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ECONOMY CURRENT TOPICS 2020 PART-1

ANTORA ACADEMY

आर्थिक घटनाक्रम 2020 PART-1

Contents

1-एमएसएमई आपातकालीन उपाय कार्यक्रम

उद्देश्य-

विश्व बैंक ( world bank )

2-बीआईएस-केयर

आईएसआई (Indian Standards Institute-ISI) –

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 HRIDA (Consumer Protection Act, 2019)-

3-भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण बढ़ावा देने हेतु तीन प्रोत्साहन योजनाएँ -

1-उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना

2-इलेक्ट्रॉनिक घटकों एवं सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण के संवर्द्धन हेतु योजना-

3-संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर योजना-

राष्ट्रीय इलेक्ट्रोनिकी नीति 2019-

4-कॉयर जियो-टेक्सटाइल्स

कॉयर जियो-टेक्सटाइल्स के उपयोग से लाभ

जियो-टेक्सटाइल्स से हानि

5-राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण

राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (National Financial Reporting Authority-NFRA)

6- पशुपालन अवसंरचना विकास कोष

7-भारत में पेट्रोरसायन उद्योग

8-सोशल स्टॉक एक्सचेंज

9-'क्राउडिंग आउट' एवं 'मिशन ड्रिफ्रट'

10-अनुबंध कृषि

अनुबंध कृषि

भारत में अनुबंध कृषि से संबंधित कानून

मॉडल अनुबंध कृषि अधिनयम, 2018

 

12-कृषक उत्पादक संगठन (FPOs)

कृषक उत्पादक संगठन क्या है?

13-बैड बैंक

बैड बैंक की अवधरणा

 

14-ऑपरेशन ट्विस्ट

खुले बाज़ार की क्रियाएँ

ऑपरेशन ट्विस्ट

ऑपरेशन ट्विस्ट से होने वाले लाभ

15-ई-नाम

ई-नाम पोर्टल में संशोधन

भारतीय सेवा क्षेत्र की स्थिति

देश के कुल सकल मूल्य वर्द्धित (Gross Value Added) में

क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Manager's Index-PMI)

17-डिजिटल कर

 





1-एमएसएमई आपातकालीन उपाय कार्यक्रम 

हाल ही में भारत सरकार द्वारा 'विश्व बैंक' के साथ 'एमएसएमई आपातकालीन उपाय कार्यक्रम' के लिये 750 मिलियन डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं। 

उद्देश्य- 

COVID-19 महामारी के चलते बुरी तरह प्रभावित 'सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों' (Micro, Small, and Medium Enterprises-MSMEs) में वित्त का प्रवाह बढ़ाने में आवश्यक सहयोग प्रदान करना है। 

इस कार्यक्रम के माध्यम से लगभग 1.5 मिलियन MSMEs की नकदी एवं ऋण संबंधी तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा किया जाएगा ताकि मौजूदा प्रभावों को कम करने के साथ-साथ लाखों नौकरियों को सुरक्षित किया जा सके। 



COVID-19 महामारी से MSME क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित है जिसके चलते यह क्षेत्र आजीविका एवं रोज़गार दोनों ही मोर्चों पर व्यापक नुकसान उठा रहा है। 



भारत सरकार का प्रयास यह सुनिश्चित करने पर है कि वित्तीय क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तरलता का प्रवाह 'गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों' की तरफ बना रहे। 

इसके लिये बैंकिंग क्षेत्र जो जोखिम लेने के डर से बच रहा है, वह NBFCs को ऋण देकर अर्थव्यवस्था में निरंतर धनराशि का प्रवाह बनाए रखेगा। 



विश्व बैंक ( world bank ) 

· स्थापना 1944 में हुयी। 

· इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों को पुनर्निमाण और विकास के कार्यों में आर्थिक सहायता देना है 

· विश्व बैंक समूह पांच अन्तर राष्ट्रीय संगठनों का एक ऐसा समूह है जो सदश्य देशों को वित्त और वित्तीय सलाह देता है। 

· मुख्यालय वॉशिंगटन, डी॰ सी॰ में है। 

· डेविड माल्पास (PRESIDENT) 

· अंंशुला कांत(CEO) 

· पेन्नी गोल्डसबर्ग (मुख्य अर्थशास्त्री) 

· कारमेन रेंहार्ट (मुख्य अर्थशास्त्री 15 जून 2020 से) । 



2-बीआईएस-केयर 



27 जुलाई, 2020 को केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री ने उपभोक्ताओं के लिये भारतीय मानक ब्यूरो का मोबाइल एप 'बीआईएस-केयर' (BIS-Care) और www.manakonline.in पर ई-बीआईएस (e-BIS) के तीन पोर्टलों- मानकीकरण, अनुरूपता आकलन तथा प्रशिक्षण को लॉन्च किया। 


उपभोक्ता इस एप का उपयोग करके आईएसआई (Indian Standards Institute-ISI) चिह्नित एवं हॉलमार्ल्ड उत्पादों की प्रमाणिकता की जाँच कर सकते हैं और अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। 

यह ऐप दोनों भाषाओं हिंदी और अंग्रेजी में संचालित किया जा सकता है 



आईएसआई (Indian Standards Institute-ISI) – 

आईएसआई चिह्न का संक्षिप्त नाम भारतीय मानक संस्थान है 

ये भारत Sarkar का मानक संस्थान है. जो भारतीय कंपनी के उत्पाद को प्रमाणित करती है उसे काम मे लेने से कोई हानि नहीं होगी 

आईएसआई चिह्न की स्थापना 1955 में की गई थी यह भारत सबसे मान्यता प्राप्त प्रमाणीकरण चिह्न है। 



उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 HRIDA (Consumer Protection Act, 2019)- 



• उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स ) नियम, 2020 सहित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के सभी प्रावधान 24 जुलाई, 2020से लागू हो गए हैं। 

• नया अधिनियम ई-कॉमर्स में अनुचित व्यापार प्रथाओं को रोकने के लिये और उपभोक्ताओं के विवादों के निपटारे एवं समय पर व प्रभावी प्रशासन के लिये तंत्र स्थापित करते हुए उपभोक्ताओं के हितों एवं अधिकारों की रक्षा करने के लिये, नियमों के माध्यम से कई उपाय प्रदान करता है। 

• ये नियम डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क पर खरीदे या बेचे 

जाने वाले सभी सामानों एवं ई-कॉमर्स के सभी मॉडलों पर लागू होंगे जिनमें मार्केट प्लेस यानी बाज़ार (जैसे अमेजन एवं फ्लिपकार्ट) और इन्वेंट्री मॉडल (जहाँ ई-कॉमर्स इकाई के पास भी स्टॉक हैं) भी शामिल हैं। 



3-भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण बढ़ावा देने हेतु तीन प्रोत्साहन योजनाएँ - 



केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने देश में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों के विनिर्माण को बढ़ावा देने हेतु तीन प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू की हैं। 

ये योजनाएँ घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग के समक्ष मौजूदा चुनौतियों को समाप्त कर देश में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण तंत्र को मजबूती प्रदान करेगी। 

1-उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना 



राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति, 2019 में सभी महत्त्वपूर्ण 

इलेक्ट्रॉनिक घटकों को देश में विकसित करने की क्षमता को प्रोत्साहित करने और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने हेतु अनुकूल वातावरण का निर्माण कर भारत को 'इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिज़ाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग (ESDM)' के एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने की परिकल्पना की गई 

• यह योजना घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने, मोबाइल फोन निर्माण तथा निर्दिष्ट इलेक्ट्रॉनिक घटकों में व्यापक निवेश को आकर्षित 

करने के लिये उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन प्रदान करती है। 



2-इलेक्ट्रॉनिक घटकों एवं सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण के संवर्द्धन हेतु योजना- 

• इलेक्ट्रॉनिक घटक इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग की बुनियादी इकाई है। 

इलेक्ट्रॉनिक घटकों एवं सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण के संवर्द्धन हेतु योजना (SPECS) देश में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक घटकों एवं सेमीकंडक्टरों के घरेलू विनिर्माण से संबंधित बाधाओं कोकम करने में मदद करेगी। 

• इस योजना के तहत कुछ निश्चित इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के लिये पूंजीगत व्यय पर 25% वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा। 



3-संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर योजना- 

गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचे को लेकर इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के समक्ष मौजूदा चुनौतियों का सामना करने और भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण हब बनाने हेतु देश में एक मज़बूत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिये संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर योजना (EMC 
2.0) शुरू की गई है। 

• अपर्याप्त अवसंरचना के कारण होने वाली क्षति को कम करने  के लिये EMCs स्थापित किये गए हैं, जो संस्थाओं को एक क्लस्टर के अंतर्गत अच्छी गुणवत्ता वाली अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं। 



राष्ट्रीय इलेक्ट्रोनिकी नीति 2019- 

· वर्ष 2025 तक 400 अरब अमेरिकी डॉलर की कारोबार लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु आर्थिक विकास के लिए इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग (ESDM )की संपूर्ण आपूर्ति श्रृंखला में घरेलू विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देना 



· वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी ESDM सेक्टर के लिये अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना। 

·प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक घटकों के विनिर्माण के लिये प्रोत्साहन एवं सहायता प्रदान करना। ऐसी मेगा परियोजनाओं के लिये विशेष प्रोत्साहन पैकेज़ प्रदान करना, जो अत्यंत हाई-टेक हैं और जिनमें भारी निवेश की आवश्यकता है। 

· इलेक्ट्रॉनिक्स के बुनियादी स्तर के नवाचार और उभरते प्रौद्योगिकी क्षेत्रों, जैसे- 5G, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, सेंसर, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), मशीन लर्निंग, वर्चुअल रियल्टी (VR), ड्रोन, रोबोटिक्स, एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग, फोटोनिक्स, नैनो आधारित उपकरणों इत्यादि के क्षेत्र में प्रारंभिक चरण वाले स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा देना। 

· फैबलेस चिप डिज़ाइन उद्योग, मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उद्योग, ऑटोमोटिव इलेक्टॉनिक्स उद्योग और रणनीतिक इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के लिये पावर इलेक्ट्रॉनिक्स पर विशेष बल देना। 

· ESDM क्षेत्र में बौद्धिक संपदा के विकास एवं अधिग्रहण को बढ़ावा देने के लिये सॉवरेन पेटेंट फंड (SPF) का निर्माण करना। 

· राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिये विश्वसनीय इलेक्ट्रॉनिक्स मूल्य श्रृंखला से जडी पडलों को बढ़ावा देना। 





4-कॉयर जियो-टेक्सटाइल्स 

o भारत सरकार ने 20 अप्रैल, 2020 को कहा कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तीसरे चरण के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण में 'कॉयर जियो-टेक्सटाइल्स' का उपयोग किया जाएगा। 

o 7 राज्यों में 'कॉयर जियो-टेक्सटाइल्स' का उपयोग करके 1674 किलोमीटर सड़क का निर्माण करने की योजना है। 

o कॉयर जियो-टेक्सटाइल्स सभी वाणिज्यिक प्राकृतिक रेशों में सबसे मोटे और सबसे प्रतिरोधी फाइबर कॉयर नारियल के बाहरी आवरण से निकाले जाते हैं। 

o कम अपघटन दर के कारण ये टिकाऊ जियो-टेक्सटाइल्स निर्माण में प्रयुक्त किये जाते हैं। कॉयर जियो-टेक्सटाइल्स की मदद से अवनयित भूमि को पुनर्जीवित करने के लिये प्रयास किये जा रहे हैं। इनका उपयोग मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और मृदा अपरदन को रोकने के उद्देश्य से सिविल इंजीनियरिंग अनुप्रयोगों में किया जाता है। 

· ये सामान्य नागरिक निर्माण चुनौतियों के लिये एक लागत प्रभावी इंजीनियरिंग समाधान प्रदान करते हैं। 

· कॉयर जियो-टेक्सटाइल्स एक प्रकार के पारगम्य वस्त्र हैं जो प्राकृतिक रूप से मज़बूत, अत्यधिक टिकाऊ तथा टूट-फूट, मोड़ एवं नमी प्रतिरोधी है। किसी भी सूक्ष्मजीवी (माइक्रोबियल) हमले से मुक्त होते हैं। 

