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आर्थिक घटनाक्रम 2020 PART-2
CONTENTS
17-डिजिटल कर
18-डिजिटल कर (Digital Tax)
19-पाम ऑयल
20-कृषि अवसंरचना कोष
21-सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड 2020-21
22-यूजेन्स ऋण पत्र
23--राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन
24-भारतीय इस्पात उद्योग
25-भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण
26-राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र सम्मेलन
27-पूर्वी समर्पित माल गलियारा
28-दीर्घावधि रेपो परिचालन
29-ILO रिपोर्ट
17-डिजिटल कर
· गूगल और फेसबुक जैसी दिग्गज अमेरिकी डिजिटल कंपनियाँ भारत के नवीन डिजिटल कर (Digital Tax) को कुछ समय के लिये टालने की मांग कर रही हैं।
·नवीन प्रावधानों के अनुसार, भारत में डिजिटल सेवाओं की बिक्री पर 2.0% की दर से डिजिटल कर लागू होगा।
·यह कर विशेष रूप से ₹ 20 मिलियन ($ 260,000) से अधिक का व्यापार करने वाली विदेशी कंपनियों को लक्षित करता है।
मार्च 2019 में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में गूगल की भारत में बिक्री लगभग ₹41.5 बिलियन थी। यह कर ई-कॉमर्स सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियों तथा ऑनलाइन विज्ञापन के माध्यम से भारतीय ग्राहकों को लक्षित . करने वाली कंपनियों द्वारा भी देय होगा।
कुछ समय पूर्व फ्राँस ने भी बड़ी डिजिटल कंपनियों पर 3% की दर से डिजिटल कर लागू करने की योजना बनाई थी। हालाँकि गूगल के विरोध और अमेरिकी सरकार के हस्तक्षेप के पश्चात् फ्रॉस ने इस कर को कुछ समय तक टालने का निर्णय लिया है।
18-डिजिटल कर (Digital Tax)
• डिजिटल कंपनियाँ डिजिटल कर की नवीन योजना की तैयारी के लिये और अधिक
समय चाहती हैं। गूगल को भारत के नए कर के अधीन आने वाली अपनी विदेशी बिक्री की
पहचान करने के लिये समय की आवश्यकता होगी।
• क्लाउड कंप्यूटिंग के अलावा गूगल का भारत के डिजिटल भुगतान बाज़ार में भी एक विशेष स्थान है। कंपनी ने भारतीय ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए 'तेज़' (Tez) नाम से एक विशिष्ट डिजिटल भुगतान एप भी लॉन्च
किया था, कुछ समय पश्चात् इस मोबाइल एप का नाम परिवर्तित कर 'गूगल पे' (Google Pay) कर दिया गया। एक अनुमान के अनुसार, भारत का मोबाइल भुगतान बाज़ार वर्ष 2023 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा, जो कि वर्ष 2018 में 200 बिलियन डॉलर था।
•
यह इसलिये भी बड़ी
कंपनियों की विस्तार परियोजनाओं के समक्ष एक बड़ी बाधा बन सकता है, क्योंकि यह ऐसे समय में आया है, जब विश्व की लगभग सभी कंपनियाँ COVID-19 महामारी के कारण संकट का सामना कर रही हैं।
19-पाम ऑयल
भारत में खाद्य तेल
की मांग तथा पाम ऑयल की भारत में पारिस्थितिक अनुकूलता के कारण पाम ऑयल का उत्पादन
बढ़ाने पर बल दिया गया है, ताकि भारत में तेल की बढ़ती मांग की समस्या का
स्थायी समाधान निकाला जा सके। महत्त्वपूर्ण जानकारी • पाम ऑयल विश्व के उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों के समान । भौगोलिक
क्षेत्रों में पनपने वाली फसल है, जो खाद्य और घरेलू उत्पादों के प्रयोजन हेतु प्रयुक्त की जाती है। पाम ऑयल वनस्पति तेल
के मुख्य वैश्विक स्रोत के रूप में उभरा है, जो दुनिया के उत्पादन मिश्रण का लगभग 33% है।
• भारत दुनिया में पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक है,
जो - इंडोनेशिया और मलेशिया से कुल वैश्विक मांग का लगभग 23% आयात करता है। • इंडोनेशिया, मलेशिया, नाइजीरिया, थाईलैंड और कम्बोडिया
• वर्तमान में भारत में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु पाम ऑयल के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। आंध्र प्रदेश देश के कुल पाम - ऑयल
के 80% से अधिक उत्पादन के साथ प्रथम स्थान पर है।
• पाम ऑयल की खेती में परिपक्वता अवधि लंबी होती
है। कम-से-कम 4-5 वर्षों के पश्चात् ही किसानों को इससे आय प्राप्त होती है।
• छोटे और सीमांत किसानों को सीमित संसाधनों के
कारण इसका लाभ नहीं मिल पाना।
• अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे पाम ऑयल की
कीमतों में उतार-चढ़ाव की स्थिति का बने रहना।
• मानसून की अनिश्चितता और अनियमितता के कारण पानी
की कमी।
• खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में भिन्नता। पाम ऑयल
उत्पादन की आवश्यकता • स्थानीय स्तर पर पाम ऑयल की पैदावार में वृद्धि
होने से खाद्य तेल के आयात खर्च में कमी आने से विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
• किसानों की आय को वर्ष 2022 तक दोगुना करने में मदद मिलेगी।
• देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। •
सस्ता खाद्य तेल देश की बढ़ती जनसंख्या की मांग की पूर्ति के अनुकूल है।
• पाम ऑयल की खेती के महत्त्व को देखते हुए कृषि
सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग ने 1991-92 में संभावित राज्यों में तिलहन और दलहन पर प्रौद्योगिकी मिशन (TMOP) शुरू किया था।
• आठवीं और नौवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान एक
व्यापक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में तेल पाम विकास कार्यक्रम (OPDP) शुरू किया गया।
• दसवीं और ग्यारहवीं योजना के दौरान भारत सरकार ने
तिलहन, दलहन, पाम ऑयल और मक्का की
एकीकृत योजना (ISOPOM) के अंतर्गत पाम ऑयल की खेती के लिये सहायताप्रदान
की।
• पाम ऑयल की खेती को बढ़ावा देने के लिये भारत
सरकार ने वर्ष 2011-12 के दौरान राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत पाम
ऑयल के क्षेत्र विस्तार (OPAE) पर एक विशेष कार्यक्रम का समर्थन किया, जिसका उद्देश्य पाम ऑयल की खेती के अंतर्गत 60,000 हेक्टेयर क्षेत्र को लाना था। यह मार्च 2014 तक जारी रहा।
• बारहवीं योजना के दौरान तिलहन और पाम ऑयल पर
राष्ट्रीय मिशन (NMOOP) शुरू किया गया, जिसमें मिनी मिशन-II (MM-II) पाम ऑयल क्षेत्र के
विस्तार और उत्पादकता में वृद्धि के लिये समर्पित है।
20-कृषि अवसंरचना कोष
28 जुलाई, 2020 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नई
देशव्यापी केंद्रीय क्षेत्र योजना-कृषि अवसंरचना कोष (Central Sector
Scheme-Agriculture Infrastructure Fund) को मंजूरी प्रदान की
• यह योजना ऋण अनुदान एवं वित्तीय सहायता के माध्यम
से फसल कटाई के बाद बुनियादी ढाँचा प्रबंधन एवं
सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों हेतु व्यवहारिक परियोजनाओं में निवेश के लिये मध्यम एवं दीर्घकालिक ऋण वित्तपोषण की सुविधा प्रदान
करेगी।
• इस योजना के अंतर्गत बैंकों एवं वित्तीय
संस्थानों के द्वारा ऋण के रूप में ₹1 लाख करोड़ की राशि प्राथमिक कृषि साख समितिया (Primary
Agricultural Credit Societies-PACS). विपणन सहकारी समितियों (Marketing
Cooperative Societies), किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producers
Organizations), स्वप सहायता समूहों (Self Help Group), किसानों, संयुक्त देयता समूह (Joint Liability
Groups), बहुउद्देशीय सहकारी समितिया (Multipurpose
Cooperative Societies), कृषि उद्यमियो। स्टार्ट-अप, एग्रीगेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स (Aggregation Infrastructure
Providers) और केंद्रीय/राज्य एजेंसियों या स्थानीय निकायों द्वारा प्रायोजित सार्वजनिक निजी
भागीदारी परियोजनाओं को उपलब्ध कराई जाएगी।
21-सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड 2020-21
सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड 2020-2021
के नाम से ये बॉण्ड भारत सरकार की ओर से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा
जारी किये जाएंगे।
इनकी बिक्री विभिन्न
व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों(HUFs), ट्रस्ट, विश्वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्थानों जैसे
निकायों तक सीमित रहेगी।
• SGB की न्यूनतम स्वीकार्य सीमा 1 ग्राम सोना है।
• व्यक्तियों और HUFs के लिये 4 किलोग्राम तथा ट्रस्ट एवं इसी तरह के अन्य निकायों के लिये 20 किलोग्राम प्रति वित्त वर्ष (अप्रैल-मार्च) की अधिकतम सीमा होगी।
• SGB की बिक्री अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (लघु वित्त
बैंकों और भुगतान बैंकों को छोड़कर), स्टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SHCIL), नामित डाकघरों और मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों जैसे कि नेशनल
स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड के ज़रिये की जाएगी।
