SCIENCE AND TECH CURRENT TOPICS 2020
काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना
चर्चा में क्यों?
जुलाई 2020 में गुजरात के
काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों ने इस संयत्र की तीसरी इकाई
में पहली बार क्रांतिकता प्राप्त की है।
प्रमुख बिंदु
यह गुजरात के तापी ज़िले में स्थित है।
ऊर्जा
इस संयंत्र की पहली दो इकाइयाँ कनेडियन
तकनीक पर आधारित हैं, जबकि इसकी तीसरी इकाई पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीकी पर आधारित है।
यह भारत की पहली 700 मेगावाट विद्युत इकाई
होने के साथ स्वदेशी तकनीक से विकसित PHWR की सबसे बड़ी इकाई
है।
क्रांतिकता (Criticality) से तात्पर्य संयंत्र में पहली बार नियंत्रित स्व-संधारित नाभिकीय
विखंडन श्रृंखला की शुरुआत से है।
'लेज़र सरफेस माइक्रो-टेक्सचरिंग तकनीक' माइक्रो-सरफेस
टेक्सचर 1 के आकार, बनावट और घनत्व को सटीक नियंत्रण प्रदान
करते हुए घर्षण और घिसाव (सिलिंडर सतह और पिस्टन के मध्य) पर प्रभावशाली रूप से
नियंत्रण बनाती है।
तकनीक के बारे में
इस तकनीक में एक स्पंदित लेज़र बीम के
माध्यम से बेहद नियंत्रित तरीके से वस्तुओं की सतह पर सूक्ष्म-गर्तिका अथवा खाँचे
का निर्माण किया जाता है।
इस तरह की सतह ड्राई स्लाइडिंग की
स्थिति में तेल (स्नेहक) की आपूर्ति को नियंत्रित करने के साथ ही घर्षण गुणांक और
परिणामस्वरूप घिसाव की दर को भी कम करती है। आंतरिक दहन इंजन पुर्जों, पिस्टन रिंग्स और
सिलिंडर लाइनर्स की सतहों पर सूक्ष्म-गर्तिका अथवा खाँचे का निर्माण पल्स डिप्रेशन
लेज़र का उपयोग करते हुए किया गया है।
लेजर बीम के माध्यम से लगभग 5-10 um गहरी और 10-20 um व्यास की
सूक्ष्म-गर्तिका को नियमित पैटर्न का उपयोग करते हुए बनाया गया है। वस्तुओं की सतह
पर सूक्ष्म-गर्तिका अथवा खाँचे के निर्माण से सतह स्थलाकृति में
परिवर्तन होता है जो अतिरिक्त हाइड्रोडाइनामिक दबाव उत्पन्न करता है परिणामस्वरूप
सतहों की भार-वहन क्षमता बढ़ जाती है।
इंजन के आतंरिक भागों (पिस्टन रिंग्स, सिलिंडर) की विभिन्न
गतियों तथा तापमान पर निर्मित सतह का परीक्षण शीतलक और स्नेहक तेल की उपस्थिति में
किया गया।
परीक्षण में पिस्टन रिंग्स पर निर्मित
सतह के उपयोग से स्नेहक ईंधन की खपत में 16% की कमी दर्ज की गई
एवं ल्यूब ऑयल खपत परीक्षण (10 घंटे तक) से पता चलता
है कि पिस्टन रिंग्स की सतह पर लगने वाले घर्षण बल में भी काफी कमी हुई है।
अल्ट्राफास्ट लेज़र माइक्रो अथवा नैनो
विशेषताओं का निर्माण करती है
जो वैक्यूम रहित भी होती हैं।
चीन का FAST टेलिस्कोप
चर्चा में क्यों?
चीन का 'फाइव हंड्रेड मीटर एपर्चर स्फेरिकल
टेलीस्कोप' (Five hundred-meter
Aperture Spherical Telescope-FAST) सितंबर 2020 से एलियन संकेतों की
खोज शुरू करेगा।
प्रमुख बिंदु
जनवरी 2020 में चीन द्वारा इस
टेलीस्कोप की पहली तस्वीर विश्व के लिये सार्वजनिक की गई थी। ब्रह्माण्ड में
पारलौकिक जीवन खोजने में मदद करने के अलावा यह
टेलीस्कोप ब्रह्मांड संबंधी घटनाओं की
एक विस्तृत श्रृंखला का अध्ययन करने के लिये डेटा एकत्रित करेगा जिसमें ब्लैक होल, गैस क्लाउड एवं
अधिकतम दूरी की आकाशगंगाएँ शामिल हैं। इस टेलीस्कोप का व्यास लगभग 500 मीटर का है किंतु यह
ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि यह केवल एक निश्चित समय में रिसीवर पर 300 मीटर व्यास वाले
क्षेत्र को ही केंद्रित करता है। में
पूर्ण रूप से तैयार होने के बाद यह
प्यूर्टो रिको (Puerto Rico) 'अरेसिबो वेधशाला' (Arecibo Observatory) द्वारा कवर किये गए आकाशीय क्षेत्र को दो बार स्कैन करने में सक्षम
होगा जो अब तक दुनिया में सबसे बड़े 'सिंगर-एपर्चर रेडियो टेलीस्कोप' के लिये एक रिकॉर्ड
है।
इस टेलीस्कोप का उल्लेख पहली बार वर्ष 1994 में किया गया था
किंतु वास्तविक मजदूरी वर्ष 2007 में दी गई थी। इस
टेलीस्कोप को 36 फुट लंबाई के त्रिकोणीय आकार के 4,500 पैनलों का उपयोग करके
बनाया गया है जो एक डिश पैनल जैसी. लेज़र बीम के माध्यम से लगभग 5-10 um गहरी और 10-20 um व्यास की
सूक्ष्म-गर्तिका को नियमित पैटर्न का उपयोग करते हुए बनाया गया है।
वस्तुओं की सतह पर सूक्ष्म-गर्तिका अथवा
खाँचे के निर्माण से सतह स्थलाकृति में परिवर्तन होता है जो अतिरिक्त
हाइड्रोडाइनामिक दबाव उत्पन्न करता है परिणामस्वरूप सतहों की भार वहन क्षमता बढ़
जाती है।
. इंजन के आतंरिक भागों (पिस्टन रिंग्स, सिलिंडर) की विभिन्न
गतियों तथा तापमान पर निर्मित सतह का परीक्षण शीतलक और स्नेहक तेल की उपस्थिति में
किया गया।
परीक्षण में पिस्टन रिंग्स पर निर्मित
सतह के उपयोग से स्नेहक ईंधन की खपत में 16% की कमी दर्ज की गई
एवं ल्यूब ऑयल खपत परीक्षण (10 घंटे तक) से पता चलता
है कि पिस्टन रिंग्स की सतह पर लगने वाले घर्षण बल में भी काफी कमी हुई है।
अल्ट्रा फास्ट लेज़र माइक्रो अथवा नैनो विशेषताओं का निर्माण करती है जो वैक्यूम
रहित भी होती हैं।
गोटिक्स एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता संरचना
बनाते हैं। यह एक 33 टन का 'रेटिना' (Retina) उपकरण
है जिसे 460-525 फीट की ऊँचाई पर
लगाया गया है। इस टेलीस्कोप को चीन के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत गुइझोउ (Guizhou) के पिंगटांग काउंटी (Pingtang County) में स्थापित किया गया है। यह दुनिया का सबसे बड़ा एवं सबसे संवेदनशील
रेडियो टेलीस्कोप है। इसे 'आई ऑफ हेवन' (Eye of Heaven) के रूप में भी जाना जाता है।
क्वांटम उपग्रह आधारित संचार प्रणाली
चर्चा में क्यों?