· वर्तमान में जियो-टेक्सटाइल्स का सड़क, एयरफील्ड, रेलमार्ग, तटबंध, जलाशयों, नहरों, बांधों, तट संरक्षण, तटीय इंजीनियरिंग और जियोट्यूब सहित कई सिविल इंजीनियरिंग कार्यों में अनुप्रयोग किया जाता है। जियो-टेक्सटाइल्स पारंपरिक तरीकों की तुलना में कम लागत पर मृदा की क्षमता में सुधार कर सकते है। 

कॉयर उद्योग – 

· भारत में कॉयर उद्योग के संदर्भ में केरल सबसे बड़ा राज्य है। कॉयर उद्योग का स्थानीयकरण कच्चे माल की उपलब्धता (नारियल) पर निर्भर करता है। भारत में केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और ओडिशा प्रमुख नारियल उत्पादक राज्य हैं। 

· सरकार द्वारा कॉयर उद्योग के विकास के लिये कॉयर उद्यमी योजना चलाई जा रही है। यह एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना है, जो 10 लाख तक की परियोजना लागत की कॉयर यूनिट की स्थापना के लिये 40% सरकारी सब्सिडी, 55% बैंक लोन और 5% लाभार्थी अंशदान प्रदान करती है। कौशल उन्नयन एवं गुणवत्ता सुधार के लिये कॉयर विकास योजना कार्यरत है। 

· इसमें महिला कॉयर योजना के अंतर्गत महिला कॉयर श्रमिकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके साथ-साथ महिलाओं को सब्सिडाइज्ड कीमतों पर मशीनें व उपकरण भी उपलब्ध कराए जाते हैं। 

 MSME मंत्रालय के अधीन एक सांविधिक निकाय के रूप में कॉयर बोर्ड का गठन किया गया है, जो पंजीकरण और लाइसेंस के माध्यम से कॉयर के उत्पादन और वितरण को नियंत्रित करता है। कॉयर बोर्ड का गठन कॉयर उद्योग अधिनियम, 1953 के तहत किया गया है। 



कॉयर जियो-टेक्सटाइल्स के उपयोग से लाभ 

· कॉयर जियो-टेक्सटाइल्स 100% प्राकृतिक और जैव-क्षरण योग्य है जो विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुकूल है। 

· कॉयर की उच्च तन्यता की विशेषता खड़ी सतहों को भारी प्रवाह और मलबे से बचाती है। इनका उच्च स्थायित्त्व संयंत्र और मृदा की स्थापना तथा भूमि स्थिरीकरण में सहायक है। 

· कॉयर जियो-टेक्स्टाइल्स को आसानी से सतह पर स्थापित किया जा सकता है। ये मिट्टी में नमी बनाए रखकर अत्यधिक तापमान से मिट्टी और जड़ों को संरक्षित करते हैं। 

· जियो-टेक्सटाइल्स का उपयोग ढलान प्रबंधन के लिये किया जा सकता है, जिससे भू-स्खलन को रोका जा सकता है। 

· कॉयर में लिग्निन की मात्रा सागवान या शीशम से अधिक होती है, जो इसकी मज़बूती को दर्शाता है। सामग्री की जल अवशोषण क्षमता भी बहुत अधिक है। 

· इनकी जाल रूपी संरचना मृदा एकत्रण द्वारा मृदा के कटाव को रोकने वाले चेक बांधों के रूप में कार्य करती हैं। 

· नहरों और नदियों के नवीकरण, पहाड़ियों और तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा आदि द्वारा पर्यावरण संरक्षण प्रणालियों में जियो-टेक्सटाइल्स एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 



· अधिकांश संश्लेषित रेशों के विपरीत कॉयर गैर-थर्मोप्लास्टिक हैं अर्थात् गर्मी होने पर भी वे नरम नहीं होते हैं। कॉयर शुष्क गर्मी के लिये थोड़ी संवेदनशीलता अवश्य दिखाते हैं, लेकिन . इससे संकुचन या फैलाव जैसा प्रभाव नहीं पड़ता। कॉयर भारी मात्रा में वज़न और रगड़ को सहन कर सकते हैं। वज़न हटते ही ये बहुत तीव्रता से रिकवर भी कर सकते हैं। हिमांक से भी कम तापमान होने पर वे भंगुर नहीं होते हैं। इनकी 'थर्मल रीसाइक्लिंग' भी संभव है। इसके साथ ही अक्षय, 
 पुनर्नवीनीकरण और बहुमुखी होने के कारण ये बहुत उपयोगी है। 


जियो-टेक्सटाइल्स से हानि 

· संश्लेषित सामग्रियों से बने जियो-टेक्सटाइल्स जैव-अपघटनीय नहीं होते हैं। 

· संश्लेषित रेशे हाइड्रोकार्बन से उत्पन्न होते हैं, जो पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे गैर-नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त होते हैं। 

· संश्लेषित रेशों से बने जियो-टेक्सटाइल्स को विषाक्त गैसों को वातावरण में मुक्त करने से रोकने के लिये पराबैंगनी किरणों से 100% परिरक्षण की आवश्यकता होती है। 

· संश्लेषित रेशों का अनुप्रयोग 'भूमिगत जल तालिका' में पानी के रिसाव को रोकता है। 

· ये गैर-आर्द्रताग्राही होते हैं जो पौधों के चारों ओर की सूक्ष्म जलवायु में परिवर्तन करते हैं। इस प्रकार ये वनस्पति के स्वास्थ्य को हतोत्साहित करते हैं। 

· अम्ल वर्षा और पराबैंगनी किरणों के थोड़े प्रभाव से ही ये विषाक्त रसायनों का उत्पादन करते हैं। ये ऊष्मा के गैर-संवाहक होने के कारण मिट्टी के तापमान में वृद्धि करते हैं, जिससे वनस्पतियों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

• पुनर्चक्रण की प्रकिया के दौरान भी ये हानिकारक रसायनों व गैसों का उत्सर्जन करते हैं 


5-राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण 

हाल ही में लेखा परीक्षा नियामक 'राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण' (National Financial ReportingAuthority-NFRA) ने भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलुरु के प्रोफेसर आर. नारायण स्वामी की अध्यक्षता में एक तकनीकी सलाहकार समिति का गठन किया है। 

• यह समिति वित्तीय विवरणों के उपयोगकर्ताओं, एवं लेखा परीक्षकों को इनपुट भी प्रदान करेगी। 

राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (National Financial Reporting Authority-NFRA) 

राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण का गठन कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत भारत सरकार द्वारा 01 अक्तूबर, 2018 को किया गया था। 



6- पशुपालन अवसंरचना विकास कोष 



हाल ही में केंद्र सरकार ने ₹15000 करोड़ के पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (Animal Husbandry Infrastructure Development Fund-AHIDF) के कार्यान्वयन संबंधी दिशा-निर्देश जारी किये हैं। 

बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत घोषित प्रोत्साहन पैकेज के अंतर्गत ₹15000 करोड़ के पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (AHIDF) की स्थापना की बात की गई थी। 



उद्देश्य - 

दूध और मांस प्रसंस्करण की क्षमता और उत्पाद विविधीकरण को बढ़ावा देना है, ताकि भारत के ग्रामीण एवं असंगठित दुग्ध और मांस उत्पादकों को संगठित दुग्ध और मांस बाज़ार तक अधिक पहुँच प्रदान की जा सके। 

• उत्पादकों को उनके उत्पाद की सही कीमत प्राप्त करने में मदद करना। 

• स्थानीय उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण दुग्ध और मांस उपलब्ध कराना। 

• देश की बढ़ती आबादी के लिये प्रोटीन युक्त समृद्ध खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करना और बच्चों में कुपोषण की बढ़ती समस्या को रोकना। 

• देश भर में उद्यमिता को प्रोत्साहित करना और संबंधित क्षेत्र में रोज़गार सृजित करना। 

• दुग्ध और मांस उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहित करना। 

7-भारत में पेट्रोरसायन उद्योग 

भारत सरकार के रसायन और उर्वरक मंत्रालय के अधीन केंद्रीय प्लास्टिक इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (CIPET) का नाम बदलकर केंद्रीय पेट्रोरसायन इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान कर दिया गया है। 

CIPET का प्राथमिक उद्देश्य शिक्षा एवं अनुसंधान जैसे संयुक्त कार्यक्रम के माध्यम से प्लास्टिक उद्योग के विकास में योगदान देना रहा है। 

पेट्रोरसायन - पेट्रोरसायन विभिन्न रासायनिक यौगिकों के हाइड्रोकार्बन से प्राप्त किये जाते हैं। ये हाइड्रोकार्बन कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस से व्युत्पन्न होते हैं। 





8-सोशल स्टॉक एक्सचेंज 

· भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा गठित कार्यकारी समूह ने गैर-लाभकारी संगठनों को बॉण्ड जारी करके सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) पर सीधे सूचीबद्ध होने की अनुमति देने की सिफारिश की है। 

· वित्तीय वर्ष 2019-20 के बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने सामाजिक उद्यमों और स्वैच्छिक संगठनों को सूचीबद्ध करने के लिये SEBI के विनियामक दायरे के अंतर्गत एक सोशल स्टॉक एक्सचेंज गठित करने की दिशा में कदम उठाने का प्रस्ताव दिया था। 

· SEBI ने सितंबर 2019 में इशरत हुसैन की अध्यक्षता में सोशल स्टॉक एक्सचेंज पर एक कार्यकारी समूह का गठन किया था। 



सोशल स्टॉक एक्सचेंज की अवधारणा 

• विश्व में सोशल स्टॉक एक्सचेंज की अवधारणा को तेजी से 

· अपनाया जा रहा है। पिछले कुछ महीनों में स्कॉटलैंड, जमैका और अब भारत ने सोशल स्टॉक एक्सचेंज गठित करने की पहल की है। 

· सोशल स्टॉक एक्सचेंज एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो निवेशकों को आधिकारिक विनिमय द्वारा सामाजिक उद्यमों में शेयर खरीदने की अनुमति देता है। 

· पूंजी बाज़ार को आम जनता के और अधिक करीब ले जाने तथा समावेशी विकास तथा वित्तीय समावेशन से संबंधित विभिन्न सामाजिक कल्याण उद्देश्यों को पूरा करने के लिये सोशल स्टॉक एक्सचेंज की अवधारणा को अपनाया जाता है। 

· सोशल स्टॉक एक्सचेंज एक सामान्य मंच के रूप में कार्य करेगा जहाँ सामाजिक उद्यम आम जनता और निवेशकों से धन जुटा सकते हैं। 

· यह देश के प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज, जैसे- बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) आदि की तर्ज पर ही कार्य करेगा, हालाँकि सोशल स्टॉक एक्सचेंज का उद्देश्य लाभ कमाना न होकर सामाजिक कल्याण होगा। 

9-'क्राउडिंग आउट' एवं 'मिशन ड्रिफ्रट' 

क्राउडिंग आउट 

· क्राउडिंग आउट प्रभाव एक आर्थिक सिद्धांत है, जिसके अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र का बढ़ता व्यय निजी क्षेत्र के निवेश को कम  या समाप्त भी करता है। 

· जब सरकारें उधार लेती हैं तो प्रतिस्पर्धा के परिणामस्वरूप वास्तविक ब्याज दरें बढ़ जाती है और निजी निवेश घट जाताहै। इस घटना को ही क्राउडिंग आउट प्रभाव कहा जाता है। | 

मिशन ड्रिफ्ट 

· मिशन ड्रिफ्ट स्थिति तब उत्पन्न होती है जब कोई संगठन अपने 'मिशन वक्तव्य' में उल्लिखित लक्ष्यों से दूर जाना शुरू कर देता 

· कुछ मामलों में यह पूरी तरह से दुर्घटना से हो सकता है, जबकि अन्य मामलों में यह जानबूझकर होता है। 



10-अनुबंध कृषि 

ओडिशा सरकार द्वारा COVID-19 से उत्पन्न समस्याओं से निपटने हेतु एक अध्यादेश लाया गया है। 