• संयुक्त रूप से धारण किये जाने की स्थिति में 4
किलोग्राम की निवेश सीमा केवल प्रथम आवेदक पर लागू होगी।
• बॉण्ड का मूल्य भारतीय रुपए में तय किया जाएगा।
निर्गम मूल्य उन लोगों के लिये प्रति ग्राम ₹50 कम होगा जो इसकी खरीदारी ऑनलाइन करेंगे और इसका भुगतान डिजिटल मोड के
जरिये करेंगे।
• बॉण्ड का भुगतान नकद (अधिकतम ₹20,000
तक), डिमांड ड्राफ्ट, चेक अथवा इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग के ज़रिये किया जा
सकेगा। निवेशकों को प्रतिवर्ष 2.50 प्रतिशत की निश्चित दर से ब्याज दिया जाएगा,
जो अंकित मूल्य पर हर छह महीने में देय होगा।
• इनका उपयोग ऋणों के लिये जमानत या गारंटी के रूप
में किया जा सकता है।
• आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधान के अनुसार, स्वर्ण बॉण्ड पर प्राप्त होने वाले ब्याज पर कर अदा करना होगा।
किसी भी व्यक्ति को SGB के विमोचन पर होने वाले पूंजीगत लाभ को कर मुक्त
कर दिया गया है। किसी भी निर्धारित तिथि पर बॉण्ड जारी होने के एक पखवाड़े के भीतर इनकी ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज पर हो सकेगी।
• बैंकों द्वारा हासिल किये गए बॉण्डों की गिनती
वैधानिक तरलता अनुपात (SLR)
के संदर्भ में की जाएगी।
• यह भारत में कार्य करने वाले सभी अनुसूचित बैंकों (देशी तथा विदेशी)
की सकल जमाओं का वह अनुपात है, जिसे बैंकों को अपने पास रखना होता है।
• वर्ष 2007 में इसकी 25%
की न्यूनतम सीमा को समाप्त कर दिया गया। अब यह 25% के नीचे भी रखा जा सकता है। SLR से बैंकों के कर्ज देने की क्षमता नियंत्रित होती है। अगर कोई बैंक
मुश्किल परिस्थिति में फँस जाता है तो रिज़र्व बैंक SLR की मदद से ग्राहकों के पैसे की कुछ हद तक भरपाई कर सकता है।
• सोने की भौतिक मांग को कम करना
• प्रतिवर्ष निवेश के उद्देश्य से आयात होने वाले
सोने के एक हिस्से को वित्तीय बचत में
परिवर्तित करना। प्रमुख चुनौतियाँ
• अब तक सोने की औसत खपत या स्वर्ण बॉण्ड में औसत
निवेश मांग की तुलना में बहुत कम सोने का निवेश हुआ है।
• लोगों द्वारा सोने के स्रोत को छुपाने के प्रयास
के कारण सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड योजना
की सफलता आसान नहीं होगी।
• बॉण्ड की 5 साल की लॉक-इन अवधि बॉण्ड योजना के लिये ज़्यादा फायदेमंद नहीं है।
बाज़ार में अधिक तरलता सुनिश्चित करने के लिये बॉण्ड्स को पाँच वर्ष से पहले बेचने
की अनुमति दी जानी चाहिये। लोगों का सोने की प्रति अधिक लगाव एवं बॉण्ड जैसे
माध्यमों में अविश्वास प्रमुख बाधा है।
22-यूजेन्स ऋण पत्र
• ऋण पत्र (लेटर ऑफ क्रेडिट) में ऋण परिपक्वता और वास्तविक भुगतान की अवधि निर्धारित कर दी जाती
है। इसका दोनों पक्षों द्वारा संदर्भ के रूप में उपयोग किया जाता है।
. यह क्रेता के लिये एक लचीला वित्तीय उपकरण है जो उसकी कार्यशील पूंजी में वृद्धि करने के साथ ही
विक्रेता को भुगतान किये जाने से पहले ही बेचने के लिये स्टॉक की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
• खरीदार को ब्याज मुक्त कार्यशील पूंजी मिलने तथा
कुशल कार्यशील पूंजी प्रबंधन से
पूंजी चक्र को बेहतर बनाने में मदद मिलती है।
• खरीदार को भुगतान करने से पहले ही माल प्राप्त
होने के कारण माल की गुणवत्ता की जाँच हो जाती है।
• कोल इंडिया लिमिटेड के इस कदम से बिजली क्षेत्र
के उपभोक्ताओं को राहत तो मिलेगी
ही साथ ही विद्युत प्रणाली में तरलता भी बढ़ाई जा सकेगी।
• खरीदार को क्रेडिट अवधि देने से विक्रेता को
कार्यशील पूंजी का प्रबंधन करना होता
है।
• यूजेन्स ऋण पत्र का उपयोग आमतौर पर तब किया जाता
है जब खरीदार की ऋण साख अधिक हो या वह क्रेता का बाज़ार
हो। इस कारण विक्रेता यूजेन्स ऋण पत्र की उदार शर्तों के लिये सहमत हो जाता है।
23-राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन
प्रधानमंत्री की
अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने ₹1480
करोड के कुल परिव्यय के साथ देश को तकनीकी वस्त्रों के क्षेत्र में
वैश्विक स्तर पर अग्रणी राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की दष्टि से राष्टीय
तकनीकी वस्त्र मिशन के गठन को अपनी स्वीकृति
·
इस मिशन के 4 प्रमुख घटक- अनुसंधान, नवाचार और विकासःसंवर्द्धन व विपणन विकास; निर्यात संवर्द्धन एवं शिक्षा; प्रशिक्षण तथा कौशल
विकास होंगे।
·
