संवैधानिक और प्रशासनिक घटनाक्रम PART-1 2020
2- Pharmaceutical
क्षेत्र
में
सुधार
4- मेघालय का व्यवहार परिवर्तन मॉडल
11-राष्ट्रपति चुनाव हेतु निर्वाचक मंडल
12-राजीव गांधी किसान न्याय योजना
13-भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान कानून (संशोधन) विधेयक 2020
15-प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम
17-राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी)
18-सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना
20 -उत्तर पूर्व क्षेत्र का विशेष दर्जा
राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020
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केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को मंजूरी दी है
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नई शिक्षा नीति 34 वर्ष पुरानी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 को प्रतिस्थापित करेगी
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शिक्षा की पहुंच ,समानता, गुणवत्ता, वहन करने योग्य शिक्षा और उत्तरदायित्व जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान
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नई शिक्षा नीति के निर्माण के लिए जून 2017 में पूर्व इसरो प्रमुख डॉक्टर के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था इस समिति ने मई 2019 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा प्रस्तुत किया था
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 वर्ष 1968 और वर्ष 1986( जिसे 1992 में संशोधित किया गया था) के बाद स्वतंत्र भारत की तीसरी शिक्षा नीति होगी
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 के तहत केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से शिक्षा क्षेत्र पर देश की जीडीपी के 6% हिस्से के बराबर निवेश का लक्ष्य रखा गया है
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नई शिक्षा नीति में वर्तमान में सक्रिय 10 + 2 के शैक्षिक मॉडल के स्थान पर शैक्षिक पाठ्यक्रम को 5 +3 +3 +
4 प्रणाली के आधार पर विभाजित करने की बात कही गई है
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कैबिनेट द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर- शिक्षा मंत्रालय
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नाम बदलने का उद्देश्य शिक्षा और सीखने पर पुनः अधिक ध्यान आकर्षित करना है
प्रारंभिक शिक्षा
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3 -6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए आंगनवाड़ी/ बाल वाटिका/ प्रीस्कूल के माध्यम से मुफ्त सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा की उपलब्धता सुनिश्चित करना
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6-8 वर्ष तक के बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा -1 और कक्षा -2 में शिक्षा प्रदान की जाएगी
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MHRD द्वारा बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की मांग की गई है
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राज्य सरकारों द्वारा वर्ष 2025 तक प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा- 3 तक के सभी बच्चों में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान प्राप्त करने हेतु इस मिशन के कार्यान्वयन की योजना तैयार की जाएगी
भाषाई विविधता को बढ़ावा तथा संरक्षण
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में कक्षा- 5 तक की शिक्षा में मातृभाषा/ स्थानीय क्षेत्रीय भाषा को अध्यापन के माध्यम के रूप में अपनाने पर बल दिया गया है साथ ही इस नीति में मातृभाषा को कक्षा-- 8 और आगे की शिक्षा के लिए प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है
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स्कूली और उच्च शिक्षा में विद्यार्थियों के लिए संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र- छात्रा पर भाषा के चुनाव की बाध्यता नहीं होगी
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भारतीय भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिए एक भारतीय अनुवाद और व्याख्या संस्थान फारसी, पाली और प्राकृत के लिए राष्ट्रीय संस्थान स्थापित करने के साथ उच्च शिक्षण संस्थानों में भाषा विभाग को मजबूत बनाने और अध्यापन के माध्यम के रूप में मातृभाषा/ स्थानीय भाषा को बढ़ावा दिए जाने का सुझाव दिया है
पाठ्यक्रम और मूल्यांकन से जुड़े सुझाव
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कक्षा - 6 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में व्यवसायिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाएगा और इसमें इंटर्नशिप की भी व्यवस्था दी जाएगी
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विद्यार्थियों की प्रगति के मूल्यांकन के लिए मानक निर्धारक निकाय के रूप में” परख” नामक एक नए राष्ट्रीय आकलन केंद्र की स्थापना की जाएगी
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विद्यार्थियों की प्रगति के मूल्यांकन तथा विद्यार्थियों को अपने भविष्य से जुड़े निर्णय लेने में सहायता प्रदान करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित सॉफ्टवेयर का प्रयोग होगा
शिक्षण प्रणाली से जुड़े सुधार
वर्ष 2030 तक अध्यापन के लिए न्यूनतम डिग्री योग्यता 4 वर्षीय एकीकृत B.Ed डिग्री का होना अनिवार्य किया जाएगा
उच्च शिक्षा
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इस नीति के तहत उच्च शिक्षा संस्थानों में सकल नामांकन अनुपात को वर्ष 2018 के 26.3 प्रतिशत से बढ़ाकर वर्ष 2035 तक 50% करने का लक्ष्य रखा गया है
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स्नातक पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण सुधार किया गया है इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक पाठ्यक्रम में विद्यार्थी कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा जैसे- 1 वर्ष बाद सर्टिफिकेट ,2 वर्ष बाद एडवांस डिप्लोमा ,3 वर्ष बाद स्नातक की डिग्री तथा 4 वर्ष बाद शोध के साथ स्नातक
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विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों से प्राप्त अंकों या क्रेडिट को डिजिटल रूप से सुरक्षित रखने के लिए एक एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट स्थापित किया जाएगा जिससे अलग-अलग संस्थानों में विद्यार्थियों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें डिग्री प्रदान की जा सके
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नई शिक्षा नीति के तहत एमफिल कार्यक्रम को समाप्त कर दिया गया है
भारतीय उच्च शिक्षा आयोग
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चिकित्सा और कानूनी शिक्षा को छोड़कर पूरे उच्च शिक्षा क्षेत्र के लिए एक एकल निकाय के रूप में भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का गठन किया जाएगा
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महाविद्यालयों की संबद्धता 15 वर्षों में समाप्त हो जाएगी और उन्हें क्रमिक सहायता प्रदान करने के लिए एक चरणबद्ध प्रणाली की स्थापना की जाएगी