यह अध्यादेश निवेशकों और किसानों को अनुबंध कृषि (Contract Farming) की अनुमति देता है। राज्य सरकार द्वारा अनुबंध कृषि हेतु एक 'कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एंड सर्विसेज' समिति भी बनाई जाएगी जो सरकार को अनुबंध कृषि हेतु प्रचार करने और किसानों की दक्षता में सुधार लाने के लिये सुझाव देगी। 

अनुबंध कृषि 

· अनुबंध कृषि उत्पादन और विपणन के मध्य समन्वय वृद्धि के लिये एक प्रभावी तरीका है। यह असमान पार्टियों, जैसेकंपनियों / सरकारी निकायों /व्यक्तिगत उद्यमी तथा किसानों के मध्य फसल पूर्व किया गया समझौता है। 

· अनुबंध कृषि को संविधान की सातवीं अनुसूची में समवर्ती सूची के अंतर्गत परिभाषित किया गया है। 

· अनुबंध कृषि के माध्यम से कृषि-व्यवसाय तथा खाद्य प्रसंस्करण में सलग्न उद्योग सीधे किसानों से जुड़ सकते हैं। एक विस्तृत शहरी खुदरा बिक्री और प्रसंस्करण में बढ़ते व्यावसायिक निवेश अधिक मानकीकृत और उच्च गुणवत्ता वाले कृषि उत्पादों की मांग पैदा कर रहे हैं, लेकिन अविकसित आपूर्ति श्रृंखला और छोटे जोत आकार ऐसे उत्पादों के उत्पादन में बाधा उत्पन्न करते 

· भारत में अनुबंध कृषि को भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अंतर्गत विनियमित किया जाता है। 

भारत में अनुबंध कृषि से संबंधित कानून 

· अनुबंध कृषि के उत्पादकों एवं प्रायोजकों के हितों की रक्षा के लिये मॉडल कृषि उपज विपणन समिति (APMC) अधिनियम, 2003 अनुबंध कृषि के संदर्भ में विशिष्ट प्रावधान करता है, जैसे- अनुबंध कृषि के प्रायोजकों हेतु अनिवार्य पंजीकरण और विवाद निपटान तंत्र आदि। पंजाब में अनुबंध कृषि पर एक पृथक कानून है। 

· केंद्र सरकार मॉडल अनुबंध कृषि अधिनियम, 2018 के माध्यम से राज्य सरकारों को इस मॉडल अधिनियम के अनुरूप एक स्पष्ट अनुबंध कृषि कानून अधिनियमित करने हेतु प्रोत्साहित कर रही 

· माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने अपने एक निर्णय में अनुबंध के तहत कृषि कार्य करने वाले किसानों को एक 'उपभोक्ता' के रूप में माना है। यह अनुबंध कृषि करने वाले किसानों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत संरक्षण प्रदान करता है। 

मॉडल अनुबंध कृषि अधिनयम, 2018 

· भारत सरकार द्वारा पहली बार किसानों और कृषि आधारित उद्योगों को जोड़ा गया है। यह अनुबंध में सम्मिलित दोनों पक्षों को कमजोर पक्ष मानकर किसानों के हितों की रक्षा करने पर विशेष बल देता है 

· किसान की भूमि/परिसर में कोई भी स्थायी संरचना का निर्माण नहीं किया जाएगा। 

· किसान उत्पादक संगठनों (FPOS) / किसान उत्पादक कंपनियों 

· (FPCs) को बढ़ावा दिया जाएगा, ताकि किसानों को संगठित किया जा सके। यदि किसानों द्वारा अधिकृत किया गया तो FPO/FSC एक अनुबंध पार्टी हो सकती है। 




12-कृषक उत्पादक संगठन (FPOs) 

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने किसानों के लिये अर्थव्यवस्था के व्यापक लाभ को सुनिश्चित करने हेतु वर्ष 2019-2020 से 2023-24 की पाँच वर्ष की अवधि के दौरान 10,000 नए FPOs के गठन को अपनी स्वीकृति दी है। 



पृष्ठभूमि 

· कृषि क्षेत्र भारत की संपूर्ण अर्थव्यवस्था में योगदान देने, देश के कुल कार्यबल के लगभग 56% को रोजगार उपलब्ध कराने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर गरीबी निवारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद; सीमित उत्पादन मात्रा, सार्वजनिक संसाधनों तक किसानों की पहुँच में कमी, कम गुणवता वाली आगतों, ऋण तथा आधुनिक प्रौद्योगिकियों तक कम पहुँच, आय असुरक्षा और खराब आपूर्ति श्रृंखला के कारण छोटे और सीमांत किसानो के लिये अलाभकारी होता जा रहा है। 

· इसी को देखते हुए अशोक दलवई की अध्यक्षता में किसानों की आय को दोगुना करने हेतु गठित समिति की रिपोर्ट में वर्ष 2022 तक 7,000 FPOs के गठन की सिफारिश की गई। 
कृषक उत्पादक संगठन क्या है? 
· यह सहकारी समितियों और निजी लिमिटेड कंपनियों का मिश्रित रूप है, जिसमें सदस्यों के बीच लाभ की साझेदारी होती है। 
· इसका गठन उत्पादकों के समूह द्वारा कृषि या गैर-कृषि क्रियाकलापों के लिये किया जाता है। 

· यह कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत और वैधानिक निकाय है। 

· संगठन में प्रत्येक उत्पादक शेयरधारक होता है। 

· यह प्राथमिक उत्पाद से संबंधित व्यापारिक गतिविधियों का  संचालन करता है। 

· इसमें कृषि से संबंधित अनेक चुनौतियों का सामूहिक रूप से समाधान करने के लिये उत्पादकों, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों का समूह बनाया जाता है। 

वर्तमान स्थिति 

· वर्तमान में लगभग 5000 FPOS अस्तित्त्व में हैं, जो भारत सरकार, राज्य सरकार, नाबार्ड और अन्य संगठनों की विभिन्न पहलों के अंतर्गत गठित किये गए है। कुछ पहलें इस प्रकार हैं 

· भारत सरकारः कृषि विपणन अवसंरचना (AMI), बागवानी के समेकित विकास के लिये मिशन (MIDH), दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, ऑपरेशन ग्रीन्स, अग्र और पश्च लिंकेजों का निर्माण। 

· नाबार्डः उत्पादक संगठन विकास निधि (PODF), प्रोड्यूसर्स आर्गेनाईजेशन डेवलपमेंट एंड अपलिफ्टमेंट कार्पस (PRODUCE), राष्ट्रीय सलाहकार समिति, समर्पित वेब पोर्टल, ट्रेनिंग मॉड्यूल एवं FPOs सेमिनार और ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये NABKISAN Itd. 

· छोटे किसानों का कृषि-व्यवसाय संघ (SFAC): इक्विटी अनुदान योजना, क्रेडिट अनुदान वित्त योजना, उद्यम पूंजी सहायता। 

· भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR): किसान विकास केंद्रों के माध्यम से तकनीकी सहायता। 

13-बैड बैंक 

हाल में 'भारतीय बैंक संघ' (Indian Banks' Association IBA) ने वित्त मंत्रालय को 'सशक्त पैनल' की अनुशंसाओं के आधार पर 'बैड बैंक' का निर्माण करने की सिफारिश की है। बैड बैंक क निर्माण के बाद बैंकों के ₹60,000 करोड़ से अधिक के 'बैड लोन 'परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी' को स्थानांतरित करने की संभावना है 

बैड बैंक की अवधरणा 

· बैड बैंक एक आर्थिक अवधारणा है जिसके अंतर्गत आथिक संकट के समय घाटे में चल रहे बैंकों द्वारा अपनी देयताओं को एक नए बैंक को स्थानांतरित कर दिया जाता है। 

• जब किसी बैंक की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ एक सीमा से अधिक हो जाती हैं, तब राज्य के आश्वासन पर एक ऐसे बैंक का निर्माण किया जाता है जो मुख्य बैंक की देयताओं को एक निश्चित समय के लिये धारण कर लेता है। 

• बैड बैंक की अवधारणा कोई नई नहीं है। वित्तीय सुधारों के क्रम में इसकी चर्चा कई बार की जा चुकी है 
· NPA की समस्या के समाधान के लिये बैड बैंक मॉडल को पहली बार 1980 के दशक में प्रस्तावित किया गया था। संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित मेलन बैंक ने 1988 में बैड बैंक की स्थापना की। इसके बाद स्वीडन, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया और कई अन्य देशों द्वारा इस अवधारणा को लागू किया गया। 

• एक पृथक संस्था के रूप में बैंकों के NPAs को खरीदने से बैंकों   के बहीखाते दवाब मुक्त होंगे और वे नए ऋण देने में सक्षम होंगे। 2008 के वित्तीय संकट के पश्चात् फ्रांस जैसे यूरोपीय  देशों में इसका सफलतापूर्वक कार्यान्वयन किया गया है। 

• जुलाई 2018 में सुनील मेहता की अध्यक्षता में दबावपूर्ण  परिसंपत्तियों (Stressed Assets) के समाधान हेतु सलाह देने लिये 'प्रोजेक्ट सशक्त' (Project Sashakt) की शुरुआत की गई। 'सुनील मेहता' समिति को 'सशक्त पैनल' (Sashakt Panel) के रूप में भी जाना जाता है। पैनल ने तनावग्रस्त परिसंपत्तियों को हल करने के लिये 'पाँच-आयामी दृष्टिकोण' का प्रस्ताव दिया था। 





14-ऑपरेशन ट्विस्ट 

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा खुले बाज़ार की क्रियाओं (Open Market Operations-OMO) के तहत तरलता स्थिति तथा बाज़ार की स्थितियों की समीक्षा करके ₹10 हजार करोड़ की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद /बिक्री का निर्णय लिया गया है। 

खुले बाज़ार की क्रियाएँ (Open Market Operations-OMO) 

· खुले बाजार की क्रियाओं से आशय बैंकिंग प्रणाली में मुद्रा की मात्रा को विस्तारित या संकुचित करने के लिये सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद या बिक्री से है। 

· यह तकनीक बैंक दर नीति की तुलना में बेहतर है। इसके अंतर्गत प्रतिभूतियों को खरीद कर बैंकिंग प्रणाली में मुद्रा को अंतःक्षेपित किया जाता है, जबकि प्रतिभूतियों की बिक्री इसके ठीक विपरीत काम करती है। 

· RBI द्वारा अर्थव्यवस्था में तरलता को समायोजित करने के लिये अन्य मौद्रिक नीति उपकरणों, जैसे- रेपो रेट, नकद आरक्षित अनुपात और वैधानिक तरलता अनुपात के साथ OMO का उपयोग किया जाता है। 

ऑपरेशन ट्विस्ट 

• ऑपरेशन ट्विस्ट एक मौद्रिक नीति उपकरण है, जिसका उपयोग से मूल रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा बाज़ार ब्याज दरों को प्रभावित करने के उद्देश्य से दो बार 1961 एवं 2011 में किया गया। 

· दोनों ही मौकों पर इसका उद्देश्य दीर्घकालिक ब्याज दरों । को कम करना तथा अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह को प्रोत्साहित करना था। 

· यह वित्तीय उपकरण सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री के माध्यम से बाज़ार में तरलता में कमी या वृद्धि करने में मदद करता है। 

· 'ऑपरेशन ट्विस्ट' के अंतर्गत केंद्रीय बैंक दीर्घ अवधि के सरकारी ऋण पत्रों को खरीदने के लिये अल्पकालिक प्रतिभूतियों की बिक्री से प्राप्त आय का उपयोग करता है, जिससे लंबी अवधि के ऋणपत्रों पर ब्याज दरों के निर्धारण में आसानी होती है। 

· 'ऑपरेशन ट्विस्ट' से अल्पकालिक प्रतिभूतियों को दीर्घकालिक प्रतिभूतियों में परिवर्तित किया जाता है। 

· अमेरिका की तरह भारत भी 2019 की पहली छमाही के बाद से धीमे विकास की एक लंबी अवधि का सामना कर रहा है। भारत के संदर्भ में भी ऑपरेशन ट्विस्ट लंबी अवधि के ऋण पर ब्याज दरों को नीचे लाने की प्रक्रिया है। 