इसकी शुरुआत देश के विभिन्न मिशनों, कार्यक्रमों आदि में तकनीकी कपड़ों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर
स्टार्टअप एवं वेंचर को प्रोत्साहन के साथ नवाचार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से
की गई है। साथ ही क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित विशेषज्ञ की अध्यक्षता में कपड़ा
मंत्रालय में एक मिशन निदेशालय चालू किया जाएगा।
·
कृषि-टेक्सटाइल, जियो-टेक्सटाइल और चिकित्सा वस्त्रों के विकास पर
ध्यान केंद्रित करने के लिये जैव-अपघटनीय तकनीकी वस्त्रों का निर्माण किया जाएगा।
तकनीकी वस्त्रों के लिये स्वदेशी मशीनरी और उपकरणों के विकास से 'मेक इन इंडिया' की भावना को बढ़ावा मिलेगा, और कम पूंजीगत लागत के माध्यम
से वस्त्र उद्योग को प्रतिस्पर्धात्मक बनाया जा सकेगा।
·
उन्नत देशों में 30-70% की तुलना में भारत में तकनीकी वस्त्रों के
उत्पादन का स्तर महज 5-10% है। इस मिशन का उद्देश्य देश में तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन स्तर में सुधार करना
है।
• तकनीकी वस्त्र ऐसे कपड़ा सामग्री और उत्पाद हैं, जो सौंदर्य विशेषताओं की बजाय मुख्य रूप से तकनीकी प्रदर्शन और कार्यात्मक गुणों के लिये निर्मित होते हैं।
• तकनीकी कपड़ा उत्पादों को उनके इस्तेमाल
क्षेत्रों के आधार पर 12 विभिन्न श्रेणियों (एग्रोटेक, बिल्डटेक, क्लोथेक, जियोटेक, होमटेक, इंडिटेक, मोबिलटेक, मेडिक, प्रोटेक, स्पोर्ट्सटेक, ओएकोटेक, पैकटेक) में विभाजित किया गया है।
24-भारतीय इस्पात उद्योग
हाल ही में 'इस्पात क्लस्टर विकास' (Steel Cluster Development) विषय पर इस्पात मंत्रालय में सांसद की सलाहकार समिति की बैठक का आयोजन
किया गया।
• कच्चे इस्पात के उत्पादन में चीन के पश्चात् भारत
दूसरे स्थान पर है तथा चीन और अमेरिका के पश्चात् भारत विश्व
में तीसरा सबसे बड़ा इस्पात उपभोक्ता है (आर्थिक समीक्षा
• वर्ष 2011 में जहाँ कुल
निर्यात में लौह और इस्पात का हिस्सा 2.7 प्रतिशत था, वहीं यह वर्ष 2019-2020 में बढ़कर 3.0 | प्रतिशत हो गया। (आर्थिक समीक्षा 2019-2020)
• वर्ष 2018-19 के दौरान इसकी प्रति व्यक्ति खपत केवल 74.1
किलोग्राम थी (आर्थिक समीक्षा 2019-2020 )।
• यह एक फीडर उद्योग है, जिसके उत्पादों का उपयोग विनिर्माण, ढाँचागत संरचना निर्माण, वाहन उद्योग,
मशीनरी, रक्षा, रेल जैसे बड़े
क्षेत्रों में प्रमुख इनपुट के रूप में किया जाता है। भिलाई, दुर्गापुर, बर्नपुर, जमशेदपुर, राऊरकेला, बोकारो जैसे सभी महत्त्वपूर्ण इस्पात उत्पादन
केंद्र चार राज्यों, यथा-पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में विस्तृत हैं। कर्नाटक में
भद्रावती और विजयनगर, आंध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम, तमिलनाडु में सलेम आदि इस्पात केंद्र स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हैं।
• वर्ष 1991 के पश्चात् आर्थिक
सुधारों के अंतर्गत क्षमता निर्माण हेतु लाइसेंस की आवश्यकता को समाप्त करने के साथ ही कुछ स्थानीय
प्रतिबंधों को छोड़कर इस्पात उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित
उद्योगों की सूची से हटाने के परिणामस्वरूप भारतीय इस्पात उद्योग में
प्रतिस्पर्द्धा तथा विकास की गति में वृद्धि हुई।
• सरकार ने उद्योग में विदेशी निवेश को आकर्षित
करने के लिये स्वचालित मार्ग से 100 प्रतिशत विदेशी
इक्विटी निवेश की स्वीकृति प्रदान कर
दी है।
• चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने तथा आयात को
कम करने के उद्देश्य से इस्पात स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति
जारी की गई।
• भारत सरकार द्वारा बुनियादी ढाँचा तथा सड़क
परियोजनाओं को शुरू करने और
ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने से इस्पात की मांग को बढ़ावा मिलेगा।
राष्ट्रीय इस्पात
नीति (NSP) 2017 भारतीय इस्पात उद्योग को विश्व स्तर पर
प्रतिस्पर्धी बनाने का लक्ष्य रखती है। इस नीति में 2030-31 तक 300 मिलियन टन (MT) स्टील बनाने की क्षमता अर्जित करने और 160 किलोग्राम प्रति व्यक्ति स्टील की खपत की परिकल्पना की गई है।
• भारत सरकार द्वारा इस्पात की वस्तुओं पर
एंटी-डंपिंग सहित सुरक्षा शुल्क लगाया गया।
• घरेलू मांग की कमी के कारण इस्पात कंपनियाँ बड़े