जून 2020 में चीनी वैज्ञानिकों
ने 'मिसियस'
(Micius) क्वांटम उपग्रह का प्रयोग कर विश्व में
पहली बार लंबी दूरी के बीच 'क्वांटम क्रिप्टोग्राफी' (Quantum Cryptography) को सफलतापूर्वक स्थापित किया है जो 'क्वांटम इंटेंगलमेंट' (Quantum Entanglement) पर आधारित है।
प्रमुख बिंदु
पान जियान-वी (Pan Jian Wei), जिन्हें चीन में 'क्वांटम तकनीक का पिता' माना जाता है, के नेतृत्व में
वैज्ञानिकों की टीम ने क्वांटम तकनीक की दिशा में कई सफलताएँ प्राप्त की है।
क्वांटम एटैंगलमेंट एक भौतिक घटना है। यह घटना तब होती है जब कणों के युग्म या
कणों के समूह इस तरह से उत्पन्न होते हैं या आपस में मिलते हैं कि प्रत्येक कण की
क्वांटम अवस्था को स्वतंत्र रूप से दूसरे कण की अवस्था के रूप में वर्णित नहीं
किया जा सकता है।
मिसियस उपग्रह के माध्यम से मूल ग्राउंड
स्टेशन जो एक-दूसरे से 1,200
किमी. की दूरी पर स्थित थे, के मध्य एंटेंगलमेंट
क्वांटम क्रिप्टोग्राफी को सफलतापूर्वक स्थापित किया गया है।
'मिसियस'
(Micius) क्वांटम उपग्रह फोटॉन स्रोत के रूप में
कार्य करता है। एटैंगलमेंट फोटॉन आपस में संबंधित हल्के कण होते हैं
जिनके गुण एक-दूसरे से संबंधित होते
हैं। यदि किसी एक फोटॉन में परिवर्तन होता है, तो इसका प्रभाव दूसरे
फोटो पर भी होता है। मिसियस (Micius) विश्व का प्रथम
क्वांटम संचार उपग्रह है, जिसे वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया
था। उपग्रह का नाम प्राचीन चीनी दार्शनिक मोजि (Mozi) के नाम पर रखा गया
है। क्वांटम संचार क्वांटम संचार/क्वांटम क्रिप्टोग्राफी या क्वांटम कुंजी वितरण (Quantum
Key Distribution-QKD) संचार अथवा डेटा विनिमय का सबसे
सुरक्षित तरीका है जो इसके लिये 'सममित कूटबद्ध कुंजी' (Symmetric Encoded Key) वितरण को सुनिश्चित करता है। इसमें संचार के ले फोटो जो कि क्वांटम
कण है, का प्रयोग किया जाता है। अब तक ऑप्टिकल आधारित क्वांटम कुंजी वितरण
का उपयोग कर केवल 100
किलोमीटर तक ही सुरक्षित संचार स्थापित
किया गया है। हालाँकि रिपीट (Repeater) के प्रयोग से क्वांटम
दूरसंचार की लंबाई बढ़ाई जा सकती है। उदाहरण के लिये विश्व में पहली क्वांटम
गोपनीय दूरसंचार लाइन
बीजिंग-शंघाई की लंबाई 2000 किमी. है, जिसमें 32 रिपीटरों का प्रयोग
किया गया है।
• रिपीटर एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो संकेत प्राप्त करता है और इसे
आगे पहुँचाता है। ट्रांसमीटरों का विस्तार करने के लिये रिपीटर का उपयोग किया जाता
है ताकि सिग्नल लंबी दूरी को कवर कर सके।
क्वांटम तकनीक पर राष्ट्रीय मिशन
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने बजट 2020-21 में क्वांटम तकनीक और
उसके अनुप्रयोग पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Quantum Technologies and Applications-NMQTA) की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु
इस मिशन के अंतर्गत क्वांटम
प्रौद्योगिकी के विकास हेतु 5 वर्षों के लिये र8000 करोड़ का प्रावधान
किया गया है। इसका क्रियान्वयन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किया जाएगा।
इस मिशन का उद्देश्य भारत में क्वांटम तकनीक को विकसित कर देश के विभिन्न
क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देकर प्रगतिशील बनाना है। क्वांटम तकनीक के विकास
से कंप्यूटिंग, संचार, साइबर सुरक्षा क्षेत्र में नए आयाम
सृजित किये जा सकते हैं। यदि भारत इस प्रौद्योगिकी (क्वांटम) में सफल रहता है तो
भारत इस तकनीक में कामयाब होने वाला विश्व का तीसरा देश होगा।
यह केंद्र भारत सरकार के विभिन्न
विभागों की प्रौद्योगिकी क्षमता को समझने में मदद करेगा।
सरकार में ब्लॉकचेन के नए अप्रत्याशित
अनुप्रयोगों से ई-गवर्नेंस सिस्टम में पारदर्शिता, पारगम्यता के साथ-साथ
इसके प्रति विश्वास बढ़ने की उम्मीद है। उत्कृष्टता केंद्र ने इस प्रौद्योगिकी से
प्राप्त होने वाले संभावित लाभों की समझ विकसित करने एवं चुनिंदा सरकारी उपयोग के
मामलों के लिये ब्लॉकचेन आधारित प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट (Proof of Concept PoCs) विकसित किया है।
ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी के बारे में
ब्लॉकचेन एक विशिष्ट प्रकार की डेटा संरचना है जिसका उपयोग
समस्त नोड्स या प्रतिभागियों के बीच
लेनदेन करने के लिये किया जा सकता है। इसके तहत स्वामित्व अधिकार क्रिप्टोग्राफिक
रूप में संग्रहीत और लिंक किये गए ब्लॉकों में दर्ज किये जाते हैं जहाँ स्वामित्व
रिकॉर्ड को गुप्त रखा जाता है। ब्लॉकचेन एक खुला एवं वितरित खाते के समान है जहाँ
दो पक्षों के बीच के लेन-देन को कालानुक्रमिक के साथ रियल टाइम में कुशलतापूर्वक
रिकॉर्ड किया जाता है। इसके अंतर्गत प्रत्येक लेन-देन के बाद पूर्व शर्त के रूप
में इसे नेटवर्क (प्रतिभा की सहमति से) खाते में जोड़ा जाता है जिसे नोड्स कहा
जाता है। उल्लेखनीय है कि इसी प्रक्रिया या नोड्स के कारण ही हेरफेर, त्रुटियों और डेटा
गुणवत्ता के संबंध में नियंत्रण का एक सतत् तंत्र तैयार होता है।
आमतौर पर ब्लॉकचेन तकनीक में
विकेंद्रीकरण, दृढ़ता, गोपनीयता और लेखापरीक्षा क्षमता की
प्रमुख विशेषताएँ होती हैं। इन विशेषताओं
से युक्त होकर, ब्लॉकचेन लागत
प्रभावी होने के साथ-साथ दक्षता में सुधार ला सकता है।
संचार उपग्रह जीसैट-30
चर्चा में क्यों?