2- Pharmaceutical क्षेत्र में सुधार
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स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने नई दवा की अनुमोदन प्रक्रिया को सरल और तेज बनाने के उद्देश्य से समिति गठित की
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भारत वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता है
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विभिन्न वैक्सीन की वैश्विक मांग में भारतीय दवा क्षेत्र की आपूर्ति 50% से अधिक है
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वर्ष 2017 में फार्मास्यूटिकल क्षेत्र का मूल्य 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर था
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भारत में दवाओं के विपणन अनुमोदन का कार्य केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन द्वारा किया जाता है
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन
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केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन भारतीय दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के लिए एक राष्ट्रीय विनियामक निकाय है
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नियंत्रण संगठन को दवाओं के अनुमोदन, क्लीनिकल परीक्षणों के संचालन ,दवाओं के मानक तैयार करने ,देश में आयातित वस्तुओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेष सलाह प्रदान करने जैसे कार्य सौंपे गए हैं
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इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है
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सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास और शोध व अनुसंधान को बढ़ाने के लिए वर्ष 2025 तक अपनी कुल जीडीपी का 2.5 प्रतिशत इस क्षेत्र पर खर्च करने का लक्ष्य रखा है
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ग्रीन फील्ड फार्मा परियोजना के लिए ऑटोमेटिक रूट के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी गई है
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ब्राउनफील्ड फार्मा परियोजना के लिए ऑटोमेटिक रूट के तहत 74% एफडीआई की मंजूरी दी गई है 74% से अधिक की एफडीआई के लिए सरकारी अनुमोदन मार्ग के तहत अनुमति दी गई है
3-कैरियर प्रशिक्षण कार्यक्रम
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नेशनल करियर सर्विस और टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज आईओएन की संयुक्त पहल से नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए निशुल्क ऑनलाइन करियर प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया है
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इसके तहत उम्मीदवारों के व्यक्तित्व का विकास तथा वर्तमान में उद्योगों में कौशल की मांग के अनुरूप उन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा यह प्रशिक्षण कार्यक्रम नेशनल करियर सर्विस पोर्टल पर हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है
नेशनल करियर सर्विस
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20 जुलाई 2015 को नेशनल करियर सर्विस की शुरुआत की गई थी यह पंचवर्षीय मिशन मोड परियोजना है
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यह पोर्टल श्रम और रोजगार मंत्रालय के अधीन है
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नेशनल करियर सर्विस भारत के नागरिकों को रोजगार और कैरियर संबंधी सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है
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पोर्टल नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों और नियोक्ताओं के बीच की दूरी को कम करने की दिशा में कार्य करता है
4- मेघालय का व्यवहार परिवर्तन मॉडल
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मेघालय के स्वास्थ्य विभाग ने एक नया स्वास्थ्य प्रोटोकॉल जारी करते हुए राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को कोरोना वायरस का एक ASYMPTOMATIC CARRIER(एसिंप्टोमेटिक कैरियर का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से होता है जो वायरस से संक्रमित तो हो चुका है किंतु उसमें रोग से संबंधित कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देता है) मान लेने की घोषणा की है
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राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी स्वास्थ्य प्रोटोकॉल के अनुसार इस प्रकार का निर्णय विभिन्न क्षेत्रों से मेघालय में वापस लौटने वाले हजार प्रवासियों के कारण सामुदायिक प्रसारण के खतरे को रोकने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प है
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मेघालय सरकार एक ऐसी प्रणाली का निर्माण करना चाहती है जिसके माध्यम से लोग अपनी सुरक्षा कर सके और साथ ही साथ अपनी आजीविका चला सके क्योंकि हमें यह तथ्य स्वीकार करना होगा कि कोरोना वायरस अभी लंबे समय तक हमारे साथ रहेगा
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स्वास्थ्य विभाग के अनुसार जब एक बार लोग यह स्वीकार कर लेंगे कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तो उनके संपूर्ण व्यवहार में बदलाव आ जाएगा और वह अधिक सतर्क रहेंगे तथा अपने कार्यों के प्रति जिम्मेदार महसूस करेंगे जिससे सामुदायिक प्रसारण के जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी
5- न्यायालय की भाषा
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सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम 2020 को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं को पंजाब -हरियाणा उच्च न्यायालय में अपील करने को कहा है ,याचिका में हरियाणा राजभाषा (संशोधन )अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है
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हरियाणा राजभाषा अधिनियम में आवश्यक परिवर्तन के लिए अधिनियम में एक नई उप धारा 3 (A) जोड़ी गई है
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यह उप धारा हरियाणा में पंजाब- हरियाणा उच्च न्यायालय की अधीनस्थ सभी सिविल अपराधिक तथा राजस्व न्यायालयों किराया न्यायाधिकरण तथा राज्य सरकार द्वारा गठित अन्य न्यायाधिकरण में केवल हिंदी भाषा में कार्य करने का प्रावधान करती है
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अधिनियम की धारा 3 के अनुसार हरियाणा राज्य के सभी आधिकारिक उद्देश्य के लिए हिंदी का उपयोग किया जाएगा केवल उन अपवादित कार्यों को छोड़कर जिन्हें हरियाणा सरकार अधिसूचना के माध्यम से निर्धारित करती है
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संविधान का अनुच्छेद- 345 किसी राज्य के विधान मंडल को उस राज्य में हिंदी या अन्य एक या अधिक भाषाओं को कार्यालयों में अपनाने का अधिकार देता है
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हरियाणा सरकार द्वारा हरियाणा राजभाषा अधिनियम को अनुच्छेद -345 में की गई व्यवस्था के तहत बनाया गया है.
