमी. लंबी गुफा या लावा ट्यूब की जानकारी भी दी है, जिसका तापमान हमेशा लगभग -20C रहता है। इस प्रकार यह लावा ट्यूब चन्द्रमा की सतह के तापमान की विषमता एवं गैलेक्टिक कॉस्मिक किरणों से वैज्ञानिकों का बचाव करेंगी। चन्द्रयान पर नजर रखने के लिए बंगलुरु से 40 किमी. दूर ब्यालालू में 'इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क सेंटर' की स्थापना की गई है। 
 
चन्द्रयान-2 -
 
 
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने 16 अगस्त, 2017 को चन्द्रयान-2 का भी डिजाइन तैयार कर लिया गया, यह अंतरिक्ष मिशन 2019 भेजा गया
 
कृत्रिम उपग्रह-
 
 
विभिन्न देशों ने अनेक कृत्रिम उपग्रह भी स्थापित किए हैं. जो पृथ्वी की परिभ्रमण दिशा से साम्यता स्थापित करने के लिए पूर्व की ओर प्रक्षेपित किए जाते हैं।
 
सामान्यतः दूर-संवेदी उपग्रह ध्रुवीय सूर्य समतुल्य कक्षा (Polar sun-synchronous orbit) में 600-1100 किमी. की दूरी पर स्थापित किए जाते हैं। इन उपग्रहों का परिभ्रमण काल 24 घंटे का होता है।
ये भूमध्यरेखा को एक निश्चित स्थानीय समय पर ही पार करते हैं, जो सामान्यत: प्रात: 9 से 10 बजे होता है।
सुदूर-संवेदी उपग्रहों के द्वारा पृथ्वी के एक परिभ्रमण में सुदूर-संवेदन किया जाने वाला क्षेत्र, स्वाथ कहलाता है। विभिन्न उपग्रहों में यह प्राय: 10 से 100 किमा. चौड़ी धरातलीय पट्टी होती है। चूंकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती करती है, अत: ये उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा के क्रम में क्रमशः पश्चिम के भाग को बिना कवर किए आगे बढ़ जाते हैं। इसी कारण पूरी पृथ्वी को कवर करने हेतु कई सुदूर-संवेदी उपग्रहों की आवश्यकता पड़ती है।
दूर-संचार उपग्रह भू-स्थैतिक कक्षा (Geo-Stationary Orbit) में 36,000 किमी. की ऊंचाई पर स्थापित किए जाते हैं। पृथ्वी के घूर्णन काल से मेल खाने के कारण ये स्थिर से प्रतीत होते हैं। इसी कारण इन्हें भू-स्थैतिक उपग्रह भी कहा जाता है। समस्त पृथ्वी को एक साथ कवर करने के लिए न्यूनतम तीन भू-स्थैतिक उपग्रहों की आवश्यकता पड़ती है। 
 
एस्ट्रोसैट -
 
एस्ट्रोसैट भारत की प्रथम समर्पित बहु-तरंगदैर्ध्य अंतरिक्ष वेधशाला (Multi wavelength Space Observatory) है। खगोलीय शोध को समर्पित यह वेधशाला पृथ्वी की निचली निकट भूमध्यरेखीय कक्षा (Low Earth Near EquatorialOrbit) में लगभग 650 किमी. की ऊंचाई पर स्थापित की गई है। एस्ट्रोसैट के सफल प्रक्षेपण के साथ भारत अब अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय संघ के ऐसे विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया है, जिन्होंने अपनी अंतरिक्ष वेधशाला स्थापित की है।
 
विश्व के प्रथम इलेक्ट्रिक उपग्रह का प्रक्षेपण -
 
विश्व के प्रथम इलेक्ट्रिक उपग्रह का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण 2 मार्च, 2015 को 'स्पेस-एक्स' रॉकेट द्वारा फ्लोरिडा के केप केनवरल से किया गया। 
'स्पेस-एक्स' रॉकेट अपने साथ दो वाणिज्यिक विद्युत उपग्रहों को ले गया। यह उपग्रह फ्रांसीसी उपग्रह प्रदाता एटुलसेट और एशिया प्रसारण उपग्रह के संयुक्त स्वामित्व में है, जिससे अमेरिका में अपनी सेवा का विस्तार करने में सहायता मिलेगी।
 