जनवरी 2020 में भारत के नवीनतम
संचार उपग्रह जीसैट-30 को एरियनस्पेस के 'गुयाना स्पेस सेंटर' से अंतरिक्ष में
प्रक्षेपित किया गया।
प्रमुख बिंदु
जीसैट-30 को एरियन-5 स्पेस व्हीकल VA-251 की सहायता से
भू-तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित किया गया है। गौरतलब है कि EUTELSAT KONNECT' नामक एक यूरोपीय संचार उपग्रह भी GSAT-30 के साथ लॉन्च किया
गया। जीसैट-30 इनसैट/जीसैट उपग्रह श्रृंखला का एक संचार उपग्रह है
जिसकी कार्य अवधि 15 वर्ष होगी। गौरतलब है
कि उच्च शक्ति वाला यह उपग्रह 12 नॉर्मल C-बैंड और 12 Ku-बैंड ट्रांसपोंडर से
लैस है। यह उपग्रह वर्ष 2005 में प्रक्षेपित INSAT-4A उपग्रह को
प्रतिस्थापित करेगा। ध्यातव्य है कि यह मिशन वर्ष 2020 का इसरो का पहला मिशन
है।
जीसैट-30 का उपयोग उच्च
गुणवत्ता वाले डायरेक्ट-टू-होम (DTH) टेलीविज़न, VSAT (बैंकों के कामकाज में
सहायक) से कनेक्टिविटी प्रदान करने, एटीएम, स्टॉक एक्सचेंज, टेलीविजन अपलिकिंग और
टेलीपोर्ट सेवाएँ, डिजिटल उपग्रह समाचार संग्रहण (Digital Satellite News Gathering) तथा ई-गवर्नेंस एप्लीकेशन इत्यादि सेवाओं के लिये किया जाएगा।
यह उपग्रह Ku-बैंड के माध्यम से
भारतीय मुख्य भूमि और द्वीपों को संचार सेवाएँ प्रदान करेगा तथा C-बैंड के माध्यम से
खाड़ी देशों, बहुत से एशियाई देशों एवं ऑस्ट्रेलिया में व्यापक कवरेज प्रदान
करेगा। जीसैट-30 को अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजी लिमिटेड द्वारा बंगलुरु में असेंबल किया
गया है। ध्यातव्य है कि इसके पहले यह समूह IRNSS-1H एवं 11 जैसे नौवहन उपग्रहों
पर भी कार्य कर चुका है।
एरियन-5 क्यों चुना गया?
भारत ने जीसैट-30 (वज़न 3357 किलोग्राम) के
प्रक्षेपण हेतु एरियन-5 को इसलिये चुना क्योंकि जीसैट-30 का भार भारत के
भू-तुल्यकालिक प्रक्षेपण यान-MK II (GSLV-MK II) के भार उठाने की
क्षमता से काफी अधिक है।
गौरतलब है कि GSLV-MKIII के उपयोग से मिशन की लागत में वृद्धि को देखते हुए भी इसका प्रयोग
प्रक्षेपण हेतु नहीं किया गया।
एरियनस्पेस
एरियनस्पेस एक प्रक्षेपण सेवा प्रदाता
कंपनी है जिसका मुख्यालय फ्राँस तथा लॉन्च साइट फ्रेंच गुयाना में स्थित है। पिछले
30 वर्षों के दौरान इसने भारत के लगभग 24 संचार उपग्रहों को
अंतरिक्ष में स्थापित किया है।
. उसे आखिरी बार फरवरी 2019 में एक प्रतिस्थापन
उपग्रह जीसैट- 31 को लॉन्च किया था।
वाई-फाई कॉलिंग
चर्चा में क्यों?
दिसंबर 2019 में भारती एयरटेल और
रिलायंस जियो ने भारत में वाई-फाई कॉलिंग (Wi-Fi Calling) की सुविधा प्रारंभ की
है जिसे मोबाइल तकनीक के क्षेत्र में बड़ी प्रगति माना जा रहा है।
वाई-फाई कॉलिंग
वाई-फाई कॉलिंग एक नई तकनीक है जिसके
माध्यम से हम बिना कैरियर नेटवर्क या मोबाइल नेटवर्क के किसी से बातचीत कर सकते
हैं।
इसके लिये किसी कैरियर नेटवर्क की बजाय
हमें वाई-फाई कनेक्शन की आवश्यकता होती है।
अभी तक वाई-फाई का प्रयोग तार-रहित
इंटरनेट कनेक्शन, डेटा ट्रांसफर जैसे- शेयरइट (Shareit), जेंडर (Xender) आदि के लिये किया
जाता था लेकिन भारत में कॉल करने हेतु इसका प्रयोग पहली बार किया जा रहा
वर्तमान में कुछ मोबाइल एप जैसे-
व्हाट्सएप, मैसेंजर, स्काइप आदि भी इंटरनेट कॉलिंग की सुविधा
से लैस है।
उक्त सभी मोबाइल एप कॉलिंग के लिये पूरी
तरह वाई-फाई या डेटा कनेक्शन का प्रयोग करते हैं जिसे वॉइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल
(Voice Over Internet
Protocol- VoiP) कहा जाता है
कार्यप्रणाली
VoIP की सहायता से कॉलिंग के लिये यूजर को इन
एप्लीकेशंस (व्हाट्सएप, मैसेंजर, स्काइप आदि) को
मोबाइल या कंप्यूटर में डाउनलोड करना पड़ता है। इसके विपरीत वाई-फाई कॉलिंग हेतु
कोई एप्लीकेशन डाउनलोड करने की आवश्यकता नहीं होती है। वाई-फाई कॉलिंग के लिये
यूजर इसे डिफॉल्ट मोड में लगा सकता है। इससे मोबाइल में नेटवर्क न होने की स्थिति
में यह स्वयं ही वाई-फाई कॉलिंग के माध्यम से कॉल करने में सक्षम होगा।
वाई-फाई कॉलिंग के लिये यूजर को अलग से
संपर्क सूची (Contacts List) नहीं बनानी होगी बल्कि यह फोन की मौजूदा
संपर्क सूची को एक्सेस कर लेगा। इसके तहत बिना इंटरनेट कनेक्शन और बगैर किसी अन्य
एप के कॉल भी प्राप्त की जा सकेगी।
वाई-फाई कॉलिंग हेतु मोबाइल फोन में 'वाई-फाई कॉलिंग' तथा 'हाई डेफिनिशन वॉइस' (HD Voice) की सुविधा अनिवार्य रूप से उपलब्ध होनी चाहिये।
महत्त्व
जब कैरियर नेटवर्क कमजोर हो या उसके
प्रयोग से बातचीत करना संभव न हो तब वाई-फाई कॉलिंग की आवश्यकता होती है।
• उदाहरण के लिये बड़े मकानों के बीच, किसी भूमिगत स्थान
में या दूरदराज के क्षेत्रों में नेटवर्क उपलब्ध नहीं होता। ऐसी स्थितियों में
वाई-फाई कॉलिंग सहायक साबित हो सकती है। वाई-फाई कॉलिंग में किसी कैरियर नेटवर्क
का प्रयोग नहीं होता। अत: इसमें टॉकटाइम या बैलेंस की आवश्यकता नहीं होती है।
सेटकॉम तकनीक
चर्चा में क्यों?