स्तर पर कर्ज से ग्रस्त हैं। धातु शोधन संबंधी (Metallurgical)
कोक की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं है।
• उच्च पूंजी लागत, निम्न प्रौद्योगिकी और सरकार की संरक्षणवादी नीतियों के कारण निवेश की लागत उच्च है।
• सार्वजनिक क्षेत्र की अधिकांश इकाइयाँ अत्यधिक
सामाजिक भार, खराब श्रम संबंधों, अकुशल प्रबंधन, क्षमता के कम आकलन आदि के कारण अक्षमता से ग्रस्त हैं।
• चीन, कोरिया और अन्य
देशों से इसका सस्ता अयात भी घरेलू उत्पादकों के लिये चिंता का विषय है।
• तालाबंदी, कच्चे माल की कमी,
ऊर्जा संकट, अकुशल प्रबंधन आदि कई कारणों से संभावित क्षमता का उपयोग नहीं हो पाया है। दुर्गापुर
जैसे इस्पात संयंत्र अपनी क्षमता का केवल 50 प्रतिशत उपयोग कर रहे हैं।
25-भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण
• भारत की अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्याँमार, नेपाल और पाकिस्तान के साथ 15000 किमी. लंबी
अंतर्राष्ट्रीय सीमा है तथा व्यक्तियों, माल एवं वाहनों की
सीमा पार आवाजाही के लिये कई निर्दिष्ट प्रवेश और निकास बिंदु होने के बावजूद
सरक्षा. आव्रजन. सीमा शल्क. संयंत्र और पश संगरोध इत्यादि सहित अन्य आवश्यक
सुविधाओं, जैसे- वेयरहाउसिंग, पार्किंग, बैंकिंग, विदेशी मुद्रा
ब्यूरो का प्रावधान जैसे सरकारी कार्यों के समन्वय के लिये कोई एकल एजेंसी नहीं थी।
• इसी के मद्देनज़र भूमि बंदरगाह प्राधिकरण अधिनियम,
2010 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में भारतीय भूमि
पत्तन प्राधिकरण की स्थापना की गई।
• सीमा पर एकीकृत चेक पोस्ट पर अनिवार्य सुरक्षा आवश्यकताओं की व्यवस्था करना।
• एकीकृत चेक पोस्ट पर राष्ट्रीय राजमार्गों,
राज्य राजमार्गों और रेलवे के अलावा सड़कों, टर्मिनलों एवं सहायक
भवनों का निर्माण व रखरखाव करना।
• एकीकृत चेक पोस्ट पर संचार, सुरक्षा, माल की हैंडलिंग और स्कैनिंग उपकरणों की खरीद,
स्थापना व देखभाल करना। आव्रजन, सीमा शुल्क, सुरक्षा, कराधान प्राधिकरण,
पशु और संयंत्र संगरोध, गोदामों, कार्गो यार्ड, पार्किंग क्षेत्र , बैंक, डाकघर, संचार सुविधाएँ,
पर्यटक सूचना केंद्र, प्रतीक्षालय, कैंटीन, जलपान गृह, स्वास्थ्य सेवाएँ या अन्य आवश्यक सेवाओं के लिये उपयुक्त स्थान और
सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
• एकीकृत चेक पोस्ट पर तैनात अपने कर्मचारियों के
लिये आवासीय भवनों तथा आवासीय सुविधाओं का निर्माण करना।
• माल के भंडारण या प्रसंस्करण के लिये गोदामों,
कंटेनर डिपो और कार्गो परिसरों की स्थापना और रखरखाव सुनिश्चित करना।
• एकीकृत चेक पोस्ट पर यात्रियों और अन्य
व्यक्तियों के उपयोग के लिये पोस्टल, मनी एक्सचेंज,
बीमा और टेलीफोन सुविधाओं की व्यवस्था करना।
• एकीकृत चेक पोस्ट की सुरक्षा के लिये उचित
व्यवस्था करना और उनके संबंध में
संबंधित कानून के अनुसार, वाहनों के प्रवेश और निकास को विनियमित और
नियंत्रित करना। भारत सरकार के कानून, सुरक्षा और
प्रोटोकॉल के तहत एकीकृत चेक पोस्ट पर वाहनों की आवाजाही और यात्रियों के प्रवेश
और निकास, परिवहन कर्मचारियों, हैंडलिंग एजेंटों, समाशोधन और अग्रेषण एजेंटों और माल को नियंत्रित करना। • समय-समय पर विभिन्न सीमावर्ती एजेंसियों के बीच समन्वय और उन्हें सुविधा प्रदान करना।
एकीकृत चेक पोस्ट (ICP)
शत्रुर्तापूर्ण गतिविधियों पर नियंत्रण द्वारा देश की सीमाओं को
सुरक्षित रखने की एक प्रणाली की स्थापना के साथ-साथ व्यापार और वाणिज्य को भी
सुविधाजनक बनाने का प्रयास करती है।
26-राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र सम्मेलन
भारतीय कृषि
अनुसंधान परिषद द्वारा 28 फरवरी, 2020 से | मार्च, 2020 तक नई दिल्ली में राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र सम्मेलन 11वें संस्करण का आयोजन किया गया।
• सम्मेलन में कृषि विज्ञान केंद्रों को केवल साधन
संपन्न और प्रगतिशील किसानों की सेवा करने की बजाय छोटे, सीमांत और वंचित किसानों पर
भी ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया गया।
• कृषि विज्ञान केंद्रों को प्रयोगशालाओं के लाभ
खेतों तक ले जाने (Lab to Land) की ज़िम्मेदारी निभाने की बात की गई।
• सम्मेलन में कहा गया कि देश में बेहतर फसल
किस्मों को लाया गया तथा किसानों के
लिये 171 मोबाइल एप्लीकेशन्स और तीन लाख से अधिक कॉमन