ऑपरेशन ट्विस्ट से होने वाले लाभ 

· वर्तमान में मांग तथा खपत में कमी सहित कई अन्य कारणों से भारत की अर्थव्यवस्था दबाव में है। केंद्रीय बैंक ने वर्ष 2019 में रेपो रेट में कुल 135 आधार अंकों की कटौती की है, लेकिन अभी तक मांग वृद्धि करने में अपेक्षित सफलता हासिल नहीं की जा सकी है। बैंकों तथा अन्य उधारदाताओं द्वारा इस कटौती का बहुत कम लाभ उधार प्राप्तकर्ताओं को प्रदान किया गया। 

· महँगाई में वृद्धि और राजकोषीय दबाव के कारण RBI द्वारा ऑपरेशन ट्विस्ट का उपयोग किया गया, जिसका उद्देश्य प्रमुख ब्याज दरों में कटौती के बिना लंबी अवधि के बॉण्ड यील्ड प्राप्त करना है। 

· विशेषज्ञों के अनुसार, यह एक आवश्यक कदम है क्योंकि भारत में बाज़ार की वर्तमान स्थितियों ने निवेशकों / ग्राहकों को दीर्घकालिक निवेश करने या दीर्घकालिक ऋण लेने के लिये हतोत्साहित किया है। 

· लंबी अवधि के बॉण्ड यील्ड (10 साल की सरकारी प्रतिभूतियाँ) तथा निम्न ब्याज दरें लोगों को अधिक दीर्घकालिक ऋण प्राप्त करने में मदद कर सकती हैं। यह सरकार के लिये समग्र उधार लागत को नीचे लाने में भी मदद करता है। 

15- ई-नाम 

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने COVID-19 की वजह से उत्पन्न परिस्थितियों को देखते हुए 'ई-नाम' पोर्टल में संशोधन किया है। 

14 अप्रैल, 2020 को राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना (ई-नाम) ने 4 साल पूर्ण किये हैं। 

ई-नाम 

· एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल है, जो मौजूदा कृषि उपज विपणन समितियों (APMCs) और अन्य कृषि मंडियों को एक नेटवर्क से जोड़कर विशाल बाज़ार का निर्माण करता है। 

· लघु किसान कृषि व्यवसाय कंसोर्टियम (SFAC) भारत सरकार  के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तत्त्वावधान में ई-नाम को लागू करने वाली प्रमुख एजेंसी है। 

· यह एकीकृत बाजारों में सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं, खरीदारों और विक्रेताओं के बीच सूचना विषमता का निवारण, वास्तविक मांग और आपूर्ति के आधार पर कृषि मूल्य को बढ़ावा तथा पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से उत्पादन की गुणवत्ता वृद्धि के आधार पर किसानों को बेहतर कीमत प्रदान करने का प्रयास करता है। 

यह कृषि विपणन में एकरूपता लाने का प्रयास करता है। 



ई-नाम पोर्टल में संशोधन 

वर्तमान COVID-19 लॉकडाउन के दौरान मंत्रालय ने थोक बाज़ारों में भीड़ कम करने और आपूर्ति श्रृंखला को चुस्त बनाने के लिये ई-नाम के तहत कई मॉड्यूल लॉन्च किये हैं 




16-भारतीय सेवा क्षेत्र एवं COVID-19 रिपोर्ट 

· एक मासिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 के कारण स्थानीय तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में मांग में कमी के कारण मार 2020 में भारतीय सेवा क्षेत्र में भारी गिरावट देखने को मिली है । 

· मार्च 2020 में 'द आईएचएस मार्किट इंडिया सर्विसेज बिज़नेस एक्टिविटी इंडेक्स' अर्थात् भारतीय सेवा क्षेत्र के लिये क्रय प्रबंधक सूचकांक 49.3 रहा, जो फरवरी 2020 में 56.5 (लगभग 7 वर्षों में सबसे अधिक) था। 

· मार्च 2020 के लिये समग्र पीएमआई उत्पादन सूचकांक (The Composite PMI Output Index) गिरकर 50.6 तक पहुँच गया जो फरवरी 2020 में 56.7 दर्ज किया गया था, यह खरीदारी गतिविधियों में गिरावट का एक चिंताजनक संकेत है। 

· वर्तमान में भारतीय सेवा क्षेत्र पर COVID-19 के प्रभाव को पूर्णरूप से नहीं समझा जा सकता, क्योंकि इस सर्वेक्षण में केवल 12-27 मार्च तक के ही आँकड़ों को शामिल किया गया है। 

भारतीय सेवा क्षेत्र की स्थिति 

देश के कुल सकल मूल्य वर्द्धित (Gross Value Added) में सेवा क्षेत्र का हिस्सा लगभग 55% है। 

सेवा क्षेत्र की संवृद्धि दर वर्ष 2018-19 के 6.5% से घटकर वर्ष 2019-20 में 6.9% तक पहुँच गई। 

सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 15 के GSVA में सेवा क्षेत्र का हिस्सा 50% से अधिक है। चंडीगढ़ और दिल्ली के GSVA में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 80% से अधिक है. जबकि 26.5% के साथ सिक्किम का हिस्सा सबसे कम है। 

सेवा निर्यात में निरंतर वृद्धि जारी है। सेवा निर्यात की वृद्धि दर । वर्ष 2019-2020 में 6.4% थी। 

वर्ष 2018-19 के 7.3% की तुलना में इस वर्ष सेवा आयात की वृद्धि दर 7.9% थी। 

COVID-19 के कारण उत्पन्न अनिश्चितता, संरक्षणवाद और कठोर प्रवासन नियम आने वाले समय में भारत के सेवा व्यापार को आकार प्रदान करने में भूमिका निभाने वाले महत्त्वपूर्ण कारक होंगे। 

सेवा क्षेत्र में गिरावट 

• रेटिंग एजेंसी ICRA के अनुसार, COVID-19 के प्रसार के कारण भारतीय आईटी सेवा क्षेत्र में वर्तमान वित्त वर्ष में 3-5% की कम वृद्धि का अनुमान है। ICRA ने COVID-19 के प्रसार से पहले इस क्षेत्र में 6-8% की वृद्धि की उम्मीद जताई थी। 

• COVID-19 महामारी 180 बिलियन डॉलर के भारतीय आईटी क्षेत्र को काफी प्रभावित कर सकती है, जो 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट (GFC) से भी बदतर हो सकता है। अमेरिका और यूरोप इस महामारी से सबसे अधिक प्रभावित भौगोलिक क्षेत्र हैं, जो भारत के आईटी निर्यात में दो-तिहाई से अधिक हिस्सा रखते हैं। 

अनुमान लगाया जा रहा है कि पर्यटन और आतिथ्य उद्योग को अकेले मार्च और अप्रैल में 2.1 बिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है। 



क्रय प्रबंधक सूचकांक (Purchasing Manager's Index-PMI) 

· PMI एक मिश्रित सूचकांक होता है, जिसका उपयोग विनिर्माण और सेवा क्षेत्र की स्थिति का आकलन करने के लिये किया जाता है। यह विभिन्न कारोबारी पहलुओं, जैसे- उत्पाद, नए ऑर्डर, उद्योग की उम्मीदों एवं आशंकाओं और रोज़गार को लेकर प्रबंधकों की राय पर आधारित होता है। 

· PMI आँकड़ों में 50 को आधार माना गया है। 50 से ऊपर के PMI आँकड़े को कारोबारी गतिविधियों के विस्तार, जबकि 50 से नीचे के आँकड़े को कारोबारी गतिविधियों में गिरावट के तौर पर देखा जाता है। 

· PMI का बेहतर होना अर्थव्यवस्था में उत्साह का संचार करता है। कई देशों के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों पर निर्णय लेने के लिये इस सूचकांक की मदद लेते हैं, क्योंकि अच्छे PMI आँकड़े बताते हैं कि देश में आर्थिक हालात सुधार रहे हैं और अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ रही है। 



17-डिजिटल कर 

· गूगल और फेसबुक जैसी दिग्गज अमेरिकी डिजिटल कंपनियाँ भारत के नवीन डिजिटल कर (Digital Tax) को कुछ समय के लिये टालने की मांग कर रही हैं। 

· नवीन प्रावधानों के अनुसार, भारत में डिजिटल सेवाओं की बिक्री  पर 2.0% की दर से डिजिटल कर लागू होगा। 

· यह कर विशेष रूप से ₹ 20 मिलियन ($ 260,000) से अधिक का व्यापार करने वाली विदेशी कंपनियों को लक्षित करता है। 

· मार्च 2019 में समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में गूगल की भारत में बिक्री लगभग ₹41.5 बिलियन थी। 

 यह कर ई-कॉमर्स सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियों तथा . ऑनलाइन विज्ञापन के माध्यम से भारतीय ग्राहकों को लक्षित . करने वाली कंपनियों द्वारा भी देय होगा। 

• कुछ समय पूर्व फ्राँस ने भी बड़ी डिजिटल कंपनियों पर 3% की दर से डिजिटल कर लागू करने की योजना बनाई थी। 

· हालाँकि गूगल के विरोध और अमेरिकी सरकार के हस्तक्षेप के पश्चात् फ्रॉस ने इस कर को कुछ समय तक टालने का निर्णय लिया है। 

डिजिटल कर (Digital Tax) 

· डिजिटल कर डिजिटल व्यापार गतिविधियों पर लागू होने वाला कर है। इन गतिविधियों में डिजिटल-ब्रांड और अपने व्यवसायों को डिजिटल प्रौद्योगिकियों के साथ बदलने के दौरान उपयोग की जाने वाली सेवाएँ सम्मिलित हैं। 

· सोशल मीडिया कंपनियाँ, सहयोगी प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन सामग्री प्रदाता कुछ प्रमुख डिजिटल कंपनियों के उदाहरण हैं। ये कंपनियाँ सॉफ्टवेयर डाउनलोड, वेबसाइट एप्लीकेशन और डिजिटल संपत्ति (ई-बुक, ऑडियो क्लिप /ऑडियो फाइलें, | फिल्में या डिजिटल वीडियो) आदि सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं। 



मांग के कारण 

• डिजिटल कंपनियाँ डिजिटल कर की नवीन योजना की तैयारी के लिये और अधिक समय चाहती हैं। गूगल को भारत के नए कर के अधीन आने वाली अपनी विदेशी बिक्री की पहचान करने के लिये समय की आवश्यकता होगी। 

भारत की डिजिटल कर योजना ऐसे समय में आई है जब गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियाँ भारत में अपने व्यवसाय के विस्तार की योजना बना रही हैं, क्योंकि भारत दुनिया के तेज़ी से बढ़ते क्लाउड कंप्यूटिंग बाजारों में से एक है। 

• क्लाउड कंप्यूटिंग के अलावा गूगल का भारत के डिजिटल भुगतान बाज़ार में भी एक विशेष स्थान है। कंपनी ने भारतीय ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए 'तेज़' (Tez) नाम से एक विशिष्ट डिजिटल भुगतान एप भी लॉन्च किया था, कुछ समय पश्चात् इस मोबाइल एप का नाम परिवर्तित कर 'गूगल पे' (Google Pay) कर दिया गया। एक अनुमान के अनुसार, भारत का मोबाइल भुगतान बाज़ार वर्ष 2023 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा, जो कि वर्ष 2018 में 200 बिलियन डॉलर था। 

• यह इसलिये भी बड़ी कंपनियों की विस्तार परियोजनाओं के समक्ष एक बड़ी बाधा बन सकता है, क्योंकि यह ऐसे समय में आया है, जब विश्व की लगभग सभी कंपनियाँ COVID-19 महामारी के कारण संकट का सामना कर रही हैं। 







18-पाम ऑयल 

भारत में खाद्य तेल की मांग तथा पाम ऑयल की भारत में पारिस्थितिक अनुकूलता के कारण पाम ऑयल का उत्पादन बढ़ाने पर बल दिया गया है, ताकि भारत में तेल की बढ़ती मांग की समस्या का स्थायी समाधान निकाला जा सके। 