जनवरी 2020 में राजस्थान सरकार
ने शैक्षिक संस्थानों में सीखने के परिणामों में वृद्धि करने और सामाजिक कल्याण
योजनाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिये व्यापक पैमाने पर 'उपग्रह संचार-सेटकॉम' (Satellite Communication-Satcom) का उपयोग शुरू किया है।
प्रमुख बिंदु
गौरतलब है कि राजस्थान सरकार द्वारा इस
पहल में नीति आयोग द्वारा चयनित पाँच आकांक्षी जिलों को प्राथमिकता दी जा रही है।
राजस्थान के विज्ञान और प्रौद्योगिकी
विभाग ने दूरदराज के क्षेत्रों में (जहाँ इंटरनेट की सुविधा नहीं है) सरकारी
योजनाओं का लाभ पहुँचाने तथा सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में विषय विशेषज्ञों
सेवाएँ प्राप्त करने के लिये 'रिसीव ऑनली टर्मिनल्स' (ROT) और 'सैटेलाइट इंटरेक्टिव
टर्मिनल्स' (SIT) की सुविधा प्रदान करने हेतु यह पहल की
है।
पहल का विस्तार क्षेत्र
पहले चरण के दौरान इस तकनीक का उपयोग
विभिन्न विभागों जैसे- स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, समाज कल्याण, अल्पसंख्यक कल्याण, महिला एवं बाल विकास
और आदिवासी क्षेत्र के विकास के तहत आने वाले लगभग 2,000 स्थानों में किया
जाएगा।
अन्य विशेषताएँ
सरकारी शिक्षण संस्थानों में अंग्रेजी
और विज्ञान विषयों का अध्ययन करने वाले छात्रों को 'रिसीव ऑनली टर्मिनल्स' (ROT) एवं 'सैटेलाइट इंटरेक्टिव
टर्मिनल्स' (SIT) के माध्यम से विषय विशेषज्ञों की सेवाएँ
उपलब्ध कराई जाएंगी।
दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं
में बेहतर परिणाम पाने के लिये छठी कक्षा से बारहवीं तक के छात्रों के बीच
अंग्रेजी और विज्ञान जैसे विषयों का स्तर बढ़ाया जाएगा।
इस नए कार्यक्रम की सुविधा सभी 134 मॉडल विद्यालयों, कस्तूरबा गांधी
बालिका विद्यालयों, समाज कल्याण विभाग के छात्रावासों, बाल-गृहों और
प्रत्येक जिले के सरकारी कॉलेजों के छात्रों को प्रदान की जाएगी।
विशेष रूप से शिक्षकों की कमी से जूझ
रहे संस्थानों के छात्रों को सेटकॉम तकनीक के माध्यम से सहायता मिलेगी। आकांक्षी
जिलों में वृद्धाश्रम और बाल-गृहों में भी उपग्रह संचार संबंधी उपकरण लगाए जाएंगे।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा
संचालित आठ सामुदायिक रेडियो स्टेशनों से इन जिलों में शिक्षा से संबंधित योजनाओं
को प्रसारित किया जाएगा।
सेटकॉम तकनीक
पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों के बीच संचार
लिंक प्रदान करने हेतु कृत्रिम उपग्रहों का उपयोग करना ही 'उपग्रह संचार तकनीक' कहलाता है। उपग्रह
संचार तकनीक वैश्विक दूरसंचार प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण
भूमिका निभाती है।
रिसीव ओनली टर्मिनल्स
रिसीव ओनली टर्मिनल्स ऐसे उपकरण होते
हैं, जिनके द्वारा डेटा को स्वीकार किया जा सकता है, परंतु ये स्वंय डेटा
निर्माण में अक्षम होते हैं। ऐसे उपकरण दूरदराज के क्षेत्रों में विभिन्न
जानकारियाँ पहुँचाने में सहायक होते हैं।
केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर पोर्टल
चर्चा में क्यों?