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निचले न्यायालयों में अंग्रेजी भाषा के प्रयोग के कारण हरियाणा राज्य में लोगों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है
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लोगों को शिकायतों या अन्य दस्तावेजों की समझ के लिए पूरी तरह से वकीलों पर निर्भर रहना पड़ता है अंग्रेजी भाषा के प्रयोग के कारण गवाहों को भी परेशान होना पड़ता है क्योंकि उनमें से अधिकांश को अंग्रेजी भाषा की अच्छी समझ नहीं होती
न्यायपालिका के भाषा संबंधी प्रावधान -
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संविधान में न्यायपालिका की भाषा के संबंध में अनुच्छेद- 348 में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं-
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जब तक संसद द्वारा अन्य व्यवस्था को ना अपनाया जाए उच्चतम तथा प्रत्येक उच्च न्यायालय की कार्यवाही केवल अंग्रेजी भाषा में होगी हालांकि किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से हिंदी या अन्य राजभाषा को उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा का दर्जा दे सकता है ,परंतु न्यायालय के निर्णय आज्ञा अथवा आदेश केवल अंग्रेजी में ही होंगे जब तक संसद अन्यथा व्यवस्था ना दे
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राजभाषा अधिनियम 1963 राज्यपाल को अधिकार देता है कि वह राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय, पारित आदेशों में हिंदी अथवा राज्य की किसी अन्य भाषा के प्रयोग की अनुमति दे सकता है परंतु इसके साथ ही इसका अंग्रेजी अनुवाद भी संलग्न करना होगा
6-नौवीं अनुसूची
सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण संबंधी मामले में अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर कार्यवाही करने से इनकार करते हुए स्पष्ट किया है कि आरक्षण एक मौलिक अधिकार नहीं है सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के साथ ही आरक्षण संबंधी कानूनों को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग एक बार पुनः चर्चा में आ गई है
पृष्ठभूमि
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तमिलनाडु के तमाम राजनीतिक दलों ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर कर राज्य के मेडिकल पाठ्यक्रम में अन्य पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों को 50% आरक्षण ना देने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी थी ,साथ ही याचिका में संबंधित अभ्यर्थियों के लिए आरक्षण की मांग भी की गई थी
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सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 का उपयोग केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में किया जा सकता है साथ ही न्यायालय ने प्रश्न किया कि मौजूदा मामले में किसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है
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सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद आरक्षण संबंधी प्रावधान को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने से संबंधित मांग की जा रही है ताकि उन्हें न्यायिक समीक्षा से संरक्षण प्रदान किया जा सके
संविधान की नौवीं अनुसूची-
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केंद्र और राज्य कानूनों की एक ऐसी सूची है जिन्हें न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती वर्तमान में संविधान की नौवीं अनुसूची में कुल 284 कानून शामिल है जिन्हें न्यायिक समीक्षा संरक्षण प्राप्त है अर्थात इन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती
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नवीं अनुसूची को वर्ष 1951 में प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से भारतीय संविधान में शामिल किया गया था
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यह पहली बार था जब संविधान में संशोधन किया गया था
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संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल विभिन्न कानूनों को संविधान के अनुच्छेद 31 बी के तहत संरक्षण प्राप्त होता है
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पहले संविधान संशोधन के माध्यम से नवीं अनुसूची में कुल 13 कानून शामिल किए गए थे जिसके पश्चात विभिन्न संविधान संशोधन किए गए और अब कानूनों की संख्या 284 हो गई है
समीक्षा के दायरे में नौवीं अनुसूची
24 अप्रैल 1973 को सर्वोच्च न्यायालय के’ केशवानंद भारती मामले’ में आए निर्णय के बाद संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किए गए किसी भी कानून की न्यायिक समीक्षा हो सकती है
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि नवीं अनुसूची के तहत कोई भी कानून यदि मौलिक अधिकारों या संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है तो उसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकेगी
7- वंश धारा नदी जल विवाद
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वर्ष 2009 से आंध्र प्रदेश तथा उड़ीसा के मध्य उत्पन्न वंश द्वारा जल विवाद के समाधान को लेकर शीघ्र ही आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा उड़ीसा सरकार से वार्ता करने की बात कही गई है
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वर्तमान आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा वंश धारा और नागावाली नदी की इंटरलिंकिंग को पूरा किया जाने तथा मद्दूवालसा परियोजना कभी विस्तार किए जाने की योजना बनाई जा रही है
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मद्दूवालसा परियोजना आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में एक मध्यम सिंचाई परियोजना है इस परियोजना का जल ग्रहण क्षेत्र श्रीकाकुलम और विजयनगरम 2 जिलों में फैला है, इस परियोजना के जलाशय के लिए पानी का मुख्य स्रोत स्वर्णामुखी नदी की सहायक नदी नागवली नदी में एक इंटर लिंक बनाकर की जा रही है
विवाद की पृष्ठभूमि-
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उड़ीसा राज्य सरकार द्वारा फरवरी 2009 में अंतर राज्य नदी जल विवाद अधिनियम 1956 की धारा 3 के अंतर्गत वं धारा नदी जल विवाद के समाधान के लिए अंतर राज्य जल विवाद अधिकरण के गठन के लिए केंद्र सरकार को एक शिकायत दर्ज की गई थी
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अंतर राज्य नदी जल विवाद अधिनियम -1956