उल्काश्म व उल्कापिंड -
 
अंतरिक्ष में तीव्र गति से घूमते हुए अत्यन्त सूक्ष्म ब्रह्मांडीय कण है। धूल गैसों से  निर्मित  पिंड-जब वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण तेजी से पृथ्वी की ओर आते हैं तथा वायुमंडलीय घर्षण से चमकने लगते हैं। इन्हें 'टूटता हुआ तारा' (Shooting Star) कहा जाता है। प्राय: ये पृथ्वी पर पहुंचने से पूर्व ही जलकर राख हो जाते हैं, जिन्हें 'उल्काश्म (Meters) कहते हैं। परंतु, कुछ पिंड वायुमंडल के घर्षण से पूर्णत: जल नहीं पाते और चट्टानों के रूप में पृथ्वी पर आ गिरते हैं, जिन्हें उल्कापिंड कहा जाता है। 
 
पुच्छल तारे या घूमकेतु -
 
 
ये आकाशीय धूल, बर्फ और हिमानी गैसों के पिंड हैं, जो सूर्य से दूर ठंडे व अंधेरे क्षेत्र में रहते हैं। सूर्य के चारों ओर ये लंबी किन्तु अनियमित या असमर्केन्द्रित (Eccentric) कक्षा में घूमते हैं। अपनी कक्षा में घूमते हुए कई वर्षों के पश्चात् जब ये सूर्य के समीप से गुजरते हैं तो गर्म होकर इनसे गैसों को फुहारें निकलती है, जो एक लंबी चमकीली पूँछ के समान प्रतीत होती हैं। कभी-कभी ये पूंछ लाखों किमी. लंबी होती है। सामान्य अवस्था में पुच्छल तारा (कॉमेट) बिना पूंछ का होता है। पुच्छल तारा के शीर्ष को 'कोमा' कहते हैं। लांग पीरियड कॉमेट 70 से 90 वर्षों के अंतराल पर दिखाई पड़ता है।
हेली पुच्छलतारा भी इन्हीं में से एक है। यह 76 वर्षों के अंतराल के बाद दिखाई पड़ता है। अंतिम बार यह 1986 . में देखा गया था। खगोलशास्त्रियों के अनुसार सौरमंडल में लगभग । लाख धूमकेतु विचरण कर रहे हैं।

क्षुद्र ग्रह
 
मंगल और बृहस्पति ग्रह के मध्य क्षेत्र में सूर्य की परिक्रमा करने वाले छोटे से लेकर सैकड़ों किमी. आकार के पिंड हैं। इनकी अनुमानित संख्या 40,000 है।
इनकी उत्पति ग्रहों के विस्फोट के फलस्वरूप टूटे हुए खंडों से हुई.है. यद्यपि इस सम्बंध में कुछ अन्य मत भी दिए गए हैं। जापान के हायाबूसा अंतरिक्ष यान ने हाल ही में 'इटोकावा' नामक क्षुद्रग्रह की मिट्टी - के नमूने को पृथ्वी तक भेजने में सफलता हासिल की है।
पृथ्वी से क्षुद्र ग्रहों की संभावित टक्कर को रोकने के लिए 'नासा' ने अक्टूबर, 2015 में एस्टेराएड रिडायरेक्शन मिशन की शुरुआत की। इस मिशन के अंतर्गत रोबोट से युक्त एक ऐसे अंतरिक्ष यान का निर्माण किया जाएगा, जो पृथ्वी की और आने वाले क्षुद्र ग्रहों की दिशा को परिवर्तित करने में सक्षम होंगे।
 





 

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