जनवरी 2020 में इलेक्ट्रॉनिकी
एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के दूरसंचार विभाग द्वारा केंद्रीय उपकरण पहचान
रजिस्टर' (CEIR) नामक पोर्टल की शुरुआत की गई है।
प्रमुख बिंदु
भारत सरकार द्वारा यह पोर्टल राष्ट्रीय
राजधानी क्षेत्र के लिये प्रारंभ किया गया है जिसे सर्वप्रथम सितंबर 2019 में महाराष्ट्र के
लिये लॉन्च किया गया था।
इस तरह के केंद्रीकृत डेटाबेस उपलब्ध
होने पर मोबाइल चोरी या अवैध मोबाइल फोन की पहचान करने तथा उन्हें ब्लॉक करने में
मदद मिलेगी।
कई बार फोन संबंधी ऐसे मामले सामने आए
हैं जिनमें एक प्रामाणिक IMEI नंबर के बजाय
डुप्लीकेट IMEI नंबर या सभी 15 नंबरों के स्थान पर
शून्य के साथ फोन प्रयोग किये जा रहे हैं। केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर पोर्टल
द्वारा ऐसे उपभोक्ताओं की सभी सेवाओं को ब्लॉक किया जा सकेगा। वर्तमान में यह
क्षमता केवल निजी सेवा प्रदाताओं के पास है।
भारत का राष्ट्रीय AI पोर्टल
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना
प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने www.ai.gov. in नामक भारत का
राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पोर्टल लॉन्च किया।
यह पोर्टल 'केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय' और 'आईटी उद्योग' द्वारा संयुक्त रूप
से विकसित किया गया है।
मुख्य बिंदु
केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना
प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राष्ट्रीय ई-गवर्नेस डिवीजन और आईटी उद्योग निकाय 'नैसकॉम' (NASSCOM) मिलकर इस पोर्टल को चलाएंगे। नैसकॉम (NASSCOM) भारत के सूचना
प्रौद्योगिकी तथा बीपीओ का एक व्यापारिक संघ है। इसकी
स्थापना वर्ष 1988 में हुई थी। यह एक
लाभ-निरपेक्ष (Non-profit) संस्था है। यह पोर्टल
भारत में AI से संबंधित संसाधनों के साझाकरण हेतु भारत में AI से संबंधित विकास के
लिये एक 'स्टॉप डिजिटल प्लेटफॉर्म' के रूप में काम
करेगा।
• यह पोर्टल दस्तावेजों केस स्टडी शोध रिपोट आदि की भी करेगा। इस अवसर
पर इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री नें युवाओं के लिये एक राष्ट्रीय
कार्यक्रम 'युवाओं के लिये जिम्मेदार अभी लॉन्च किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य
देश के युवा छात्रों को एक मंच प्रदान
करता है और उन्हें नए युग के तकनीकी
दिमाग. प्रासंगिक AI कौशल विकास एवं आवश्यक AI टूल-सेट तक पहुँच
प्रदान करना है ताकि उन्हें भविष्य के लिये डिजिटल रूप से तैयार किया जा सके।
कैप्टन अर्जुन
भारतीय रेलवे के 'सेंट्रल रेलवे जोन' ने रेल यात्रियों एवं
रेलवे कर्मचारियों की COVID-19
से संबंधित स्क्रीनिंग एवं निगरानी को
तेज करने के लिये एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित रोबोट
'कैप्टन अर्जुन' (Captain Arjun) लॉन्च किया।
अर्जुन (अर्जुन) का पूर्ण रूप 'Always be Responsible and Just Used to be Nice'
है। यह रोबोट मोशन सेंसर, एक PTZ कैमरा (Pan-Tilt-Zoom Camera) एवं एक डोम कैमरा (Dome Camera) से युक्त है। ये
कैमरे संदिग्ध एवं असामाजिक गतिविधि को ट्रैक करने के लिये 'आर्टिफिशियल
इंटेलिजेंस एल्गोरिदम' का उपयोग करते हैं। यह नवाचार भारतीय
रेलवे को COVID-19 के दौरान अपने सुरक्षा उपायों को आधुनिक
बनाने में मदद करेगा यह रोबोट ट्रेनों में सवार होने के दौरान यात्रियों को
स्क्रीन करेगा और असामाजिक तत्वों पर नजर रखेगा। सेंट्रल रेलवे जोन भारतीय रेलवे
के 17 जोन में से एक है। इसका मुख्यालय मुंबई में छत्रपति शिवाजी महाराज
टर्मिनस में है। इसे भारत में पहली यात्री रेलवे लाइन के संचालन का गौरव प्राप्त
है जो 16 अप्रैल,
1853 को मुंबई से ठाणे के मध्य संचालित की गई
थी।
कोली बैड
अटल इनोवेशन मिशन, नीति आयोग और
राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र ने संयुक्त रूप से कोलैबकैड (CollabCAD) सॉफ्टवेयर लॉन्च किया। इस सॉफ्टवेयर का उद्देश्य देश भर में अटल
टिंकरिंग लैब के छात्रों को रचनात्मक एवं कल्पनात्मक 3D डिजाइन बनाने और
संशोधित करने के लिये एक मंच प्रदान करना है। यह कंप्यूटर सक्षम सॉफ्टवेयर सिस्टम
का एक सहयोगी नेटवर्क है जो 2D प्रारूपण एवं 3D उत्पाद डिजाइन के
विवरण से संपूर्ण इंजीनियरिंग समाधान प्रदान करता है। नीति आयोग द्वारा
कार्यान्वित
अटल इनोवेशन मिशन नवाचार एवं उद्यमिता
की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की प्रमुख पहल
है।
नियॉन
संयुक्त राज्य अमेरिका के लास वेगास में
आयोजित वार्षिक उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स शो 2020 (Consumer Electronics Show-CES 2020) में नियॉन (NEON) नामक विश्व का पहला
कृत्रिम मानव (Artificial Human) पेश किया गया NEON को सैमसंग कंपनी की
स्टार लैब के सीईओ प्रणव मिस्त्री (भारतीय वैज्ञानिक) के नेतृत्व में निर्मित किया
गया है।
नियॉन (NEON) शब्द NEO (नया) + humaN (मानव) से मिलकर बना
है। वर्तमान में यह आभासी मानवीय भावनाओं को प्रदर्शित करता है किंतु भविष्य में
इसे पूरी तरह से स्वायत्त रुप से संचालित किया जाएगा जिससे यह भावनाओं को
प्रदर्शित करने, कौशल सीखने, स्मृति का निर्माण
करने और स्वतः निर्णय लेने के लिये प्रतिबद्ध होगा। यह Core I3 तकनीक पर आधारित है।
इसका तात्पर्य विश्वसनीयता (Reliability), रियल टाइम (Real Time) और प्रतिक्रिया (Response) है। इस तकनीक के
माध्यम से NEON पल भर में प्रतिक्रिया देने में समर्थ
है।
ज़ेनोबोट्स
संयुक्त राज्य अमेरिका के वैज्ञानिकों
ने दुनिया का पहला 'जीवित रोबोट' बनाया है जिसका नाम 'जेनोबोट्स' है। इस रोबोट का
निर्माण नोकदार पंजे वाले अफ्रीकी मेंढक की कोशिकाओं से किया गया है। इस रोबोट का
नाम नाइजीरिया एवं सूडान से दक्षिण अफ्रीका तक के उप-सहारा अफ्रीकी क्षेत्र में
पाए जाने वाले जलीय मेंढक की प्रजाति जेनोपस सानिक (Xenopus laevis) के नाम पर रखा गया है। इन जीवित रोबोटों के कई अनुप्रयोग हैं जैसे-
रेडियोधर्मी संदूषण की खोज करना, महासागरों में
माइक्रोप्लास्टिक को इकट्ठा करना आदि।
डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र
चर्चा में क्यों?