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के अंतर्गत जब दो या दो से अधिक राज्य सरकारों के बीच जल विवाद पैदा होता है तो अधिनियम की धारा तीन के तहत कोई भी नदी घाटी राज्य केंद्र सरकार को इस संबंध में अनुरोध भेज सकता है अधिनियम के अंतर्गत ऐसे राज्य अधिनियम के अंतर्गत ऐसे अंतर राज्य जल विवादों की तिथि इस प्रकार है-
अंतर राज्य नदी जल विवाद अधिनियम 1956 के तहत जल विवाद-
RIVER/RIVERS |
STATE |
अधिकरण के गठन की तिथि |
कृष्णा |
महाराष्ट्र ,आंध्रप्रदेश, कर्नाटक |
अप्रैल 1969 |
गोदावरी |
महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश ,कर्नाटक ,मध्य प्रदेश, उड़ीसा |
अप्रैल 1969 |
नर्मदा |
राजस्थान ,मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र |
1969 |
कावेरी |
केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी |
1990 |
कृष्णा |
महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक |
अप्रैल 2004 |
MONDOVA |
गोवा ,कर्नाटक, और महाराष्ट्र |
निर्माणाधीन |
v |
v |
v |
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उड़ीसा सरकार का पक्ष था कि आंध्र प्रदेश के KATRAGAAR में वंश धारा नदी पर निर्मित HONE वाली नहर के निर्माण के कारण नदी का तल सूख जाएगा जिसके परिणाम स्वरुप भूजल और नदी का प्रवाह प्रभावित होगा
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दोनों राज्यों के मध्य विवाद को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में केंद्र सरकार को जल विवाद अधिकरण गठित करने का निर्देश दिए
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सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2010 में एक जल विवाद अधिकरण का गठन किया गया
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अधिकरण द्वारा दिए गए निर्णय के विरुद्ध वर्ष 2013 में उड़ीसा सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई जो अभी लंबित है
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यह नदी उड़ीसा तथा प्रदेश राज्यों के बीच प्रवाहित होती है
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नदी का उद्गम उड़ीसा के कालाहांडी जिले के रामपुर से होता है
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लगभग 254 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद आंध्र प्रदेश के काला पटना जिले से बंगाल की खाड़ी में प्रवेश कर जाती
8- आरक्षण
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सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के उस आदेश को असंवैधानिक घोषित किया जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों में स्कूल शिक्षकों के पदों पर अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को 100% आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान किया गया था
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हालांकि परिस्थितियों को देखते हुए संवैधानिक पीठ में आंध्र प्रदेश की इस नियुक्ति आदेश को रद्द नहीं किया है
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भविष्य में इस तरह के प्रावधान नहीं करने को कहा है
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संविधानिक पीठ ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि आरक्षण के हकदार लोगों को आरक्षण सूचियों को समय-समय पर संशोधित किया जाना चाहिए
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सूचियों का अद्यतन, आरक्षण व्यवस्था में बदलाव के बिना किया जा सकता है अर्थात किसी वर्ग को प्रदान किए गए आरक्षण के कुल प्रतिशत में किसी प्रकार की कमी ना की जाए
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आंध्र प्रदेश सरकार का पक्ष अनुसूचित क्षेत्रों में 100% आरक्षण प्रदान करने के पीछे सरकार द्वारा यह तर्क दिया गया कि आदिवासियों को केवल आदिवासियों द्वारा ही शिक्षा दी जानी चाहिए
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पीठ ने सरकार के पक्ष को इस आधार पर खारिज कर दिया कि जब अन्य निवासी जनजातीय क्षेत्र में रह रहे हैं तो वह भी इन आदिवासियों को पढ़ा सकते हैं
आरक्षण व्यवस्था पर चिंता
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पांच जजों की संविधान पीठ ने अन्य पिछड़ा वर्ग ,अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्गों में आरक्षण व्यवस्था पर चिंता व्यक्त की है
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पीठ के अनुसार अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग ,अनुसूचित जन जाति वर्गों में भी अनेक सामाजिक और आर्थिक रूप से उन्नत अपवर्ग हैं जिनकी वजह से आरक्षण का लाभ आरक्षित वर्ग की सभी लोगों को नहीं मिल पा रहा है
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आरक्षण सूची में संशोधन का लाभ
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प्रथम व वर्ग इस सूची से बाहर हो जाएंगे जो पिछले 70 वर्षों में 70 वर्षों से आरक्षण का लाभ प्राप्त कर रहे हैं
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दूसरे आरक्षण सूची में बाद में शामिल किए गए वर्ग जो कि वास्तव में आरक्षण के हकदार नहीं थे बाहर हो जाएंगे
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यहां ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि सरकार इस तरह की कवायद करने के लिए बाध्य है क्योंकि’ इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार’ मामले के निर्णय के अनुसार ऐसा करना संवैधानिक रूप से परिकल्पित है
संवैधानिक पीठ
भारतीय संविधान के अनुच्छेद -143 (3) के अनुसार, संविधान की व्याख्या के रूप में यदि विधि का कोई सारवान प्रश्न हो तो अनुच्छेद 143 के अधीन मामलों की सुनवाई के प्रयोजन के लिए संविधान पीठ का गठन किया जाएगा जिसमें कम से कम पांच न्यायाधीश होंगे हालांकि इसमें 5 से अधिक न्यायाधीश भी हो सकते हैं
केसवानंद भारती जैसे केस में गठित संविधानिक पीठ में 13 न्यायाधीश थे
10-आधारभूत संरचना
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24 APRIL को ‘केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य’ केस को 47 वर्ष पूरे हो गए हैं
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इस केस में संविधान की आधारभूत संरचना का सिद्धांत दिया गया था
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13 न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने 7 :6 से निर्णय किया कि संविधान की आधारभूत को संसद द्वारा परिवर्तित नहीं किया जा सकता
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आधारभूत संरचना को इस निर्णय के बाद से भारतीय संविधान में एक सिद्धांत के रूप में मान्यता प्राप्त है
