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भारतीय संविधान और राजव्यवस्था भारतीय संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारतीय संविधान और राजव्यवस्था एम. लक्ष्मीकांत बुक का सार  ( INDIAN POLITY M LAXMIKANT SUMMARY)

चैप्टर वन - भारतीय संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि


भारत में ब्रिटिश- 1600  ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में, व्यापार करने आए महारानी एलिजाबेथ प्रथम के चार्टर द्वारा- भारत में व्यापार करने के विस्तृत अधिकार प्राप्त  थे कंपनी के कार्य सिर्फ व्यापारिक कार्यों तक ही सीमित थे ,  ने 1765 में बंगाल बिहार और उड़ीसा की दीवानी(अर्थात राजस्व और दीवानी न्याय के अधिकार) प्राप्त कर लिए

क्षेत्रीय शक्ति बनने की प्रक्रिया प्रारंभ

1858 ईस्वी में सिपाही विद्रोह- ब्रिटिश राज ने भारत के शासन का उत्तरदायित्व प्रत्यक्ष अतः अपने हाथ में लिया

यह शासन 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक जारी रहा

1934 में M.N.ROY ( भारत में साम्यवादी आंदोलन के प्रणेता) के  दिए गए सुझाव को अमल में लाने के उद्देश्य से 1946 में एक संविधान सभा का गठन

 26 जनवरी 1950 को संविधान अस्तित्व में आया

संविधान और राज व्यवस्था की अनेक विशेषताएं ब्रिटिश शासन से ग्रहण की गई थी 

ब्रिटिश शासित भारत में  घटित घटनाओं ने संविधान और राज व्यवस्था पर पर गहरा प्रभाव छोड़ा इन घटनाओं का क्रम-


 कंपनी का शासन (1773 -1858)तक


1773 का रेगुलेटिंग एक्ट

भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया या पहला कदम था

पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनीतिक कार्यों को मान्यता मिली

 केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गई भारत में


 अधिनियम की विशेषताएं

बंगाल का गवर्नर - बंगाल का गवर्नर जनरल( उसकी सहायता के लिए एक चार सदस्य कार्यकारी परिषद का गठन)

 पहले गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग थे

 मद्रास और मुंबई के गवर्नर बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन

 कोलकाता में 1774 में एक SUPREME COURT की स्थापना जिसमें मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे

 कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित

  ब्रिटिश सरकार का कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त

  इसे भारत में इसके राजस्व , नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया


 1781 का एक्ट- 1773 के एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए


 1784 पिट्स इंडिया एक्ट

कंपनी के राजनीतिक और वाणिज्य कार्यों को अलग कर दिया गया

 निदेशक मंडल को कंपनी के व्यापारिक मामलों के अधीक्षण की अनुमति ,लेकिन राजनीतिक मामलों के प्रबंधन के लिए नियंत्रण बोर्ड नाम से एक नए निकाय का गठन इस प्रकार द्वैध शासन की व्यवस्था का शुभारंभ किया गया

 नियंत्रण बोर्ड को यह शक्ति थी कि वह ब्रिटिश नियंत्रित भारत में सभी नागरिक, सैन्य सरकार व  राजस्व गतिविधियों का अधीक्षण और नियंत्रण करें

अधिनियम दो कारणों से महत्वपूर्ण

 पहला भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र कहा गया

 दूसरा, ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्यों और इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया



1833 का चार्टर अधिनियम

 ब्रिटिश भारत के केंद्रीकरण की दिशा में यह अधिनियम निर्णायक कदम था


अधिनियम की विशेषताएं

 बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया जिसमें सभी नागरिक और सैन्य शक्तियां  

 पहली बार एक ऐसी सरकार का निर्माण- जिसका ब्रिटिश कब्जे वाले संपूर्ण भारतीय क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण

 लॉर्ड विलियम बैंटिक- भारत के पहले गवर्नर जनरल-पूरे ब्रिटिश भारत में ( विधायिका के असीमित अधिकार) 

व्यापारिक निकाय के रूप में की जाने वाली गतिविधियां समाप्त, विशुद्ध रूप से प्रशासनिक निकाय 

सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन शुरू करने का प्रयास 

इसमें कहा गया की कंपनी में भारतीयों को किसी पद ,कार्यालय और रोजगार को हासिल करने से वंचित नहीं किया जाएगा कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स के विरोध के कारण प्रावधान समाप्त