जून 2020 इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना
प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeiTY) ने राष्ट्रीय मुक्त
डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र (National Open Digital Ecosystem-NODE) के लिये रणनीति बनाने पर एक परामर्श पत्र जारी किया है जिसे Gov Tech 3.0 नाम दिया गया है।
प्रमुख बिंदु
राष्ट्रीय मुक्त डिजिटल पारिस्थितिकी या
GovTech 3.0 को खुले और सुरक्षित वितरण प्लेटफॉर्मों
के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसे पारदर्शी शासन
तंत्र द्वारा निर्देशित किया जाएगा। यह सामाजिक परिणामों में परिवर्तन करने के
लिये नागरिकों, व्यवसायों और सरकार के बीच प्रौद्योगिकी सहयोग को बढ़ाने में सहायता
करेगा।
Gov Tech 3.0
के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं
• पब्लिक डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, जिसमें सरकार के
डिजिटल प्लेटफॉर्म शामिल हैं जैसे आधार और GST नेटवर्क। डेटा
गोपनीयता, सुरक्षा और डोमेन-विशिष्ट नीतियों एवं मानकों के संबंध में बुनियादी
ढाँचे को नियंत्रित करने के लिये कानून।
• इस इंफ्रास्ट्रक्चर को लाभप्रद बनाना ताकि सभी के लिये यह
महत्त्वपूर्ण साबित हो।
राष्ट्रीय मुक्त डिजिटल पारिस्थितिकी
तंत्र
यह डिजिटल प्रशासन को सक्षम करने के
लिये एक राष्ट्रीय रणनीति है, जिसका उद्देश्य
नागरिकों, व्यवसायों और सरकार के बीच प्रौद्योगिकी सहयोग को बढ़ाकर सामाजिक
क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन लाना है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के
अंतर्गत कार्यरत ई-ट्रांसपोर्ट मिशन मोड परियोजना राष्ट्रीय मुक्त डिजिटल
पारिस्थितिकी का एक बेहतर उदाहरण है।
इस परियोजना में दो एप्लीकेशन शामिल
हैं- वाहन और सारथी जो क्रमश: वाहन पंजीकरण और ड्राइवर लाइसेंस संचालन को स्वचालित
करते हैं।
इस डिजिटल डेटा की उपलब्धता इस
प्लेटफॉर्म को नागरिकों, ऑटोमोबाइल डीलरों. बीमा कंपनियों और
सुरक्षा एजेंसियों सहित विभिन्न संस्थाओं को सेवाएं प्रदान करने में सक्षम बनाती
है। यह भुगतान गेटवे और डिजि-लॉकर जैसे बाहरी अनुप्रयोगों के साथ इंटर-ऑपरेबिलिटी
भी प्रदान करता है।
शासन में प्रौद्योगिकी का उपयोग
Gov Tech 1.0 आयकर प्रक्रियाओं को ऑनलाइन करने जैसी
मैनुअल प्रक्रियाओं के 'कम्प्यूटरीकरण' का युग था। Gov Tech 2.0 तकनीकी विकास को प्रोत्साहित करते हुए एंड-टू-एंड प्रक्रियाओं को
डिजीटलाइज करता था, जैसे- सरकार की 'ई-ऑफिस' फाइल प्रबंधन
प्रणाली।
Gov Tech 3.0 मुक्त डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र पर
केंद्रित है। यह सरकार को 'डिजिटल कॉमन्स' बनाने पर ध्यान
केंद्रित करने के
लिये प्रोत्साहित करता है। यह डिजिटल
अवसंरचना बनाकर सरकार को सुविधाओं का
आपूर्तिकर्ता बनाने की परिकल्पना करता
है, जिस पर इनोवेटर्स जनता की भलाई के लिये सहयोग कर सकते हैं। उदाहरण-
सार्वजनिक व निजी भागीदारी के माध्यम से तैयार किया गया आरोग्य सेतु एप।
सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा
इसके माध्यम से सभी लोगों को आसान एवं
सिंगल विंडो एक्सेस उपलब्ध कराने के लिये विभागों और सभी जिला मुख्यालयों का
समेकन किया गया है।
सभी सरकारी कागजात/प्रमाणपत्र क्लाउड पर
उपलब्ध कराए जाएंगे।
- प्रत्येक नागरिक को विशिष्ट, आजीवन, ऑनलाइन और प्रमाणन
योग्य डिजिटल पहचान प्रदान की जाएगी।
मोबाइल फोन तथा बैंक अकाउंट को आपस में
जोड़कर व्यक्तिगत स्तर पर डिजिटल और वित्तीय रूप से प्रत्येक व्यक्ति को समर्थ
बनाया जाएगा। शिक्षकों के लिये नेशनल डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर DIKSHA शिक्षा सुधारों में
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
इसी प्रकार कृषि के लिये एक डिजिटल
पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया जाना है, जिसे एक
अंतर-मंत्रालयी समिति द्वारा डिज़ाइन किया जा रहा है।
सुपरहाइड्रोफोबिक कोटिंग
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन
स्कूल ऑफ माइंस), धनबाद तथा ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी की टीम ने पॉलीयूरेथेन और सिलिकॉन
डाइऑक्साइड नैनो कणों का इस्तेमाल कर सुपरहाइड्रोफोबिक कोटिंग पदार्थ का निर्माण
किया है।
प्रमुख बिंदु
कोटिंग हेतु विकसित यह पदार्थ स्टील के
साथ ही अन्य धातुओं यथा- एल्युमीनियम, तांबा, पीतल एवं ग्लास, कपड़े, कागज, लकड़ी आदि भी उपयोग
में लाया जा सकता है।
गौरतलब है कि इस कोटिंग पदार्थ को तैयार
करने में प्रयुक्त रसायन देश में आसानी से उपलब्ध और पर्यावरण के अनुकूल भी हैं।
स्टील कोटिंग से पूर्व टीम ने आसंजन शक्ति में सुधार के लिये एक विशेष प्रकार की
रासायनिक विधि (इचिंग) का प्रयोग किया ताकि स्टील की सतह पर खुरदरापन पैदा किया जा
सके और कोटिंग आसानी से की जा सके।
आसंजन और ससंजन (Adhesion and Cohesion) दो भिन्न प्रकार के कणों या सतहों के एक-दूसरे से चिपकने की
प्रवृत्ति को आसंजन कहते हैं। दो समान कणों या सतहों के आपस में चिपकने की
प्रवृत्ति को संसंजन कहते हैं।
कोटिंग की उपयोगिता
कोटिंग की गई सतह में सुपरहाइड्रोफोबिक
(सतह पर न चिपकने की प्रवृति) गुण पाया गया। इस कोटिंग को अम्लीय (pH 5) और क्षारीय (pH 8) दोनों स्थितियों में
छह सप्ताह से अधिक समय तथा 230°C तापमान तक स्थिर एवं
टिकाऊ पाया गया।
सुपरहाइड्रोफोबिक (जलविरोधी/जलविरागी)
ऐसे अणु या आणविक इकाई होते हैं जो जल के अणुओं को प्रतिकर्षित करते हैं। इस