सर्विस सेंटर/सार्वजनिक सेवा केंद्र (CSC/सीएससी) खोले जा
चुके हैं। सम्मेलन में वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के प्रधानमंत्री के
निर्धारित लक्ष्य को दोहराया गया।
• 1974 में पुदुचेरी में स्थापित पहले कृषि विज्ञान
केंद्र के पश्चात् दिसंबर 2019 तक कुल 716 कृषि विज्ञान केंद्र स्थापित किये जा चुके हैं।
• KVKs शत् प्रतिशत भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित है तथा
इन्हें कृषि विश्वविद्यालयों, आईसीएआर संस्थानों, संबंधित सरकारी विभागों और कृषि में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों में शुरू किया गया है।
• ये केंद्र राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (NARS)
का एक अभिन्न अंग है। कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में स्थान विशिष्ट प्रौद्योगिकी
मॉड्यूल के आकलन पर उद्यमों, प्रौद्योगिकी मूल्यांकन, शोधन और प्रदर्शनों के माध्यम से, कृषि विज्ञान केंद्र कृषि प्रौद्योगिकी के ज्ञान
और संसाधन केंद्रों के रूप में कार्य कर रहे हैं।
KVKs ज़िले की कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये
सार्वजनिक, निजी और स्वैच्छिक क्षेत्रों की पहल का समर्थन
करते हैं तथा किसानों को कृषि विस्तारित सेवाएँ उपलब्ध करवाते हैं।
KVKs की महत्त्वपूर्ण गतिविधियाँ
• विभिन्न कृषि प्रणालियों के तहत कृषि
प्रौद्योगिकियों की स्थान विशिष्टता का आकलन करने के लिये कृषि परीक्षण। खेतों पर
प्रौद्योगिकियों द्वारा उत्पादन क्षमता स्थापित करने के लिये फ्रंटलाइन प्रदर्शनों
को व्यवस्थित करना।
• आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों के अनुसार अपने
ज्ञान और कौशल को अपडेट कर किसानों
और कर्मियों की क्षमता का विकास करना। जिले की कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये सार्वजनिक, निजी और स्वैच्छिक
क्षेत्र की पहल का समर्थन करते हुए कृषि प्रौद्योगिकियों के ज्ञान और संसाधन
केंद्र के रूप में काम करना। - किसानों के हित के विभिन्न विषयों पर आईसीटी और
अन्य ___ मीडिया माध्यमों का उपयोग करते हुए कृषि परामर्श
प्रदान करना।
कृषि विस्तारित सेवा
. ग्रामीण आबादी
हेतु निर्देशित, एक अनौपचारिक शैक्षणिक प्रक्रिया, जो उनकी समस्याओं को हल करने में मदद के लिये सलाह और जानकारी प्रदान
करती है, विस्तार का उद्देश्य पारिवारिक की दक्षता,
उत्पादन और परिवार के जीवन स्तर में वृद्धि करना है।
• कृषि विस्तार का उद्देश्य कृषि संबंधी समस्याओं
के प्रति किसानों के दृष्टिकोण को
बदलना है। इसका संबंध केवल भौतिक और आर्थिक उपलब्धियों से नहीं, बल्कि स्वयं ग्रामीण लोगों के विकास से भी है। इसलिये विस्तार एजेंट
ग्रामीण लोगों के साथ चर्चा करके उनकी समस्याओं के प्रति स्पष्ट अंतर्दृष्टि
प्राप्त करते हैं और यह भी तय करते हैं कि इन समस्याओं को कैसे दूर किया जाए।
• सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी सुविधा कृषि
विस्तार, सलाहकार सेवाओं और किसानों तक पहुँचने के लिये बहुत उपयोगी है।
• IFPRI के अनुसार, कृषि उत्पादकता में वृद्धि कर, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, ग्रामीण आजीविका में सुधार करने और कृषि को आर्थिक विकास के इंजन के
रूप में बढ़ावा देने में कृषि विस्तारित सेवाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कृषि में तकनीक की भूमिका
• विशेष रूप से सेंसर, उपकरण, मशीन और सूचना प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण
आधुनिक समय में खेती और कृषि कार्य दशकों पहले की तुलना में अधिक आसान है। आज
रोबोट, तापमान और नमी सेंसर, हवाई चित्र और जीपीएस जैसी परिष्कृत तकनीकें कृषि व्यवसाय को अधिक
लाभदायक, कुशल, सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल बनाने में मदद करती हैं।
• किसानों को अब सभी खेतों में एकसमान रूप से पानी,
उर्वरक और कीटनाशक देने की ज़रूरत नहीं होती। इसके बजाय वे विशिष्ट क्षेत्रों को
लक्षित करते हुए आवश्यक मात्रा में ही इनका उपयोग कर सकते हैं। यहाँ तक कि अलग-अलग
फसलों को भी लक्षित कर सकते है।
• उच्च फसल उत्पादकता, पानी, उर्वरक और कीटनाशकों के उपयोग में कमी से खाद्य कीमतों को कम रखने में मदद मिलती
• नदियों और भूजल में उर्वरक व रसायनों के कम