1853 का चार्टर अधिनियम


 पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद की विधायी और प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया 

परिषद में छह नए पार्षद और जोड़े गए

इन्हें विधान पार्षद कहा गया दूसरे शब्दों में गवर्नर जनरल के लिए नई विधान परिषद का गठन जिसे भारतीय केंद्रीय विधान परिषद कहा गया परिषद की इस शाखा ने छोटी संसद की तरह कार्य किया विधायिका को पहली बार सरकार के विशेष कार्य के रूप में जाना गया जिसके लिए विशेष मशीनरी और प्रक्रिया की जरूरत थी


सिविल सेवकों की भर्ती और चयन के लिए खुली प्रतियोगिता व्यवस्था का शुभारंभ

विशिष्ट सिविल सेवा भारतीय नागरिकों के लिए खोल दी गई 

पहली बार भारतीय केंद्रीय विधान परिषद में स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रारंभ किया

गवर्नर जनरल की परिषद में 6 नए सदस्यों में से चार का चुनाव बंगाल मद्रास मुंबई और आगरा की स्थानीय प्रांतीय सरकारों द्वारा किया जाना था


 ताज का शासन (1858 से 1947 तक)


 1858 का भारत शासन अधिनियम

इस कानून का निर्माण 1857 के विद्रोह के बाद किया गया भारत के शासन को अच्छा बनाने वाला अधिनियम के नाम से प्रसिद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया 

गवर्नर, क्षेत्रों और राजस्व संबंधी शक्तियां ब्रिटिश राजशाही को हस्तांतरित


अधिनियम की विशेषताएं

भारत का शासन सीधे महारानी विक्टोरिया के अधीन

 गवर्नर जनरल का पद नाम बदलकर भारत का वायसराय

 वायसराय ब्रिटिश ताज का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि

 लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय

 नियंत्रण बोर्ड और निदेशक कोर्ट समाप्त कर भारत में द्वैध प्रणाली समाप्त

 एक नए पद भारत के राज्य सचिव का सृजन जिसमें भारतीय प्रशासन पर संपूर्ण नियंत्रण की शक्ति

यह सचिव ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य था और ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदाई था

 इसकी सहायता के लिए 15 सदस्य परिषद का गठन किया गया जो कि एक सलाहकार समिति थी इस परिषद का अध्यक्ष भारत सचिव को बनाया गया

 यह परिषद एक निगमित निकाय थी जिसे भारत और इंग्लैंड में मुकदमा करने का अधिकार था इस पर भी मुकदमा किया जा सकता था

1858 के कानून का प्रमुख उद्देश्य

 प्रशासनिक मशीनरी में सुधार जिसके माध्यम से इंग्लैंड में भारत सरकार का अधीक्षण और उसका नियंत्रण हो सकता था

 भारत में प्रचलित शासन प्रणाली में कोई विशेष परिवर्तन नहीं


1861,1892,1909के भारत परिषद अधिनियम

अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने महसूस किया कि भारत में शासन चलाने के लिए भारतीयों का सहयोग लेना आवश्यक है

 इस सहयोग नीति के तहत ब्रिटिश संसद ने1861,1892,1909के  तीन अधिनियम पारित किए


1861 का भारत परिषद अधिनियम


 कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत 

वायसराय  विस्तारित परिषद में कुछ भारतीयों को गैर सरकारी सदस्यों के रूप में नामांकित कर सकता था

1862 मैं लॉर्ड कैनिंग नहीं तीन भारतीयों

 बनारस के राजा,  पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया

और मुंबई प्रेसिडेंसी को विधाई शक्तियां  पुनः मिली इस प्रकार इस अधिनियम ने रेगुलेटिंग एक्ट1773  द्वारा शुरू हुई केंद्रीकरण की प्रवृत्ति को उलट दिया 

1937 तक प्रांतों को संपूर्ण आंतरिक स्वायत्तता हासिल हो गई

 बंगाल उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत और पंजाब में क्रमशः1862,1866,1897 में विधान परिषदों का गठन हुआ

लॉर्ड कैनिंग  द्वारा1859  में प्रारंभ की गई portfolio प्रणाली को भी मान्यता दीजिसके तहत वायसराय की परिषद का एक सदस्य एक या अधिक सरकारी विभागों का प्रभारी बनाया जा सकता था तथा उसे इस विभाग में काउंसिल की ओर से अंतिम आदेश पारित करने का अधिकार था