कोटिंग की यांत्रिक स्थिरता को वाटर-जेट, रेत-अभी घर्षण आदि
में भी अत्यधिक स्थिर पाया गया था।
यह कोटिंग स्वतः सफाई में भी सक्षम है।
पानी की बूंदें तथा धूल कोटिंग सतह से नहीं चिपकती तथा यह सतह से स्वतः लुढ़क जाती
हैं।
प्रकृति
IIT दिल्ली के शोधकर्ताओं ने भारत में COVID-19 के प्रसार की
भविष्यवाणी करने के लिये एक वेब-आधारित डैशबोर्ड 'प्रकृति' (PRACRITI) विकसित किया है।
प्रकृति का पूर्ण रूप 'PRediction
and Assessment of CoRona Infections and Transmission in India' है। यह वेब-आधारित डैशबोर्ड भारत में
तीन सप्ताह की अवधि तक COVID-19
मामलों की राज्य एवं जिलेवार विस्तृत
भविष्यवाणियाँ प्रदान करता है।
'प्राकृतिक' स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, राष्ट्रीय आपदा
प्रबंधन प्राधिकरण और WHO
से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर प्रत्येक
जिले एवं राज्य की R0 संख्या प्रदान करता है। पुनरुत्पादक
संख्या (Reproduction number- RO)
जिसका उच्चारण 'आर नॉट' (R Naught) के रूप में किया जाता है। यह उन लोगों की संख्या को बताता है जिनमें
संक्रमण से संबंधित बीमारी किसी एक संक्रमित व्यक्ति से फैलती है। उदाहरण के लिये
यदि एक COVID-19 रोगी दो व्यक्तियों को संक्रमित करता है
तो ROमान दो होता है।
अतुल्य : माइक्रोवेव स्टेरिलाइज़र
'डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस टेक्नोलॉजी' ने COVID-19 वायरस को विघटित करने
के लिये 'अतुल्य' नाम से एक माइक्रोवेव स्टेप्लाइज़र
विकसित किया है। COVID-19 वायरस 56-60 डिग्री सेल्सियस तापमान
की सीमा में अतुल्य के 'डिफरेंशियल हीटिंग' (Differential Heating) से विघटित हो जाएगा। COVID-19 के लिये अतुल्य एक
लागत प्रभावी समाधान है जिसे पोर्टेबल या फिक्स्ड इंस्टालेशन में संचालित किया जा
सकता है। इस प्रणाली का मानव/ प्रचालक सुरक्षा के लिये परीक्षण किया गया है एवं
इसे सुरक्षित पाया गया है। भिन्न-भिन्न वस्तुओं के आकार एवं ढाँचे के अनुसार, स्टेरिलाइजेशन का समय
30 सेकंड से एक मिनट तक रहता है। इसका उपयोग केवल अधात्त्विक (Non -Metal) वस्तुओं के लिये किया जा सकता है।
नूर 1
22 अप्रैल,
2020 को ईरान ने अपने पहले सैन्य उपग्रह नूर
(Noor) को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। उल्लेखनीय
है कि इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) द्वारा संचालित नूर 1 ईरान का पहला स्वदेशी
सैन्य उपग्रह है। इस उपग्रह को तीन चरण वाले रॉकेट की सहायता से प्रक्षेपित किया
गया था जो ठोस और तरल ईंधन के संयोजन द्वारा संचालित था। प्रक्षेपण के पश्चात् 'नूर' उपग्रह अपनी कक्षा
में स्थापित हो गया और पृथ्वी की सतह से 425 किमी. ऊपर की
परिक्रमा कर रहा है। इस सैन्य उपग्रह का प्रक्षेपण ईरान के मध्य रेगिस्तान से किया
गया मध्य रेगिस्तान को फारसी भाषा में दश्त-ए-कवीर भी कहा जाता है।
साइंटेक एयरऑन
COVID-19 महामारी के मद्देनज़र महाराष्ट्र के
पुणे में स्थित एक स्टार्टअप कंपनी, जेक्लीन वेदर
टेक्नोलॉजी ने महाराष्ट्र के अस्पतालों को कीटाणुरहित करने के लिये साइंटेक एयरऑन
नामक डिवाइस का विकास किया है।
दरअसल साइंटेक एयरऑन एक निगेटिव आयन
जेनरेटर है। इस आयन जेनरेटर मशीन का एक घंटे परिचालन कमरे के 99.7%
वायरसों को नष्ट कर सकता है। साइंटेक
एअरऑन ऑयोनाइजर मशीन प्रति 8 सेकेंड में लगभग 100 मिलियन ऋण आवेशित आयन
पैदा कर सकती है।
ऑयो नाइजर द्वारा उत्पादित निगेटिव आयन
हवा में तैरते फफूंद, एलर्जी पैदा करने वाले सूक्ष्म कण, बैक्टीरिया, पराग-कण, धूल इत्यादि के
इर्द-गिर्द एक क्लस्टर बना लेते हैं और रासायनिक अभिक्रिया द्वारा इन्हें
निष्क्रिय कर देते हैं। इस रासायनिक अभिक्रिया में अत्यधिक प्रतिक्रियाशील एच (OH) समूह जिसे
हाइड्रॉक्सिल रेडिकल्स (Hydroxyl Radicals) कहा जाता है और एचओ (HO) समूह जिसे वायुमंडलीय
डिटरजेंट के रूप में जाना जाता है, का निर्माण होता
इस तकनीक को भारत सरकार द्वारा शुरू
किये गए निधि (NIDHI) एवं प्रयास (प्रयास) कार्यक्रम के तहत
विकसित किया गया है।
हैबिटेबल ज़ोन प्लैनेट फाइंडर
हैबिटेबल जोन प्लैनेट फाइंडर ने G9-40b नामक अपने पहले ग्रह
(एक्सोप्लैनेट- Exoplanet) की पुष्टि की है जो 6 दिनों की कक्षीय अवधि
में कम द्रव्यमान वाले चमकीले तारे एम-ड्वार्फ की परिक्रमा करता है और पृथ्वी से 100 प्रकाश वर्ष की दूरी
पर स्थित है। इससे पहले नासा के केपलर मिशन ने मेज़बान तारे के प्रकाश का पता
लगाया था और बताया था कि यह ग्रह अपनी कक्षा में परिक्रमण के दौरान तारे के सामने
से होकर गुजरता है। HPF
द्वारा एक्सोप्लैनेट की पुष्टि करने के
लिये इस जानकारी का इस्तेमाल किया गया। G 9-40b शीर्ष 20 निकटतम पारगमन ग्रहों
में से एक है। हैबिटेबल जोन प्लैनेट फाइंडर (HPF) एक खगोलीय
स्पेक्ट्रोग्राफ है जिसे पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा बनाया गया
है और यह हाल ही में अमेरिका में स्थित मैकडॉनल्ड ऑब्जर्वेटरी में हॉबी-एबरली
टेलीस्कोप पर स्थापित किया गया है। HPF डॉप्लर प्रभाव का
उपयोग करके एक्सोप्लैनेट की खोज करता है।
हेनेगुया सालमिनिकोला
इजराइल में तेल अवीव विश्वविद्यालय के
शोधकर्ताओं ने एक अवायवीय श्वसन करने वाले जीव हेनेगुया सालमिनिकोला की खोज की।
हेनेगुया सालमिनिकोला जेलीफिश के आकार
का एक छोटा परजीवी है जो ऑक्सीजन के बिना जीवित रह सकता है। यह परजीवी सालमन मछली
के अंदर पाया जाता है तथा यह अवायवीय श्वसन पर निर्भर रहता है। इस परजीवी में