प्रवाह से प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को सुरक्षित रखा जा
सकता है।
• इसके अलावा रोबोटिक प्रौद्योगिकियाँ प्राकृतिक
संसाधनों, जैसे-हवा और पानी की गुणवत्ता पर अधिक विश्वसनीय
निगरानी और प्रबंधन में मदद करती हैं।
27-पूर्वी समर्पित माल गलियारा
• समर्पित माल गलियारा (DFC) कार्यक्रम के हिस्से के रूप में इस परियोजना के अंतर्गत पंजाब राज्य
में लुधियाना से पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के पास दनकुनी तक फैली एक 1,856
किमी लंबी फ्रेट लाइन का निर्माण करना शामिल
• समर्पित माल गलियारों के निर्माण, संचालन और रखरखाव के लिये भारतीय रेल मंत्रालय द्वारा स्थापित एक स्पेशल पर्पज व्हिकल (SPV)
डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (DFCCIL)
द्वारा परियोजना को कार्यान्वित किया जा रहा
• पश्चिम बंगाल से शुरू होकर पंजाब में समाप्त होने
से पहले झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और
हरियाणा से गुजरने वाली EDFC परियोजना का मुख्य उद्देश्य पूर्वी गलियारे पर
माल ढुलाई व्यवस्था को मज़बूत करना है।
• यह एक ब्रॉड गेज कॉरिडोर है, जो उत्तर प्रदेश के दादरी से शुरू होकर देश के सबसे बड़े कंटेनर बंदरगाह, जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह, मुंबई तक 1,504
किलोमीटर की लंबाई में विस्तृत है।
• जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी द्वारा आर्थिक
साझेदारी के लिये विशेष शर्तों (एसटीईपी) के तहत परियोजना
को 4 बिलियन डॉलर के उदार ऋण द्वारा वित्तपोषित किया
जाएगा।
• यह वडोदरा, अहमदाबाद, पालनपुर, फुलेरा और रेवाड़ी
जैसे महत्त्वपूर्ण स्थानों से होकर गुजरता है। •
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र इसके मार्ग में पड़ते हैं।
• DFCCIL रेल मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा संचालित एक निगम है, जो नियोजन और विकास कार्यों की देखभाल करने, वित्तीय संसाधनों को जुटाने और समर्पित माल गलियारों के निर्माण,
रखरखाव और संचालन का कार्य करता है। कंपनी अधिनियम 1956 के तहत DFCCIL को 30 अक्तूबर,
2006 को एक कंपनी के रूप में पंजीकृत किया गया है।
• यह उचित प्रौद्योगिकी के साथ एक माल गलियारा
बनाने में भारतीय रेलवे के लिये
अतिरिक्त क्षमता अर्जित कर रेलवे यात्रियों को लिये कुशल, विश्वसनीय, सुरक्षित और सस्ते विकल्प की गारंटी
• ग्राहकों को संपूर्ण परिवहन समाधान प्रदान करने
के साथ ही DFCCIL मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक पार्क स्थापित करने का काम
भी करता है।
• उपयोगकर्ताओं को उनकी परिवहन आवश्यकताओं के लिये
रेलवे को पर्यावरण के अनुकूल रूप में अपनाने के लिये
प्रोत्साहित कर यह पारिस्थितिक स्थिरता की दिशा में सरकार की पहल का समर्थन करता
है।
28-दीर्घावधि रेपो परिचालन
• RBI द्वारा शुरू किये गए ऑपरेशन ट्विस्ट (Operation
Twist) के साथ यह नया उपाय केंद्रीय बैंक द्वारा बॉण्ड
यील्ड के प्रबंधन और ब्याज दर में कटौती के पुश ट्रांसमिशन के लिये एक प्रयास
• ध्यातव्य है कि RBI ने इससे पहले ब्याज दरों को नीचे लाने के लिये अमेरिकी तर्ज पर 'ऑपरेशन ट्विस्ट (Operation Twist)'
• LTRO एक ऐसा उपकरण है, जिसके तहत केंद्रीय बैंक प्रचलित रेपो दर पर बैंकों को एक साल से तीन साल की अवधि
के लिये ऋण प्रदान करता है तथा कोलेटरल के रूप में सरकारी प्रतिभूतियों को लंबी अवधि के लिये स्वीकार करता है।
• RBI तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity
AdjustmentFacility- LAF) और सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal
Standing Facility- MSF) के माध्यम से बैंकों को उनकी तत्काल जरूरतों के
लिये 1-28 दिनों हेतु ऋण मुहैया कराता है, जबकि LTRO के माध्यम से 1 से 3 वर्ष के लिये ऋण
उपलब्ध कराएगा।
• RBI ने बाजार की मौजूदा परिस्थितियों में उचित लागत पर टिकाऊ तरलता उपलब्धता के बारे में बैंकों को आश्वस्त
करने एवं उत्पादक क्षेत्रों में ऋण प्रवाह को बढ़ाने के लिये बैंकों को परिपक्वता
परिवर्तन को सुचारू और निर्बाध रूप से आगे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित के उद्देश्य
से LTRO की शुरुआत की है।
देश में आर्थिक मंदी
से निपटने के लिये RBI लगातार आसान वित्त नीतियों के माध्यम से