महत्त्वपूर्ण जानकारी 

\• पाम ऑयल विश्व के उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों के समान । भौगोलिक क्षेत्रों में पनपने वाली फसल है, जो खाद्य और घरेलू उत्पादों के प्रयोजन हेतु प्रयुक्त की जाती है। पाम ऑयल वनस्पति तेल के मुख्य वैश्विक स्रोत के रूप में उभरा है, जो दुनिया के उत्पादन मिश्रण का लगभग 33% है। 

• भारत दुनिया में पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक है, जो - इंडोनेशिया और मलेशिया से कुल वैश्विक मांग का लगभग  23% आयात करता है। 
• इंडोनेशिया, मलेशिया, नाइजीरिया, थाईलैंड और कम्बोडिया  आदि देश विश्व में FFB (Fresh Fruit Brunches) के कुल उत्पादन में 90% से अधिक हिस्सा रखते हैं।।
 • वर्तमान में भारत में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु पाम ऑयल के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। आंध्र प्रदेश देश के कुल पाम - ऑयल के 80% से अधिक उत्पादन के साथ प्रथम स्थान पर है। चुनौतियाँ 
• पाम ऑयल की खेती में परिपक्वता अवधि लंबी होती है। कम-से-कम 4-5 वर्षों के पश्चात् ही किसानों को इससे आय प्राप्त होती है। 
• छोटे और सीमांत किसानों को सीमित संसाधनों के कारण इसका लाभ नहीं मिल पाना। 

• अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे पाम ऑयल की कीमतों में उतार-चढ़ाव की स्थिति का बने रहना। 
• मानसून की अनिश्चितता और अनियमितता के कारण पानी की कमी। 

अन्य आर्थिक रूप से व्यवहार्य फसलों, जैसे- रबर, सुपारी, गन्ना,  केला, नारियल आदि से प्रतिस्पर्धा। • खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में भिन्नता। पाम ऑयल उत्पादन की आवश्यकता • स्थानीय स्तर पर पाम ऑयल की पैदावार में वृद्धि होने से खाद्य तेल के आयात खर्च में कमी आने से विदेशी मुद्रा की बचत होगी। 

• किसानों की आय को वर्ष 2022 तक दोगुना करने में मदद मिलेगी। 

• देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। 
• सस्ता खाद्य तेल देश की बढ़ती जनसंख्या की मांग की पूर्ति के अनुकूल है। 

भारत सरकार की पहले

 • पाम ऑयल की खेती के महत्त्व को देखते हुए कृषि सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग ने 1991-92 में संभावित राज्यों में तिलहन 

और दलहन पर प्रौद्योगिकी मिशन (TMOP) शुरू किया था। 
• आठवीं और नौवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान एक व्यापक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में तेल पाम विकास कार्यक्रम (OPDP)  शुरू किया गया। 
• दसवीं और ग्यारहवीं योजना के दौरान भारत सरकार ने तिलहन, दलहन, पाम ऑयल और मक्का की एकीकृत योजना (ISOPOM) के अंतर्गत पाम ऑयल की खेती के लिये सहायता प्रदान की। 
• पाम ऑयल की खेती को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार ने वर्ष 2011-12 के दौरान राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत पाम ऑयल के क्षेत्र विस्तार (OPAE) पर एक विशेष कार्यक्रम का समर्थन किया, जिसका उद्देश्य पाम ऑयल की खेती के अंतर्गत 60,000 हेक्टेयर क्षेत्र को लाना था। यह मार्च 2014 तक जारी रहा। 

• बारहवीं योजना के दौरान तिलहन और पाम ऑयल पर राष्ट्रीय मिशन (NMOOP) शुरू किया गया, जिसमें मिनी मिशन-II (MM-II) पाम ऑयल क्षेत्र के विस्तार और उत्पादकता में वृद्धि के लिये समर्पित है। 

पाम ऑयल : सतत् कृषि पद्धति 

कार्बन प्रच्छादनः आंध्र प्रदेश में पाम ऑयल की कृषि का अधिकतर क्षेत्र लाल मृदा तथा काली मृतिका युक्त मृदा से संबंधित है। इन मृदाओं में कार्बन की मात्रा कम होने के कारण पाम ऑयल की कृषि कार्बन  भंडारण में एक महत्त्वपूर्ण उत्प्रेरक की भूमिका निभाती है। 

प्रति बूंद अधिक फसल: पाम ऑयल कृषि की सतत् विधाओं में 'सूक्ष्म सिंचाई' भी महत्त्वपूर्ण पद्धति है। यह कृषि 'प्रति बूंद अधिक फसल' के सिद्धांत को आगे बढ़ाती है। 

प्रति इकाई अधिक उत्पादनः पाम ऑयल का अन्य खाद्य की तलना में प्रति इकाई क्षेत्र उत्पादन अधिक होता है, इससे में तेल उत्पादन में वृद्धि करने में मदद मिलेगी। 

• दीर्घकालिक फसल की तरफ विस्थापनः पिछले 25 वर्ष किसानों ने अल्प-मध्यम अवधि की फसलों, जैसे- मक्का के गन्ना आदि के स्थान पर दीर्घकालिक पाम ऑयल का उत्पादन कर शुरू किया है। अधिक पारिस्थितिकी अनुकूलः इसके अलावा बंजर भूमि को भी पाम ऑयल के बागानों के कृषि क्षेत्र के अंतर्गत लाया गया है। किसानों द्वारा अपनाई गई बायोमास पुनर्चक्रण पद्धतियों के कार्बन प्रच्छादन की विधि के रूप में इसे मान्यता मिली है। 

• मिश्रित फसल: पाम ऑयल की कृषि में किसानों द्वारा अतिरिक्त आय उत्पन्न करने के लिये मिश्रित कृषि तकनीकों को अपनाया जाता है तथा कम आय के दौरान अनेक फसलों को पौधों के मध्यवर्ती क्षेत्रों में बोया जाता है। 

• सार्वजनिक निजी भागीदारी: पाम ऑयल के ताजे फलों  को शीघ्र उपयोग में लाने के लिये संपूर्ण मूल्य श्रृंखला सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के तहत संचालित की जाती है, जिसमें निगम तथा किसानों के मध्य होने वाले अनुबंध के तहत उचित मूल्य पर किसानों से फलों को खरीदने का आश्वासन दिया जाता है। 





कृषि अवसंरचना कोष 

चर्चा में क्यों? 

28 जुलाई, 2020 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नई देशव्यापी केंद्रीय क्षेत्र योजना-कृषि अवसंरचना कोष (Central Sector Scheme-Agriculture Infrastructure Fund) को मंजूरी प्रदान की 


प्रमुख बिंदु 

• यह योजना ऋण अनुदान एवं वित्तीय सहायता के माध्यम से फसल कटाई के बाद बुनियादी ढाँचा प्रबंधन एवं सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों हेतु व्यवहारिक परियोजनाओं में निवेश के लिये मध्यम 
एवं दीर्घकालिक ऋण वित्तपोषण की सुविधा प्रदान करेगी। 
• इस योजना के अंतर्गत बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों के द्वारा ऋण के  रूप में ₹1 लाख करोड़ की राशि प्राथमिक कृषि साख समितिया (Primary Agricultural Credit Societies-PACS). विपणन सहकारी समितियों (Marketing Cooperative Societies), किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producers Organizations), स्वप सहायता समूहों (Self Help Group), किसानों, संयुक्त देयता समूह (Joint Liability Groups), बहुउद्देशीय सहकारी समितिया (Multipurpose Cooperative Societies), कृषि उद्यमियो। स्टार्ट-अप, एग्रीगेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स (Aggregation Infrastructure Providers) और केंद्रीय/राज्य एजेंसियों या स्थानीय निकायों द्वारा प्रायोजित सार्वजनिक निजी भागीदारी परियोजनाओं को . उपलब्ध कराई जाएगी। 
• इस ऋण का वितरण आगामी 4 वर्षों में किया जाएगा। चालू वित्त वर्ष में ₹10,000 करोड़ और अगले क्रमशः तीन वित्तीय वर्ष में ₹30,000 करोड़ (अर्थात् प्रत्येक वर्ष के ₹ 30,000 करोड़) की - मंजूरी प्रदान की गई। इस वित्तपोषण सुविधा के तहत सभी प्रकार के ऋणों पर ₹2 करोड़ की सीमा तक ब्याज पर 3% प्रति वर्ष की छूट प्रदान की जाएगी। यह छट अधिकतम 7 वर्षों के लिये उपलब्ध होगी। 
• इसके अलावा ₹2 करोड़ तक के ऋण के लिये 'क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट फॉर माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज' (Credit Guarantee Fund Trust for Micro and Small Enterprises-CGTMSE) योजना के अंतर्गत इस वित्तपोषण सुविधा के माध्यम से पात्र उधारकर्ताओं के लिये क्रेडिट गारंटी कवरेज भी उपलब्ध होगा। इस कवरेज के लिये भारत सरकार द्वारा शुल्क का भुगतान किया जाएगा किसान उत्पादक संगठनों के संदर्भ में कृषि, सहकारिता एवं किसान on cellul fant (Department of Agriculture, CooperationFarmers Welfare) की एफपीओ संवर्द्धन योजना (FPO promotion scheme) के अंतर्गत बनाई गई इस सुविधा से क्रेडिट गारंटी का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

• कृषि अवसंरचना कोष का प्रबंधन एवं निगरानी 'ऑनलाइन प्रबंधन HEFT gulimit' (Online Management Information System) प्लेटफॉर्म के माध्यम से की जाएगी। 
यह सभी योग्य संस्थाओं को फंड के अंतर्गत ऋण लेने के लिये आवेदन करने में सक्षम बनाएगा। यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कई बैंकों द्वारा दी जाने वाली ब्याज दरों में पारदर्शिता, ब्याज अनुदान एवं क्रेडिट गारंटी सहित योजना विवरण, न्यूनतम दस्तावेज, अनुमोदन की तीव्र प्रक्रिया के साथ-साथ अन्य योजना लाभों के साथ एकीकरण जैसे लाभ भी प्रदान करेगा। . इस योजना की समय-सीमा वित्त वर्ष 2020 से वित्त वर्ष 2029 तक 10 वर्ष के लिये निर्धारित की गई है। 

सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड 2020-21 

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक के परामर्श से सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (Sovereign Gold Bond-SGB) जारी करने का निर्णय लिया है। ये बॉण्ड छह अवधि की श्रृंखलाओं में अप्रैल 2020 से सितंबर 2020 के मध्य जारी किये जाएंगे। सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड की विशेषताएँ 

सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड 2020-2021 के नाम से ये बॉण्ड भारत सरकार की ओर से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये जाएंगे। 

इनकी बिक्री विभिन्न व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों 

(HUFs), ट्रस्ट, विश्वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्थानों जैसे निकायों तक सीमित रहेगी। 

SGB को 1 ग्राम की बुनियादी इकाई के साथ सोने के ग्राम | संबंधी गुणक में अंकित किया जाएगा। इसकी समयावधि 8 वर्ष होगी और पाँचवें साल के पश्चात् इससे बाहर निकलने का विकल्प रहेगा, जिसका इस्तेमाल ब्याज भुगतान  की तिथियों पर किया जा सकता है। 
• SGB की न्यूनतम स्वीकार्य सीमा 1 ग्राम सोना है। 
• व्यक्तियों और HUFs के लिये 4 किलोग्राम तथा ट्रस्ट एवं इसी तरह के अन्य निकायों के लिये 20 किलोग्राम प्रति वित्त वर्ष (अप्रैल-मार्च) की अधिकतम सीमा होगी। 
• SGB की बिक्री अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (लघु वित्त बैंकों और भुगतान बैंकों को छोड़कर), स्टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SHCIL), नामित डाकघरों और मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों जैसे कि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड के ज़रिये की जाएगी। 
• संयुक्त रूप से धारण किये जाने की स्थिति में 4 किलोग्राम की निवेश सीमा केवल प्रथम आवेदक पर लागू होगी। 
• बॉण्ड का मूल्य भारतीय रुपए में तय किया जाएगा। निर्गम मूल्य उन लोगों के लिये प्रति ग्राम ₹50 कम होगा जो इसकी खरीदारी ऑनलाइन करेंगे और इसका भुगतान डिजिटल मोड के जरिये करेंगे। • बॉण्ड का भुगतान नकद (अधिकतम ₹20,000 तक), डिमांड ड्राफ्ट, चेक अथवा इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग के ज़रिये किया जा सकेगा। निवेशकों को प्रतिवर्ष 2.50 प्रतिशत की निश्चित दर से ब्याज दिया जाएगा, जो अंकित मूल्य पर हर छह महीने में देय होगा। 
• इनका उपयोग ऋणों के लिये जमानत या गारंटी के रूप में किया जा सकता है। 
• आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधान के अनुसार, स्वर्ण बॉण्ड पर प्राप्त होने वाले ब्याज पर कर अदा करना होगा। किसी भी व्यक्ति को SGB के विमोचन पर होने वाले पूंजीगत लाभ को कर मुक्त कर दिया गया है। किसी भी निर्धारित तिथि पर बॉण्ड जारी होने के एक पखवाड़े के भीतर इनकी ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज पर हो सकेगी। 
• बैंकों द्वारा हासिल किये गए बॉण्डों की गिनती वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) के संदर्भ में की जाएगी। 



वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio-SLR) 

• यह भारत में कार्य करने वाले सभी अनुसूचित बैंकों (देशी तथा विदेशी) की सकल जमाओं का वह अनुपात है, जिसे बैंकों को अपने पास रखना होता है। 

• वर्ष 2007 में इसकी 25% की न्यूनतम सीमा को समाप्त कर 

दिया गया। अब यह 25% के नीचे भी रखा जा सकता है। SLR से बैंकों के कर्ज देने की क्षमता नियंत्रित होती है। अगर कोई बैंक मुश्किल परिस्थिति में फँस जाता है तो रिज़र्व बैंक SLR की मदद से ग्राहकों के पैसे की कुछ हद तक भरपाई कर सकता है। 

योजना के उद्देश्य 

इस योजना के दो प्रमुख उद्देश्य हैं
• सोने की भौतिक मांग को कम करना। 
• प्रतिवर्ष निवेश के उद्देश्य से आयात होने वाले सोने के एक हिस्से को वित्तीय बचत में परिवर्तित करना। 

प्रमुख चुनौतियाँ 

• अब तक सोने की औसत खपत या स्वर्ण बॉण्ड में औसत निवेश मांग की तुलना में बहुत कम सोने का निवेश हुआ है। 
• लोगों द्वारा सोने के स्रोत को छुपाने के प्रयास के कारण सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड योजना की सफलता आसान नहीं होगी। 
• बॉण्ड की 5 साल की लॉक-इन अवधि बॉण्ड योजना के लिये ज़्यादा फायदेमंद नहीं है। बाज़ार में अधिक तरलता सुनिश्चित करने के लिये बॉण्ड्स को पाँच वर्ष से पहले बेचने की अनुमति दी जानी चाहिये। लोगों का सोने की प्रति अधिक लगाव एवं बॉण्ड जैसे माध्यमों में अविश्वास प्रमुख बाधा है। 

यूजेन्स ऋण पत्र 

चर्चा में क्यों? 

बिजली तथा गैर-बिजली क्षेत्र के उपभोक्ताओं को राहत देने और कोयले की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये कोल इंडिया लिमिटेड ने ईंधन आपूर्ति समझौते (Fuel Security Agreement-FSA) के तहत भविष्य में एक निश्चित अवधि में भुगतान की सुविधा वाला यूजेन्स ऋण पत्र जारी करने की सुविधा प्रदान की है। 

यूजेन्स ऋण पत्र क्या है? 

यूजेन्स (या स्थगित) ऋण पत्र विशिष्ट प्रकार के ऋण पत्र हैं जो ऋण पत्र में उल्लिखित शर्तों को पूरा करने के पश्चात् पूर्व निर्धारित समयावधि अथवा भविष्य में देय होते हैं। इस पसंदीदा वित्तीय साधन में क्रेता और विक्रेता के बीच विश्वास प्रमुख तत्त्व होता है। • 

ऋण पत्र (लेटर ऑफ क्रेडिट) में ऋण परिपक्वता और वास्तविक भुगतान की अवधि निर्धारित कर दी जाती है। इसका दोनों पक्षों द्वारा संदर्भ के रूप में उपयोग किया जाता है। 

न्यूजेन्स ऋण पत्र के लाभ  

1. यह क्रेता के लिये एक लचीला वित्तीय उपकरण है जो उसकी कार्यशील पूंजी में वृद्धि करने के साथ ही विक्रेता को भुगतान किये जाने से पहले ही बेचने के लिये स्टॉक की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। 
• खरीदार को ब्याज मुक्त कार्यशील पूंजी मिलने तथा कुशल कार्यशील पूंजी प्रबंधन से पूंजी चक्र को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। 

• खरीदार को भुगतान करने से पहले ही माल प्राप्त होने के कारण माल की गुणवत्ता की जाँच हो जाती है। 
• कोल इंडिया लिमिटेड के इस कदम से बिजली क्षेत्र के उपभोक्ताओं को राहत तो मिलेगी ही साथ ही विद्युत प्रणाली में तरलता भी बढ़ाई जा सकेगी। 



यूजेन्स ऋण पत्र की सीमाएँ 

• खरीदार को क्रेडिट अवधि देने से विक्रेता को कार्यशील पूंजी का प्रबंधन करना होता है। 
• यूजेन्स ऋण पत्र का उपयोग आमतौर पर तब किया जाता है जब खरीदार की ऋण साख अधिक हो या वह क्रेता का बाज़ार हो। इस कारण विक्रेता यूजेन्स ऋण पत्र की उदार शर्तों के लिये सहमत हो जाता है। 


राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन

 चर्चा में क्यों? 

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने ₹1480 करोड के कुल परिव्यय के साथ देश को तकनीकी वस्त्रों के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की दष्टि से राष्टीय तकनीकी वस्त्र मिशन के गठन को अपनी स्वीकृति दी है। इस मिशन की कार्यान्वयन अवधि वित्तीय वर्ष 2020-21 से ___2023-24 तक होगी। 

प्रमुख बिंदु 

• इस मिशन के 4 प्रमुख घटक- अनुसंधान, नवाचार और विकासः संवर्द्धन व विपणन विकास; निर्यात संवर्द्धन एवं शिक्षा प्रशिक्षण तथा कौशल विकास होंगे। इसकी शुरुआत देश के विभिन्न मिशनों, कार्यक्रमों आदि में तकनीकी कपड़ों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर स्टार्टअप एवं वेंचर को प्रोत्साहन के साथ नवाचार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई है। साथ ही क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित विशेषज्ञ की अध्यक्षता में कपड़ा मंत्रालय में एक मिशन निदेशालय चालू किया जाएगा। कृषि-टेक्सटाइल, जियो-टेक्सटाइल और चिकित्सा वस्त्रों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिये जैव-अपघटनीय तकनीकी वस्त्रों का निर्माण किया जाएगा। तकनीकी वस्त्रों के लिये स्वदेशी मशीनरी और उपकरणों के विकास से 'मेक इन इंडिया' की भावना को बढ़ावा मिलेगा, और कम पूंजीगत लागत के माध्यम से वस्त्र उद्योग को प्रतिस्पर्धात्मक बनाया जा सकेगा। उन्नत देशों में 30-70% की तुलना में भारत में तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन का स्तर महज 5-10% है। इस मिशन का उद्देश्य देश में तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन स्तर में सुधार करना है। सरकार द्वारा किये गए अन्य प्रयास 

• तकनीकी वस्त्रों के लिये राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी मिशन को 5 वर्ष (2010-11 से 2014-15) की अवधि के लिये शुरू किया गया था, जिसे बाद में वर्ष 2017 तक बढ़ाया गया। संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (ATUFS) के अंतर्गत सरकार ने निर्दिष्ट तकनीकी कपड़ा मशीनरी पर 15% पूंजीगत सब्सिडी और 5% ब्याज प्रतिपूर्ति का प्रावधान किया है। इसके अतिरिक्त एक ऑनलाइन ट्रैकिंग प्लेटफॉर्म 1-Tufs' भी हितधारकों की सुविधा के लिये शुरू किया गया है। इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FD) को आकर्षित करने के लिये विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) का निर्माण किया गया है। वर्तमान में भारत में वस्त्रों पर केंद्रित 14 SEZS हैं। 

तकनीकी वस्त्र क्या है? 

• तकनीकी वस्त्र ऐसे कपड़ा सामग्री और उत्पाद हैं, जो सौंदर्य विशेषताओं की बजाय मुख्य रूप से तकनीकी प्रदर्शन और कार्यात्मक गुणों के लिये निर्मित होते हैं। 

• तकनीकी कपड़ा उत्पादों को उनके इस्तेमाल क्षेत्रों के आधार पर 12 विभिन्न श्रेणियों (एग्रोटेक, बिल्डटेक, क्लोथेक, जियोटेक, होमटेक, इंडिटेक, मोबिलटेक, मेडिक, प्रोटेक, स्पोर्ट्सटेक, ओएकोटेक, पैकटेक) में विभाजित किया गया है। 


भारतीय इस्पात उद्योग

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में 'इस्पात क्लस्टर विकास' (Steel Cluster Development) विषय पर इस्पात मंत्रालय में सांसद की सलाहकार समिति की बैठक का आयोजन किया गया। 

भारतीय इस्पात उद्योगः वर्तमान स्थिति 

• कच्चे इस्पात के उत्पादन में चीन के पश्चात् भारत दूसरे स्थान पर है तथा चीन और अमेरिका के पश्चात् भारत विश्व में तीसरा सबसे बड़ा इस्पात उपभोक्ता है (आर्थिक समीक्षा 2019-2020 )। 

• वर्ष 2011 में जहाँ कुल निर्यात में लौह और इस्पात का हिस्सा 2.7 प्रतिशत था, वहीं यह वर्ष 2019-2020 में बढ़कर 3.0 | प्रतिशत हो गया। (आर्थिक समीक्षा 2019-2020) • वर्ष 2018-19 के दौरान इसकी प्रति व्यक्ति खपत केवल 74.1 किलोग्राम थी (आर्थिक समीक्षा 2019-2020 )। 



भारत में इस्पात क्षेत्र का मूल्य 100 अरब डॉलर से अधिक है और यह GDP में 2% का योगदान देता है।
• यह एक फीडर उद्योग है, जिसके उत्पादों का उपयोग विनिर्माण, ढाँचागत संरचना निर्माण, वाहन उद्योग, मशीनरी, रक्षा, रेल जैसे बड़े क्षेत्रों में प्रमुख इनपुट के रूप में किया जाता है। भिलाई, दुर्गापुर, बर्नपुर, जमशेदपुर, राऊरकेला, बोकारो जैसे सभी महत्त्वपूर्ण इस्पात उत्पादन केंद्र चार राज्यों, यथा-पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में विस्तृत हैं। कर्नाटक में भद्रावती और विजयनगर, आंध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम, तमिलनाडु में सलेम आदि इस्पात केंद्र स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हैं। 

• वर्ष 1991 के पश्चात् आर्थिक सुधारों के अंतर्गत क्षमता निर्माण हेतु लाइसेंस की आवश्यकता को समाप्त करने के साथ ही कुछ स्थानीय प्रतिबंधों को छोड़कर इस्पात उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित उद्योगों की सूची से हटाने के परिणामस्वरूप भारतीय इस्पात उद्योग में प्रतिस्पर्द्धा तथा विकास की गति में वृद्धि हुई। 

• सरकार ने उद्योग में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये स्वचालित मार्ग से 100 प्रतिशत विदेशी इक्विटी निवेश की स्वीकृति प्रदान कर दी है। 

सरकारी पहले 

• चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने तथा आयात को कम करने के उद्देश्य से इस्पात स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति जारी की गई। 
• भारत सरकार द्वारा बुनियादी ढाँचा तथा सड़क परियोजनाओं को शुरू करने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने से इस्पात की मांग को बढ़ावा मिलेगा। राष्ट्रीय इस्पात नीति (NSP) 2017 भारतीय इस्पात उद्योग को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने का लक्ष्य रखती है। इस नीति में 2030-31 तक 300 मिलियन टन (MT) स्टील बनाने की क्षमता अर्जित करने और 160 किलोग्राम प्रति व्यक्ति स्टील की खपत की परिकल्पना की गई है। इस्पात मंत्रालय स्टील रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी मिशन ऑफ इंडिया (SRTMI) की स्थापना के माध्यम से इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास की सुविधा प्रदान करेगा। 