माइटोकॉन्ड्रिया नहीं पाया जाता है। इस परजीवी की खोज ने जीव जगत के बारे में
विज्ञान की धारणाओं को चुनौती दी है क्योंकि सभी जीव वायवीय श्वसन करते हैं और
श्वसन में ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।
किरण योजना
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के
अंतर्गत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने वर्ष 2014 में महिला केंद्रित
सभी योजनाओं एवं कार्यक्रमों को किरण योजना में समाहित कर दिया था। किरण (KIRAN) का पूर्ण रूप 'शिक्षण द्वारा
अनुसंधान विकास में ज्ञान की भागीदारी' (Knowledge: Involvement in Research Advancement through
Nurturing) इसमें अनुसंधान, प्रौद्योगिकी विकास, प्रौद्योगिकी
प्रदर्शन, स्वरोजगार आदि के अवसर उत्पन्न करना तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
में अत्याधुनिक सुविधाओं के लिये महिला विश्वविद्यालयों को सहायता प्रदान करना
शामिल है। इसके लिये प्रतिवर्ष 75 करोड़ रुपए का बजट
आवंटन किया जाता है।
सह्याद्रि मेघा
धान की खेती के घटते रकबे की दर को
रोकने के लिये कृषि एवं बागवानी विज्ञान विश्वविद्यालय ने धान की नई किस्म
सह्याद्रि मैया विकसित की। सह्याद्रि मेघा धान की एक नई लाल किस्म है जो ब्लास्ट
रोग (Blast Disease) के लिये प्रतिरोधी और पोषक तत्वों से
भरपूर है। ब्लास्ट एक फफूंद जनित रोग है जो मैग्नापोर्ट ओरिजा (Magnaporthe Oryzae) के कारण होता है। इस बीमारी को रॉटिन नेक (Rotten Neck) या राइस फीवर (Rice Fever) के रूप में भी जाना
जाता है। यह रोग धान की वृद्धि के दौरान सभी चरणों में पौधों के सभी वायवीय भागों
को संक्रमित करता है। इस रोग से धान की पैदावार में लगभग 70-80% की कमी आती है।
आर्किया
पुणे में नेशनल सेंटर फॉर माइक्रोबियल
रिसोर्स के वैज्ञानिकों ने एक नए आर्किया का पता राजस्थान की सांभर झील में लगाया
है। इस नए आर्किया को नट्रीअल्बा स्वरूपिये (Natrialba Swarupiae) जैव प्रौद्योगिकी
विभाग की सचिव डॉ रेणु स्वरूप के नाम पर दिया गया जिन्होंने देश में माइक्रोबियल
विविधता अध्ययनों में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। आर्किया, सूक्ष्मजीवों का एक
प्राचीन समूह है जो गर्म झरनों, ठंडे रेगिस्तानों और
अति लवणीय झीलों जैसे आवासों में पनपता है। • ये जीव धीमी गति से
बढ़ते हैं और मनुष्य की आँतों
भी मौजूद होते हैं। इनमें मानव
स्वास्थ्य को प्रभावित करने की क्षमता होती है। ये रोगाणुरोधी अणुओं के उत्पादन के
लिये, अपशिष्ट जल उपचार में अनुप्रयोगों के लिये तथा एंटीऑक्सीडेंट
गतिविधियों के लिये जाने जाते हैं। ये विशेष जीव डीएनए की प्रतिकृति, पुनर्सयोजन और मरम्मत
में सहायता प्रदान करते हैं।
क्लासिकल स्वाइन फीवर
आईसीएमआर और भारतीय पशु चिकित्सा
अनुसंधान संस्थान ने क्लासिकल स्वाइन फीवर वैक्सीन (IVRI-CSF-BS) विकसित की। क्लासिकल स्वाइन फीवर एक संक्रामक बुखार है जो सुअरों के
लिये जानलेवा साबित होता है, इसके कारण देश में
सुअरों की संख्या में कमी आ रही है। भारत में इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिये
वर्ष 1964 से एक लैपिनाइज्ड क्लासिकल स्वाइन फीवर
वैक्सीन का उपयोग किया जा रहा है। इस वैक्सीन का निर्माण बड़ी संख्या में खरगोशों
को मार कर किया जाता है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान ने पहले सेल कल्चर
लैपिनाइज्ड वैक्सीन वायरस को अपनाकर एक क्लासिकल स्वाइन फीवर वैक्सीन विकसित की
थी। इसमें खरगोशों को मारना नहीं पड़ता था। नई वैक्सीन सुरक्षित एवं प्रभावशाली है, यह संक्रामक बुखार को
दोबारा वापस आने से रोकती है। नई वैक्सीन भारत सरकार की 'एक स्वास्थ्य पहल' (One Health Initiative) का हिस्सा है।
साथी
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
विभाग (Department of Science
& Technology) ने परिष्कृत
विश्लेषणात्मक और तकनीकी सहायता संस्थान (Sophisticated Analytical & Technical Help Institutes-SATHI) नामक एक योजना शुरू की। इसका उद्देश्य
शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिये एक ही छत के नीचे उच्च दक्षता से उपयुक्त
तकनीकी सुविधाएं मुहैया कराना है ताकि शिक्षा, स्टार्टअप, विनिर्माण, उद्योग और आरएंडडी
लैब आदि की ज़रूरतें आसानी से पूरी हो सके। इन केंद्रों में उच्च विश्लेषणात्मक
परीक्षण द्वारा सामान्य सेवाएँ प्रदान करने के लिये प्रमुख विश्लेषणात्मक उपकरणों
को विकसित किया जाएगा जिससे विदेशी उपकरणों पर निर्भरता में कमी आएगी। इनका
संचालन ओपन एक्सेस पॉलिसी के तहत
पारदर्शी तरीके से किया जाएगा। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने पहले ही देश में
तीन ऐसे केंद्र स्थापित किये हैं जो IIT खड़गपुर, IIT दिल्ली और बनारस
हिंदू विश्वविद्यालय में स्थित हैं।
शारंग
आयुध कारखाना बोर्ड (Ordnance Factory Board) ने भारतीय सेना को पहली अपग्रेड आर्टिलरी गन सारंग (155 एमएम/45 कैलिबर) सौंपी है। 130 एमएम वाली एम-46 आर्टिलरी गन को
अपग्रेड करके 155 एमएम तक किया गया। अपग्रेड होने के बाद
इस आर्टिलरी गन की रेंज 27 किलोमीटर से बढ़कर 36 किलोमीटर हो गई।
अनुबंध के तौर पर ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड अगले चार वर्षों में 130 एमएम वाली 300 आर्टिलरी गानों को 155 एमएम तक अपग्रेड
करेगा। गौरतलब है कि भारत ने 130 एमएम आर्टिलरी गन को
रूस से आयात किया था। इस आर्टिलरी गन में 130 एमएम बैरल लगी थी। इस
आर्टिलरी गन की मारक क्षमता 27 किलोमीटर थी।
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