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संविधान आधारभूत संरचना का तात्पर्य संविधान में निहित उन प्रावधानों से हैं जो भारतीय संविधान के लोकतांत्रिक आदर्शों को प्रस्तुत करते हैं
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इन प्रावधानों को संविधान में संशोधन द्वारा भी नहीं हटाया जा सकता
‘ आधारभूत संरचना’ सिद्धांत का विकास-
संसद की संविधान संशोधन करने की शक्ति क्या हो सकती है ?
इस पर भारतीय संविधान को अपनाने के बाद से ही बहस छिड़ी हुई है
संसद को
पूर्ण शक्ति
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स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय में ‘शंकरी प्रसाद बनाम भारत सरकार मामला ‘(1951)और ‘सज्जन सिंह बनाम राजस्थान सरकार मामला’( 1965 ) जैसे मामलों में निर्णय देते हुए संसद को संविधान में संशोधन करने की पूर्ण शक्ति प्रदान की
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मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं---
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जब सत्तारूढ़ सरकारों ने अपने राजनीतिक हितों के लिए संविधान में संशोधन करना चाह ता ‘गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार ‘(1967) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा ‘कि संसद अनुच्छेद- 368 के अधीन
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मौलिक अधिकारों को समाप्त करने की शक्ति नहीं रखती है
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संसद और न्यायपालिका के बीच टकराव—
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1970 के दशक की शुरुआत में तत्कालीन सरकार द्वारा’ आरसी कपूर बनाम भारत संघ ‘(1970),’ माधवराव सिंधिया बनाम भारत संघ मामले’ (1970 )आदि में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को बदलने के लिए संविधान में व्यापक संशोधन (24
,25, 26 और 29 वें ) किए गए
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केसवानंद भारती मामला ---
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24, 25 ,26 और 29 वें संविधान संशोधन तथा गोलकनाथ मामले के निर्णय को केसवानंद भारती मामले में चुनौती दी गई
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गोलकनाथ मामले मामले का निर्णय लिया11 न्यायाधीशों द्वारा लिया गया था
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केसवानंद भारती मामले मामले में 13 न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया गया
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आधारभूत संरचना का सिद्धांत—
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केसवानंद भारती की संविधान पीठ में सदस्यों के बीच गंभीर वैचारिक मतभेद देखने को मिले तथा पीठ ने निर्णय किया कि संसद को संविधान के आधारभूत संरचना में बदलाव करने से रोका जाना चाहिए
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सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 368 जो कि संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है ,के तहत संवि-धान की आधारभूत संरचना में बदलाव नहीं किया जा सकता
आधारभूत संरचना की सूची-
सर्वोच्च न्यायालय ने आधारभूत संरचना को परिभाषित नहीं किया है परंतु संविधान की कुछ विशेषताओं को आधारभूत संरचना के रूप में निर्धारित किया गया है जैसे- संघवाद, लोकतंत्र , पंथनिरपेक्षता, लोकतंत्र आदि
तब से अदालत ने इस सूची का निरंतर विस्तार किया है
निम्नलिखित को सर्वोच्च न्यायालय ने आधारभूत संरचना के रूप में सूचीबद्ध किया है—
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संविधान की सर्वोच्चता
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संघवाद
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कानून का शासन
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धर्मनिरपेक्षता
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संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य
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न्यायपालिका की स्वतंत्रता
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शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत
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संसदीय प्रणाली
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स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
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कल्याणकारी राज्य
11-राष्ट्रपति चुनाव हेतु निर्वाचक मंडल
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भारतीय चुनाव आयोग से एक आरटीआई के माध्यम से पूछा गया कि क्या नवगठित जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश भारत के राष्ट्रपति के चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल का हिस्सा होगा अथवा नहीं
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चुनाव आयोग ने मात्र एक पंक्ति में इस आरटीआई का जवाब देते हुए आवेदक को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 54 को देखने के लिए कहा है
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भारतीय संविधान के अनुच्छेद 54- के तहत राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है ,जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य और सभी राज्यों तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं इस प्रकार भारतीय संविधान का अनुच्छेद 54 में केवल दिल्ली और पुडुचेरी का उल्लेख किया गया है जो राष्ट्रपति के चुनाव में निर्वाचक मंडल का हिस्सा होंगे
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नवगठित जम्मू कश्मीर और लद्दाख के संदर्भ में कुछ भी नहीं कहा गया है
संविधान में संशोधन की आवश्यकता
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संविधान के अनुच्छेद 54 में उल्लिखित निर्वाचक मंडल में नए सदस्यों को शामिल करने के लिए संसद में दो तिहाई बहुमत और 50% से अधिक राज्यों के अनु समर्थन के माध्यम से एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी
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वर्ष 1992 में संवैधानिक संशोधन के माध्यम से दिल्ली और पुडुचेरी
को अनुच्छेद 54 के तहत निर्वाचक मंडल के सदस्यों के रूप में शामिल किया गया था
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वर्ष 1992 में से पूर्व संविधान के अनुच्छेद 54 में केवल संसद के निर्वाचित सदस्यों और राज्यों की विधानसभा
ही शामिल थी