अर्थव्यवस्था को उत्प्रेरित करने का प्रयास कर रहा है।
• जनवरी 2019 से रेपो रेट (जिस दर पर बैंक RBI से त्वरित धन उधार लेते हैं) में कटौती की गई, लेकिन इन दरों में कटौती का बहुत कम लाभ अभी तक बैंकों और अन्य
उधारदाताओं द्वारा उधार प्राप्तकर्ताओं
प्रदान किया गया है।
• RBI का मानना है कि रेपो दर (5.15 फीसदी) पर बैंकों को लंबी अवधि के लिये धन का उपलब्ध कराने से उन्हें अपने मार्जिन को बनाए रखते
हुए खुदरा और औद्योगिक ऋणों पर दरों को कम करने में मदद मिल सकती है।
| LTRO बॉण्ड मार्केट में अल्पावधि की प्रतिभूतियों (1-3
वर्ष की अवधि) के लिये यील्ड (Yield) कम करने में भी मदद करेगा।
• RBI द्वारा रेपो रेट में कमी करने के बावजूद बैंक
उसका लाभ ऋण प्राप्तकर्ताओं को नहीं दे रहे थे किंतु अब
दीर्घावधि के लिये ऋण प्राप्त होने से बैंक आसानी से ऋण प्रदान कर सकते हैं।
• ऋण तक आसान पहुँच के कारण उपभोग में वृद्धि की जा
सकेगी, जो कि वर्तमान आर्थिक सुस्ती का सबसे बड़ा कारण
बना हुआ है।
• यह एक ऐसा उपाय है जिस पर बाज़ार सहभागियों को
उम्मीद है कि यह अल्पकालिक दरों को कम करेगा और कॉपोरेट
बॉण्ड में निवेश को भी बढ़ावा देगा।
• रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक बेरोज़गारी में लगभग 2.5 मिलियन की वृद्धि का अनुमान है।
• गौरतलब है कि पिछले 9 वर्षों में वैश्विक बेरोज़गारी में स्थिरता की स्थिति बनी हुई थी किंतु धीमी वैश्विक विकास गति के कारण बढ़ते श्रमबल के अनुपात में रोज़गार का सृजन नहीं
हो पा रहा है।
• रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में बेरोजगारों की संख्या लगभग 188 मिलियन है। इसके अलावा लगभग 165 मिलियन लोगों के पास पर्याप्त आय वाला रोज़गार नहीं है और लगभग 120
मिलियन लोग या तो सक्रिय रूप से काम की तलाश में हैं या श्रम बाज़ार
तक पहँच से दूर हैं। इस प्रकार विश्व में लगभग 470 मिलियन लोग रोज़गार की समस्या से परेशान हैं।
वर्तमान में
कार्यशील गरीबी (क्रय शक्ति समता शर्तों में प्रतिदिन 3.20 अमेरिकी डॉलर से कम आय के रूप में परिभाषित) वैश्विक स्तर पर कार्यशील
आबादी के 630 मिलियन से अधिक या पाँच में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है।
• लिंग, आयु और भौगोलिक
स्थिति से संबंधित असमानताएँ रोज़गार बाज़ार को प्रभावित करती हैं। रिपोर्ट से यह
स्पष्ट है कि ये कारक व्यक्तिगत अवसर और
आर्थिक विकास दोनों को सीमित करते हैं।
• 15-24 वर्ष की आयु के कुल 267 मिलियन युवा रोज़गार, शिक्षा या प्रशिक्षण में संलग्न नहीं हैं तथा इससे अधिक संख्या में लोग कार्य संबंधी खराब परिस्थितियों में भी कार्य कर
रहे हैं।
• व्यापार प्रतिबंध और संरक्षणवाद में वृद्धि
रोज़गार पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। उत्पादन के कारकों की तुलना में
मजदूरी के रूप में प्राप्त आय में महत्त्वपूर्ण गिरावट
आई है।
• वार्षिक WESO ट्रेंड रिपोर्ट में श्रम बाज़ार के प्रमुख मुद्दों का विश्लेषण किया
गया है जिसमें बेरोज़गारी, श्रम का अभाव, कार्यशील गरीबी, आय असमानता, श्रम-आय हिस्सेदारी जैसे कारक प्रतिभा के अनुरूप रोज़गार प्राप्त करने
में बाधा पहुंचाते हैं। आर्थिक विकास की वर्तमान गति और स्वरूप गरीबी को कम करने
एवं निम्न आय वाले देशों में कार्य संबंधी परिस्थितियों में सुधार की दिशा में सबसे बड़ी बाधा हैं।
• ILO की इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020-2030 के बीच विकासशील देशों में मध्यम या चरम कार्यशील
गरीबी बढ़ने की उम्मीद है, जिससे वर्ष 2030 तक गरीबी उन्मूलन पर सतत् विकास
लक्ष्य 1 को प्राप्त करने में बाधा आएगी।
• श्रम की कमी और खराब गुणवत्ता वाली नौकरियाँ यह
दर्शाती हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था और समाज मानव प्रतिभा के
संभावित लाभों से वंचित हो रहे हैं।
• CMIE की अक्तूबर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शहरी बेरोज़गारी दर 8.9% और ग्रामीण बेरोज़गारी दर 8.3% अनुमानित है।
• राज्य स्तर पर सबसे अधिक बेरोज़गारी दर त्रिपुरा
(27%), हरियाणा (23.4%) और हिमाचल प्रदेश (16.7) में आँकी गई।
• जबकि सबसे कम बेरोज़गारी दर तमिलनाडु (1.1%),
पुडुचेरी (1.2%) और उत्तराखंड (1.5%) में अनुमानित है।

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