• भारत सरकार द्वारा इस्पात की वस्तुओं पर एंटी-डंपिंग सहित सुरक्षा शुल्क लगाया गया। 

इस्पात क्षेत्र के समक्ष चुनौतियाँ 

• घरेलू मांग की कमी के कारण इस्पात कंपनियाँ बड़े स्तर पर कर्ज से ग्रस्त हैं। धातु शोधन संबंधी (Metallurgical) कोक की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं है। 
• उच्च पूंजी लागत, निम्न प्रौद्योगिकी और सरकार की संरक्षणवादी नीतियों के कारण निवेश की लागत उच्च है। 

• सार्वजनिक क्षेत्र की अधिकांश इकाइयाँ अत्यधिक सामाजिक भार, खराब श्रम संबंधों, अकुशल प्रबंधन, क्षमता के कम आकलन आदि के कारण अक्षमता से ग्रस्त हैं। 

• चीन, कोरिया और अन्य देशों से इसका सस्ता अयात भी घरेलू उत्पादकों के लिये चिंता का विषय है। 
• तालाबंदी, कच्चे माल की कमी, ऊर्जा संकट, अकुशल प्रबंधन आदि कई कारणों से संभावित क्षमता का उपयोग नहीं हो पाया है। दुर्गापुर जैसे इस्पात संयंत्र अपनी क्षमता का केवल 50 प्रतिशत उपयोग कर रहे हैं। इस्पात की मांग में वृद्धि के चलते आयात करने के कारण घरेलू कंपनियों को नुकसान और व्यापार असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होती है। कमजोर ऑटोमोबाइल और विनिर्माण मांग के कारण भारत की इस्पात मांग में वृद्धि की गति धीमी होने की संभावना है। 

भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री की अध्यक्षता में नई दिल्ली में भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण के 8वें स्थापना दिवस का आयोजन किया गया। 

पृष्ठभूमि 

• भारत की अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्याँमार, नेपाल और पाकिस्तान के साथ 15000 किमी. लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा है तथा व्यक्तियों, माल एवं वाहनों की सीमा पार आवाजाही के लिये कई निर्दिष्ट प्रवेश और निकास बिंदु होने के बावजूद सरक्षा. आव्रजन. सीमा शल्क. संयंत्र और पश संगरोध इत्यादि सहित अन्य आवश्यक सुविधाओं, जैसे- वेयरहाउसिंग, पार्किंग, बैंकिंग, विदेशी मुद्रा ब्यूरो का प्रावधान जैसे सरकारी कार्यों के समन्वय के लिये कोई एकल एजेंसी नहीं थी। 

• इसी के मद्देनज़र भूमि बंदरगाह प्राधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण की स्थापना की गई। 

भूमिका 

• सीमा पर एकीकृत चेक पोस्ट पर अनिवार्य सुरक्षा आवश्यकताओं की व्यवस्था करना। 

• एकीकृत चेक पोस्ट पर राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों और रेलवे के अलावा सड़कों, टर्मिनलों एवं सहायक भवनों का निर्माण व रखरखाव करना। 

• एकीकृत चेक पोस्ट पर संचार, सुरक्षा, माल की हैंडलिंग और स्कैनिंग उपकरणों की खरीद, स्थापना व देखभाल करना। आव्रजन, सीमा शुल्क, सुरक्षा, कराधान प्राधिकरण, पशु और संयंत्र संगरोध, गोदामों, कार्गो यार्ड, पार्किंग क्षेत्र , बैंक, डाकघर, संचार सुविधाएँ, पर्यटक सूचना केंद्र, प्रतीक्षालय, कैंटीन, जलपान गृह, स्वास्थ्य सेवाएँ या अन्य आवश्यक सेवाओं के लिये उपयुक्त स्थान और सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना। 
• एकीकृत चेक पोस्ट पर तैनात अपने कर्मचारियों के लिये आवासीय भवनों तथा आवासीय सुविधाओं का निर्माण करना।
 • माल के भंडारण या प्रसंस्करण के लिये गोदामों, कंटेनर डिपो और कार्गो परिसरों की स्थापना और रखरखाव सुनिश्चित करना। 
• एकीकृत चेक पोस्ट पर यात्रियों और अन्य व्यक्तियों के उपयोग के लिये पोस्टल, मनी एक्सचेंज, बीमा और टेलीफोन सुविधाओं की व्यवस्था करना। 
• एकीकृत चेक पोस्ट की सुरक्षा के लिये उचित व्यवस्था करना  और उनके संबंध में संबंधित कानून के अनुसार, वाहनों के प्रवेश और निकास को विनियमित और नियंत्रित करना। भारत सरकार के कानून, सुरक्षा और प्रोटोकॉल के तहत एकीकृत चेक पोस्ट पर वाहनों की आवाजाही और यात्रियों के प्रवेश और निकास, परिवहन कर्मचारियों, हैंडलिंग एजेंटों, समाशोधन और अग्रेषण एजेंटों और माल को नियंत्रित करना। 
• समय-समय पर विभिन्न सीमावर्ती एजेंसियों के बीच समन्वय और उन्हें सुविधा प्रदान करना। एकीकृत चेक पोस्ट एकीकृत चेक पोस्ट (ICP) शत्रुर्तापूर्ण गतिविधियों पर नियंत्रण द्वारा देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने की एक प्रणाली की स्थापना के साथ-साथ व्यापार और वाणिज्य को भी सुविधाजनक बनाने का प्रयास करती है। 





राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र सम्मेलन 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा 28 फरवरी, 2020 से | मार्च, 2020 तक नई दिल्ली में राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र सम्मेलन 11वें संस्करण का आयोजन किया गया। 

मुख्य विशेषताएँ 

• सम्मेलन में कृषि विज्ञान केंद्रों को केवल साधन संपन्न और प्रगतिशील किसानों की सेवा करने की बजाय छोटे, सीमांत और वंचित किसानों पर भी ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया गया। • कृषि विज्ञान केंद्रों को प्रयोगशालाओं के लाभ खेतों तक ले जाने (Lab to Land) की ज़िम्मेदारी निभाने की बात की गई। 
• सम्मेलन में कहा गया कि देश में बेहतर फसल किस्मों को लाया गया तथा किसानों के लिये 171 मोबाइल एप्लीकेशन्स और तीन लाख से अधिक कॉमन सर्विस सेंटर/सार्वजनिक सेवा केंद्र (CSC/सीएससी) खोले जा चुके हैं। सम्मेलन में वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के प्रधानमंत्री के निर्धारित लक्ष्य को दोहराया गया। 

कृषि विज्ञान केंद्र 

• 1974 में पुदुचेरी में स्थापित पहले कृषि विज्ञान केंद्र के पश्चात् दिसंबर 2019 तक कुल 716 कृषि विज्ञान केंद्र स्थापित किये जा चुके हैं। 
• KVKs शत् प्रतिशत भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित है तथा इन्हें कृषि विश्वविद्यालयों, आईसीएआर संस्थानों, संबंधित सरकारी विभागों और कृषि में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों में शुरू किया गया है। 
• ये केंद्र राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (NARS) का एक अभिन्न अंग है। कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में स्थान विशिष्ट प्रौद्योगिकी मॉड्यूल के आकलन पर उद्यमों, प्रौद्योगिकी मूल्यांकन, शोधन और प्रदर्शनों के माध्यम से, कृषि विज्ञान केंद्र कृषि प्रौद्योगिकी के ज्ञान और संसाधन केंद्रों के रूप में कार्य कर रहे हैं। KVKs ज़िले की कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये सार्वजनिक, निजी और स्वैच्छिक क्षेत्रों की पहल का समर्थन करते हैं तथा किसानों को कृषि विस्तारित सेवाएँ उपलब्ध करवाते हैं। KVKs की महत्त्वपूर्ण गतिविधियाँ 
• विभिन्न कृषि प्रणालियों के तहत कृषि प्रौद्योगिकियों की स्थान विशिष्टता का आकलन करने के लिये कृषि परीक्षण। खेतों पर प्रौद्योगिकियों द्वारा उत्पादन क्षमता स्थापित करने के लिये फ्रंटलाइन प्रदर्शनों को व्यवस्थित करना। 
• आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों के अनुसार अपने ज्ञान और कौशल को अपडेट कर किसानों और कर्मियों की क्षमता का विकास करना। 

जिले की कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये सार्वजनिक, निजी और स्वैच्छिक क्षेत्र की पहल का समर्थन करते हुए कृषि प्रौद्योगिकियों के ज्ञान और संसाधन केंद्र के रूप में काम करना। - किसानों के हित के विभिन्न विषयों पर आईसीटी और अन्य ___ मीडिया माध्यमों का उपयोग करते हुए कृषि परामर्श प्रदान करना। कषि विस्तारित सेवा . ग्रामीण आबादी हेतु निर्देशित, एक अनौपचारिक शैक्षणिक प्रक्रिया, जो उनकी समस्याओं को हल करने में मदद के लिये सलाह और जानकारी प्रदान करती है, विस्तार का उद्देश्य पारिवारिक की दक्षता, उत्पादन और परिवार के जीवन स्तर में वृद्धि करना है। 

• कृषि विस्तार का उद्देश्य कृषि संबंधी समस्याओं के प्रति किसानों के दृष्टिकोण को बदलना है। इसका संबंध केवल भौतिक और आर्थिक उपलब्धियों से नहीं, बल्कि स्वयं ग्रामीण लोगों के विकास से भी है। इसलिये विस्तार एजेंट ग्रामीण लोगों के साथ चर्चा करके उनकी समस्याओं के प्रति स्पष्ट अंतर्दृष्टि प्राप्त करते हैं और यह भी तय करते हैं कि इन समस्याओं को कैसे दूर किया जाए। 

• सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी सुविधा कृषि विस्तार, सलाहकार सेवाओं और किसानों तक पहुँचने के लिये बहुत उपयोगी है। 
• IFPRI के अनुसार, कृषि उत्पादकता में वृद्धि कर, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, ग्रामीण आजीविका में सुधार करने और कृषि को आर्थिक विकास के इंजन के रूप में बढ़ावा देने में कृषि विस्तारित 
सेवाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

कृषि में तकनीक की भूमिका 

• विशेष रूप से सेंसर, उपकरण, मशीन और सूचना प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण आधुनिक समय में खेती और कृषि कार्य दशकों पहले की तुलना में अधिक आसान है। आज रोबोट, तापमान और नमी सेंसर, हवाई चित्र और जीपीएस जैसी परिष्कृत तकनीकें कृषि व्यवसाय को अधिक लाभदायक, कुशल, सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल बनाने में मदद करती हैं। 

• किसानों को अब सभी खेतों में एकसमान रूप से पानी, उर्वरक और कीटनाशक देने की ज़रूरत नहीं होती। इसके बजाय वे विशिष्ट क्षेत्रों को लक्षित करते हुए आवश्यक मात्रा में ही इनका उपयोग कर सकते हैं। यहाँ तक कि अलग-अलग फसलों को भी लक्षित कर सकते है। 

• उच्च फसल उत्पादकता, पानी, उर्वरक और कीटनाशकों के उपयोग में कमी से खाद्य कीमतों को कम रखने में मदद मिलती  है

• नदियों और भूजल में उर्वरक व रसायनों के कम प्रवाह से प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को सुरक्षित रखा जा सकता है। 
• इसके अलावा रोबोटिक प्रौद्योगिकियाँ प्राकृतिक संसाधनों, जैसे-हवा और पानी की गुणवत्ता पर अधिक विश्वसनीय निगरानी और प्रबंधन में मदद करती हैं। 





पूर्वी समर्पित माल गलियारा 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व बैंक ने पूर्वी समर्पित माल गलियारा (Eastern Dedicated Freight Corridor-EDFC) के अंतिम खंड के निर्माण के लिये वित्त प्रदान करने का प्रस्ताव दिया है। 