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राष्ट्रपति का चुनाव --संविधान के अनुच्छेद 54 में वर्णित एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है
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जनता राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर नहीं करती बल्कि उसके द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है
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क्योंकि जनता राष्ट्रपति का चयन सीधे नहीं करती इसलिए इसे परोक्ष निर्वाचन कहा जाता है
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भारत में राष्ट्रपति के चुनाव में एक विशेष प्रकार से मतदान होता है इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं
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सिंगल वोट यानी मतदाता एक ही वोट देता है किंतु कई उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकता के आधार पर वोट देता है अर्थात वह बैलेट पेपर पर यह बताता है कि उसकी पहली पसंद कौन है और दूसरी व तीसरी कौन
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इस प्रकार यदि पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो पाता है तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है इसलिए इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है
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वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के मतों की प्रमुखता भी अलग-अलग होती है इसे’ वेटेज’ भी कहा जाता है
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2 राज्यों के विधायकों के वोटों का वेटेज भी अलग अलग होता है या वेटेज’ राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय किया जाता है और यह वेटेज’ जिस तरह
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तरह किया जाता है उसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं
12-राजीव गांधी किसान न्याय योजना
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छत्तीसगढ़ सरकार राज्य में किसानों को अधिक फसल उत्पादन हेतु प्रोत्साहित करने और फसल की सही कीमत प्राप्त करने में मदद करने के लिए राजीव गांधी किसान न्याय
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योजना शुरू करने की योजना बना रही है
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इस योजना का उद्देश्य DIRECT बैंक हस्तांतरण के माध्यम से राज्य के किसानों के लिए न्यूनतम आए उपलब्धता सुनिश्चित करना है
13-भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान कानून (संशोधन) विधेयक 2020
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लोकसभा द्वारा भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान कानून संशोधन विधेयक 2020 पारित कर दिया गया
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मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत विधेयक भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान कानून अधिनियम और भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान(ppp) अधिनियम 2017 की प्रमुख प्रावधानों में संशोधन करता है
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विधेयक IITs को उनके नवीन गुणवत्ता बढ़ाने के तरीकों के माध्यम से देश में सूचना और प्रौद्योगिकी के अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करेगा
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यह विधेयक सार्वजनिक निजी भागीदारी के माध्यम से सूरत, भोपाल, भागलपुर,
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अगरतला और रायपुर में पांच भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों को वैधानिक दर्जा प्रदान करेगा
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भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम ,2014 -इस अधिनियम का उद्देश्य सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के अंदर वैश्विक मानकों के अनुरूप मानव संसाधन की गुणवत्ता में सुधार के लिए IITs की स्थापना करना था
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वर्ष 2014 का अधिनियम पहले से स्थापित चार IITs( उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, और मध्य प्रदेश-2) को स्वायत्त और वैधानिक संस्थान का दर्जा देने का प्रावधान करता है
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इन संस्थानों का उद्देश्य सूचना प्रौद्योगिकी और संबंधित क्षेत्रों में निर्देश प्रदान करना, सूचना प्रौद्योगिकी में अनुसंधान तथा नवाचार का संचालन करना, बुनियादी
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ढांचे को स्थापित करना व बनाए रखना
14-गैर-लाभकारी /सरकारी संगठन
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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देश में’ विदेशी अंशदान लाइसेंस’ वाले सभी गैर-लाभकारी/ सरकारी संस्थानों को कोरोनावायरस से निपटने में उनके योगदान की
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जानकारी प्रतिमाह सरकार के साथ साझा करने को कहा है
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केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार देश में विदेशी अनुदान अधिनियम 2010 के तहत विदेशी अंशदान प्राप्त करने वाले
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गैर-लाभकारी संस्थानों को हर महीने जानकारी सरकार के साथ साझा करनी होगी
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गैरलाभकारी / गैर सरकारी संस्थान को सामान्यतया एनजीओ के नाम से जाना जाता NGOs ऐसे संगठन होते हैं जो ना तो सरकार का हिस्सा होते हैं और ना ही वह अन्य व्यवसायिक संस्थानों की तरह लाभ के उद्देश्य से कार्य करते हैं
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यह संस्थान धर्मार्थ कार्यों के तहत शिक्षा, चिकित्सा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं
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एनजीओस को विदेशी अंशदान प्राप्त करने के लिए विदेशी अंशदान अधिनियम 2010 के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय में पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है
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भारत में धार्मिक विन्यास अधिनियम ,1863, सोसायटी पंजीकरण अधिनियम ,1860 व भारतीयट्रस्ट अधिनियम 1882 आदि के तहत एनजीओस का पंजीकरण किया जाता है
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विदेशी योगदान संशोधन नियम 2012 के अनुसार एफसीआरए के तहत पंजीकरण के bina एनजीओ 25000