परियोजना के बारे में
 
• समर्पित माल गलियारा (DFC) कार्यक्रम के हिस्से के रूप में इस परियोजना के अंतर्गत पंजाब राज्य में लुधियाना से पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के पास दनकुनी तक फैली एक 1,856 किमी लंबी फ्रेट लाइन का निर्माण करना शामिल 

• समर्पित माल गलियारों के निर्माण, संचालन और रखरखाव के लिये भारतीय रेल मंत्रालय द्वारा स्थापित एक स्पेशल पर्पज व्हिकल (SPV) डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (DFCCIL) द्वारा परियोजना को कार्यान्वित किया जा रहा 

• पश्चिम बंगाल से शुरू होकर पंजाब में समाप्त होने से पहले झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से गुजरने वाली EDFC परियोजना का मुख्य उद्देश्य पूर्वी गलियारे पर माल ढुलाई व्यवस्था को मज़बूत करना है। पश्चिमी समर्पित माल गलियारा 
• यह एक ब्रॉड गेज कॉरिडोर है, जो उत्तर प्रदेश के दादरी से शुरू होकर देश के सबसे बड़े कंटेनर बंदरगाह, जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह, मुंबई तक 1,504 किलोमीटर की लंबाई में विस्तृत है। 
• जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी द्वारा आर्थिक साझेदारी के लिये विशेष शर्तों (एसटीईपी) के तहत परियोजना को 4 बिलियन डॉलर के उदार ऋण द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा। 
• यह वडोदरा, अहमदाबाद, पालनपुर, फुलेरा और रेवाड़ी जैसे  महत्त्वपूर्ण स्थानों से होकर गुजरता है। 
• पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र इसके मार्ग में पड़ते हैं। 

डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (DFCCIL) • DFCCIL रेल मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा संचालित एक निगम है, जो नियोजन और विकास कार्यों की देखभाल करने, वित्तीय संसाधनों को जुटाने और समर्पित माल गलियारों के निर्माण, रखरखाव और संचालन का कार्य करता है। कंपनी अधिनियम 1956 के तहत DFCCIL को 30 अक्तूबर, 2006 को एक कंपनी के रूप में पंजीकृत किया गया है। 



• यह उचित प्रौद्योगिकी के साथ एक माल गलियारा बनाने में भारतीय रेलवे के लिये अतिरिक्त क्षमता अर्जित कर रेलवे यात्रियों को लिये कुशल, विश्वसनीय, सुरक्षित और सस्ते विकल्प की गारंटी 
देता है। 
• ग्राहकों को संपूर्ण परिवहन समाधान प्रदान करने के साथ ही DFCCIL मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक पार्क स्थापित करने का काम भी करता है। 
• उपयोगकर्ताओं को उनकी परिवहन आवश्यकताओं के लिये रेलवे को पर्यावरण के अनुकूल रूप में अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर यह पारिस्थितिक स्थिरता की दिशा में सरकार की पहल का समर्थन करता है। 


दीर्घावधि रेपो परिचालन 

चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मौद्रिक नीति की कार्रवाइयों के प्रसारण और अर्थव्यवस्था में ऋण के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने के लिये दीर्घकालिक रेपो परिचालन (Long Term Repo Operation-LTRO) शुरू करने का निर्णय लिया है। 

प्रमुख बिंदु 

• RBI द्वारा शुरू किये गए ऑपरेशन ट्विस्ट (Operation Twist) के साथ यह नया उपाय केंद्रीय बैंक द्वारा बॉण्ड यील्ड के प्रबंधन और ब्याज दर में कटौती के पुश ट्रांसमिशन के लिये एक प्रयास 

• ध्यातव्य है कि RBI ने इससे पहले ब्याज दरों को नीचे लाने के लिये अमेरिकी तर्ज पर 'ऑपरेशन ट्विस्ट (Operation Twist)' को शुरू किया है। 

क्या है दीर्घावधि रेपो परिचालन? • 

LTRO एक ऐसा उपकरण है, जिसके तहत केंद्रीय बैंक प्रचलित रेपो दर पर बैंकों को एक साल से तीन साल की अवधि के लिये ऋण प्रदान करता है तथा कोलेटरल के रूप में सरकारी प्रतिभूतियों को लंबी अवधि के लिये स्वीकार करता है। 

• RBI तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility- LAF) और सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF) के माध्यम से बैंकों को उनकी तत्काल जरूरतों के लिये 1-28 दिनों हेतु ऋण मुहैया कराता है, जबकि LTRO के माध्यम से 1 से 3 वर्ष के लिये ऋण उपलब्ध कराएगा। 

यह महत्त्वपूर्ण क्यों है?

 • RBI ने बाजार की मौजूदा परिस्थितियों में उचित लागत पर टिकाऊ 
तरलता उपलब्धता के बारे में बैंकों को आश्वस्त करने एवं उत्पादक क्षेत्रों में ऋण प्रवाह को बढ़ाने के लिये बैंकों को परिपक्वता परिवर्तन को सुचारू और निर्बाध रूप से आगे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित के उद्देश्य से LTRO की शुरुआत की है। 



देश में आर्थिक मंदी से निपटने के लिये RBI लगातार आसान वित्त नीतियों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को उत्प्रेरित करने का प्रयास  कर रहा है।

 • जनवरी 2019 से रेपो रेट (जिस दर पर बैंक RBI से त्वरित धन उधार लेते हैं) में कटौती की गई, लेकिन इन दरों में कटौती का बहुत कम लाभ अभी तक बैंकों और अन्य उधारदाताओं द्वारा उधार प्राप्तकर्ताओं प्रदान किया गया है। 

 RBI का मानना है कि रेपो दर (5.15 फीसदी) पर बैंकों को लंबी अवधि के लिये धन का उपलब्ध कराने से उन्हें अपने मार्जिन को बनाए रखते हुए खुदरा और औद्योगिक ऋणों पर दरों को कम करने में मदद मिल सकती है। | LTRO बॉण्ड मार्केट में अल्पावधि की प्रतिभूतियों (1-3 वर्ष की अवधि) के लिये यील्ड (Yield) कम करने में भी मदद करेगा। 

संभावित लाभ 

• RBI द्वारा रेपो रेट में कमी करने के बावजूद बैंक उसका लाभ ऋण प्राप्तकर्ताओं को नहीं दे रहे थे किंतु अब दीर्घावधि के लिये ऋण प्राप्त होने से बैंक आसानी से ऋण प्रदान कर सकते हैं। 

• ऋण तक आसान पहुँच के कारण उपभोग में वृद्धि की जा सकेगी, जो कि वर्तमान आर्थिक सुस्ती का सबसे बड़ा कारण बना हुआ है। 

• यह एक ऐसा उपाय है जिस पर बाज़ार सहभागियों को उम्मीद है कि यह अल्पकालिक दरों को कम करेगा और कॉपोरेट बॉण्ड में निवेश को भी बढ़ावा देगा। 

ILO रिपोर्ट 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (UN International Labour Organization-ILO) ने विश्व रोजगार और सामाजिक दृष्टिकोण रुझान रिपोर्ट (World Employment and Social Outlook Trends Report- WESO Trends Report), 2020 प्रकाशित की है। 

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु 

 रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक बेरोज़गारी में लगभग 2.5 मिलियन की वृद्धि का अनुमान है। • गौरतलब है कि पिछले 9 वर्षों में वैश्विक बेरोज़गारी में स्थिरता की स्थिति बनी हुई थी किंतु धीमी वैश्विक विकास गति के कारण बढ़ते श्रमबल के अनुपात में रोज़गार का सृजन नहीं हो पा रहा है। 

• रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में बेरोजगारों की संख्या लगभग 188 मिलियन है। इसके अलावा लगभग 165 मिलियन लोगों के पास पर्याप्त आय वाला रोज़गार नहीं है और लगभग 120 मिलियन लोग या तो सक्रिय रूप से काम की तलाश में हैं या श्रम बाज़ार तक पहँच से दूर हैं। इस प्रकार विश्व में लगभग 470 मिलियन लोग रोज़गार की समस्या से परेशान हैं। 

हाल ही में अर्थव्यवस्था पर जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि विकसित देशों की विकास दर धीमी है और कुछ अफ्रीकी देशों की विकास दर स्थिर है। परिणामत: बढ़ती श्रम शक्ति को उपयोग में लाने के लिये पर्याप्त मात्रा में नई नौकरियाँ सृजित नहीं हो पा रही हैं। इसके अलावा कई अफ्रीकी देश वास्तविक आय में गिरावट और गरीबी में वृद्धि का सामना कर रहे हैं। । ध्यातव्य है कि वर्तमान में कार्यशील गरीबी (क्रय शक्ति समता शर्तों में प्रतिदिन 3.20 अमेरिकी डॉलर से कम आय के रूप में परिभाषित) वैश्विक स्तर पर कार्यशील आबादी के 630 मिलियन से अधिक या पाँच में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है। 
• लिंग, आयु और भौगोलिक स्थिति से संबंधित असमानताएँ रोज़गार बाज़ार को प्रभावित करती हैं। रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि ये कारक व्यक्तिगत अवसर और आर्थिक विकास दोनों को सीमित करते हैं। 
• 15-24 वर्ष की आयु के कुल 267 मिलियन युवा रोज़गार, शिक्षा या प्रशिक्षण में संलग्न नहीं हैं तथा इससे अधिक संख्या में लोग कार्य संबंधी खराब परिस्थितियों में भी कार्य कर रहे हैं। 

• व्यापार प्रतिबंध और संरक्षणवाद में वृद्धि रोज़गार पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। उत्पादन के कारकों की तुलना में मजदूरी के रूप में प्राप्त आय में महत्त्वपूर्ण गिरावट आई है। 
• वार्षिक WESO ट्रेंड रिपोर्ट में श्रम बाज़ार के प्रमुख मुद्दों का विश्लेषण किया गया है जिसमें बेरोज़गारी, श्रम का अभाव, कार्यशील गरीबी, आय असमानता, श्रम-आय हिस्सेदारी जैसे कारक प्रतिभा के अनुरूप रोज़गार प्राप्त करने में बाधा पहुंचाते हैं। आर्थिक विकास की वर्तमान गति और स्वरूप गरीबी को कम करने एवं निम्न आय वाले देशों में कार्य संबंधी परिस्थितियों में सुधार की दिशा में सबसे बड़ी बाधा हैं। रिपोर्ट के निहितार्थ 

• ILO की इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020-2030 के बीच विकासशील देशों में मध्यम या चरम कार्यशील गरीबी बढ़ने की उम्मीद है, जिससे वर्ष 2030 तक गरीबी उन्मूलन पर सतत् विकास लक्ष्य 1 को प्राप्त करने में बाधा आएगी। 

• श्रम की कमी और खराब गुणवत्ता वाली नौकरियाँ यह दर्शाती हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था और समाज मानव प्रतिभा के संभावित लाभों से वंचित हो रहे हैं। बढ़ती बेरोज़गारी से वैश्विक स्तर पर लोगों की आय क्षमता पर प्रभाव पड़ने से आय असमानता में वृद्धि होगी। नए उपलब्ध डेटा के अनुसार वैश्विक श्रम आय (Global Labour Income) का वितरण अत्यधिक असमान है। रोज़गार के सीमित अवसर लोगों को अधिक मात्रा में अनौपचारिक क्षेत्रों एवं सामाजिक सुरक्षा रहित कार्यों को अपनाने के लिये प्रेरित करेंगे। साथ ही आपराधिक प्रवृत्तियों जैसे- चोरी, डकैती इत्यादि को भी बढ़ावा देंगे। 

भारत में बेरोज़गारी 

• CMIE की अक्तूबर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शहरी बेरोज़गारी दर 8.9% और ग्रामीण बेरोज़गारी दर 8.3% अनुमानित है। 

 राज्य स्तर पर सबसे अधिक बेरोज़गारी दर त्रिपुरा (27%), हरियाणा (23.4%) और हिमाचल प्रदेश (16.7) में आँकी गई। 
• जबकि सबसे कम बेरोज़गारी दर तमिलनाडु (1.1%), पुडुचेरी (1.2%) और उत्तराखंड (1.5%) में अनुमानित है। 




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