से अधिक की आर्थिक सहायता या कोई अन्य विदेशी अंशदान स्वीकार नहीं कर सकते
15-प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम
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लोकसभा में सूक्ष्म ,लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई
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प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम को खादी और ग्रामोद्योग आयोग, राज्य खादी और
ग्रामोद्योग बोर्ड तथा जिला उद्योग केंद्र द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है
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प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम एक प्रमुख क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य पारंपरिक कारीगरों और बेरोजगार युवाओं की मदद कर गैर कृषि क्षेत्र में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना के माध्यम से रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना
इस कार्यक्रम के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों, निजी क्षेत्र के कुछ चयनित बैंकों और सहकारी बैंकों द्वारा खादी और ग्रामोद्योग आयोग के माध्यम से एमएसएमई मंत्रालय द्वारा मार्जिन मनी सब्सिडी के साथ प्रदान किया जाता है
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खादी और ग्रामोद्योग आयोग- खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम 1956 के तहत एक सांविधिक निकाय है
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भारत सरकार के सूक्ष्म ,लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के अंतर्गत संस्था है
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इसका उद्देश्य रोजगार देना, बिक्री वस्तुओं का उत्पादन करना, गरीबों को
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आत्मनिर्भर और एक मजबूत सामुदायिक भावना
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का निर्माण करना
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इस योजना के तहत 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति आवेदन करने का पात्र है विनिर्माण क्षेत्र में परियोजना की अधिकतम लागत 2500000 और सेवा क्षेत्र में 1000000 है
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केवल नई इकाइयों की स्थापना हेतु प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत लाभ प्राप्त किया जा सकता है
16-वित्त विधेयक 2020
कोरोनावायरस के खतरे के बीच लोकसभा ने सर्वसम्मति से वित्त विधेयक 2020 पारित कर दिया है इसके अनुसार भारत में अनिवासी भारतीयों पर 15 लाख तक की आय सीमा तक टैक्स नहीं लगाया जाएगा
उदारी कृत प्रेषण योजना
उदारी कृत प्रेषण योजना भारत के निवासियों को एक वित्तीय वर्ष के दौरान किसी दूसरे देश में निवेश तथा व्यय करने हेतु एक निश्चित राशि को प्रेषित करने की अनुमति प्रदान करती है यह योजना आरबीआई के तत्वाधान में फरवरी 2004 में $25000 की सीमा के साथ प्रारंभ की गई थी
17-राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी)
एनआरसी वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है इसे वर्ष 1951 की जनगणना के पश्चात तैयार किया गया था रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किए गए सभी व्यक्तियों के विवरण शामिल थे
भारत में अब तक एनआरसी केवल असम में लागू की गई है जिसमें केवल उन भारतीयों के नाम शामिल हैं जो कि 25 मार्च 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं
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NRC उन्हीं राज्यों में लागू होती है जहां से अन्य देश के नागरिक भारत में प्रवेश करते हैं एनआरसी की रिपोर्ट बताती है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं
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वर्ष 1947 में जब भारत- पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए किंतु उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा इसके चलते वर्ष 1951 में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार किया गया था
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वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भी असम में भारी संख्या में शरणार्थियों का आना जारी रहा जिसके चलते राज्य की जनसंख्या का स्वरूप बदलने लगा
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80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों की पहचान करने तथा उन्हें वापस भेजने के लिए आंदोलन शुरू किया
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अखिल असम छात्र संघ कि 6 वर्ष के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे और एनआरसी तैयार करने का निर्णय लिया गया
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गृह मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर करते हुए कहा कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार करना नागरिकों और गैर नागरिकों की पहचान हेतु किसी भी संप्रभु राष्ट्र के लिए अनिवार्य है
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गृह मंत्रालय ने कहा कि देश में रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान करना उसके पश्चात उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना केंद्र सरकार को सौंपी गई जिम्मेदारी है
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देश के कई राज्यों ने एनआरसी और एनपीआर (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) का विरोध करते हुए इनके विरुद्ध प्रस्ताव पारित किए हैं
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नागरिकता अधिनियम 2003 के अनुसार एनपीआर ,एनआरसी की दिशा में पहला कदम है हालांकि सरकार द्वारा अभी तक संशोधित एनपीआर फॉर्म सार्वजनिक नहीं किया गया है किंतु इसमें माता-पिता की जन्म की तारीख और निवास स्थान जैसे विवादास्पद प्रश्न शामिल होने की संभावना है
18-सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना
कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने हेतु सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के दिशानिर्देशों में संशोधन किया है संशोधन के तहत अब सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के अंतर्गत आने वाली निधि को निम्नलिखित कार्यों में उपयोग कर सकते हैं –
चिकित्सकों और चिकित्सा कर्मचारियों को के लिए इंफ्रारेड थर्मामीटर की व्यवस्थ
चिकित्सा कर्मचारियों को और अधिक सुरक्षा सुनिश्चित करने
सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना
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सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना को 23 दिसंबर 1993 को पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा शुरू किया गया था जिसे सांसदों को ऐसा तंत्र उपलब्ध कराया जा सके जिससे वे स्थानीय लोगों की जरूरतों के अनुसार स्थाई सामुदायिक परिसंपत्तियों के निर्माण और सामुदायिक बुनियादी ढांचा सहित उन्हें अन्य बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के लिए विकास कार्यों की सिफारिश कर सकें
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योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा फरवरी 1994 में पहली बार जारी किए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार संचालित की जाती है
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सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना केंद्र सरकार की योजना है जिसके लिए आवश्यक निधि पूर्णता भारत सरकार द्वारा प्रदान की जाती है
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यह निधि सहायता अनुदान के रूप में सीधी जिला पदाधिकारियों को जारी की जाती है योजना के अंतर्गत ऐसे कार्य शामिल किए जाते हैं जो विकासमूल्क ,स्थानीय जरूरतों पर आधारित, जनता को उपयोग के लिए हमेशा सुलभ हो
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इस योजना के तहत राष्ट्रीय तौर पर प्राथमिक कार्यों को वरीयता दी जाती है जैसे- पेयजल उपलब्ध कराना ,सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता सड़क इत्यादि
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इस योजना के अंतर्गत जारी की गई नदी अव्यपगत होती है यानी अगर कोई दे निधि किसी विशेष वर्ष में जारी नहीं होती तो उसे आगे के वर्षों में पात्रता के अनुसार आवंटित राशियों में जोड़ दिया जाता है
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इस समय प्रति संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के लिए वार्षिक पात्रता 5 करोड रुपए है
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वह संबंधित जिलाधिकारियों को अपनी पसंद के कार्यों की सिफारिश कर सकते हैं जो संबंधित राज्य सरकार की स्थापित कार्य विधियों का पालन करते हुए इन कार्यों को कार्यान्वित करते हैं
19-जम्मू कश्मीर अधिवास संशोधन
केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के अधिवास के संदर्भ में किए गए बदलाव को वापस लेते हुए केंद्र शासित प्रदेश में सभी सरकारी नौकरियों को केवल जम्मू कश्मीर के निवासियों के लिए आरक्षित कर दिया है
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के अनुसार ग्रुप ए और ग्रुप बी सहित सभी सरकारी नौकरियों को केंद्र शासित प्रदेश के आदिवासियों के लिए सुरक्षित कर दिया गया है
जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019
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6 अगस्त 2019 को लोकसभा से पारित किया गया
· इस अधिनियम के माध्यम से जम्मू कश्मीर राज्य का पुनर्गठन कर दो नए केंद्र शासित प्रदेशों में जम्मू कश्मीर और लद्दाख (बगैर विधानसभा )के की स्थापना की गई इस अधिनियम के माध्यम से जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के लिए 107 सीटों वाली विधानसभा की अधिनियम में जम्मू-कश्मीर मंत्री परिषद में अधिकतम सदस्यों की संख्या 10 सुनिश्चित की गई
20 -उत्तर पूर्व क्षेत्र का विशेष दर्जा
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20 फरवरी 2020 को अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम के स्थापना दिवस के अवसर पर केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर की अनूठी संस्कृति को की रक्षा करने की प्रतिबद्धता जताई है
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जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 में परिवर्तन के पश्चात पूर्वोत्तर में अनुच्छेद 371 में परिवर्तन से संबंधित अफवाह फैलाई जा रही थी
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इस परिपेक्ष में केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान करने वाले अनुच्छेद 371 से कोई छेड़छाड़ नहीं किया जाएगा हाल ही के वर्षों में पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय समस्याओं के मद्देनजर सरकार ने बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौते, और बोडो समझौते को मूर्त रूप प्रदान किया है
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पूर्वोत्तर भारत अपनी विशेष सभ्यता, संस्कृति और नृजातीयता के कारण भारत के अन्य क्षेत्रों से भिन्न है जिससे विशेष संवैधानिक प्रावधानों के साथ ही उनकी संस्कृतियों को संरक्षण प्रदान किया जा रहा है पूर्वोत्तर भारत सामरिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है जिससे विशेष प्रावधान प्रासंगिक है
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यह चीन म्यांमार और बांग्लादेश के साथ बड़ी सीमा साझा करता है
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भारतीय संविधान में भी सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण क्षेत्रों हेतु विशेष प्रावधान किए जा सकते हैं
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पूर्वोत्तर भारत की विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण यहां पर विकास की गति अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा कम रही है इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक दृष्टि से यह क्षेत्र जनजातीय सांस्कृतिक बहुलता को समाविष्ट किए हुए हैं जिसके परिणाम स्वरूप बाहरी समाज से कम संपर्क के कारण विकास की अपेक्षाकृत गति नहीं प्राप्त कर सका है
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भारतीय संविधान के भाग- 21 में कुछ राज्यों को विशेष दर्जा दिया गया है इस भाग में दो अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 शामिल हैं
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जिसमें अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान किया गया था परंतु वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा समाप्त करते हुए उसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया है
o संवधान के अनुच्छेद 371 के विभिन्न खंडों में अलग-अलग राज्यों से संबंधित उपबंद किए गए हैं वर्तमान में ऐसी व्यवस्था नागालैंड ,मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात ,आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में लागू है
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