 वायसराय को आपातकाल में बिना काउंसिल की संस्तुति के अध्यादेश जारी करने के लिए अधिकृत किया ऐसे अध्याय देश की अवधि मात्र 6 महीने होती थी


1892का अधिनियम


 केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में अतिरिक्त( गैर सरकारी) सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई 

बहुमत सरकारी सदस्यों का

विधान परिषदों के कार्यों में वृद्धि कर उन्हें बजट पर बहस करने और कार्यपालिका के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए अधिकृत किया

 केंद्रीय विधान परिषद और बंगाल चेंबर ऑफ कॉमर्स में गैर सरकारी सदस्यों के नामांकन के लिए वायसराय की शक्तियों का प्रावधान था

 प्रांतीय विधान परिषदों में गवर्नर को जिला परिषद ,नगर पालिका ,विश्वविद्यालय ,व्यापार संघ, जमीदारों और चेंबर ऑफ कॉमर्स की सिफारिशों पर गैर सरकारी सदस्यों को नियुक्त करने की शक्ति थी

केंद्रीय और प्रांतीय विधान  परिषदों दोनों में गैर सरकारी सदस्यों की नियुक्ति के लिए एक सीमित और परोक्ष रूप से चुनाव का प्रावधान

 चुनाव शब्द का अधिनियम में प्रयोग नहीं


1909  का अधिनियम


 मार्ले मिंटो सुधार( लॉर्ड मार्ले इंग्लैंड में भारत के राज्य सचिव और लॉर्ड मिंटो भारत में वायसराय)

केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों  के आकार में काफी वृद्धि की केंद्रीय परिषद में इनकी संख्या16  से 60 हो गई

 प्रांतीय विधान परिषदों में इनकी संख्या एक समान नहीं थी

 केंद्रीय परिषद में सरकारी बहुमत को बनाए रखा लेकिन प्रांतीय परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों के बहुमत की अनुमति थी

 विधान परिषदों के चर्चा कार्यों का दायरा बढ़ाया जैसे अनुपूरक प्रश्न पूछना बजट पर संकल्प रखना आदि

 पहली बार किसी भारतीय को वायसराय और गवर्नर की कार्यकारी परिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया

 सत्येंद्र प्रसाद सिंहा वायसराय की कार्यपालिका परिषद के पहले भारतीय सदस्य बने उन्हें विधि सदस्य बनाया गया

 पृथक निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान जिसके अंतर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे

 सांप्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की गई

 लॉर्ड मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचन के जनक के रूप में जाना गया

 प्रेसिडेंसी कारपोरेशन, चेंबर ऑफ कॉमर्स, विश्वविद्यालयों और जमीदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान भी


1919  का भारत शासन अधिनियम


 20 अगस्त 1917- ब्रिटिश सरकार ने पहली बार घोषित किया कि उसका उद्देश्य भारत में क्रमिक रूप से उत्तरदाई सरकार की स्थापना करना था

1919  में भारत शासन अधिनियम बनाया गया जो 1921 से लागू हुआ

मोंटेग चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है( मोंटेग भारत के राज्य सचिव थे, चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय)


 विशेषताएं


 केंद्रीय और प्रांतीय विषयों की सूची की पहचान कर उन्हें अलग कर राज्यों पर केंद्रीय नियंत्रण कम किया गया

 केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों को अपनी सूचियों के विषयों पर विधान बनाने का अधिकार प्रदान किया गया लेकिन सरकार का ढांचा केंद्रीय और एकात्मक ही बना रहा


 प्रांतीय विषयों को पुनः दो भागों में विभक्त किया-  हस्तांतरित और आरक्षित

 हस्तांतरित विषय पर गवर्नर का शासन होता था और इस कार्य में वह उन मंत्रियों की सहायता लेता था जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदाई थे


 आरक्षित विषय पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदाई नहीं थी

शासन की इस दोहरी व्यवस्था को द्वैध शासन व्यवस्था कहा गया यह व्यवस्था

 अधिनियम ने पहली बार देश में द्विसदनीय व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था प्रारंभ की

 भारतीय विधान परिषद के स्थान पर द्विसदनीय व्यवस्था यानी राज्यसभा और लोकसभा का गठन किया गया दोनों सदनों के बहुसंख्यक सदस्यों को प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से निर्वाचित किया जाता था


 वायसराय की कार्यकारी परिषद के 6 सदस्यों में से (commander-in-chief) को छोड़कर  3 सदस्यों का भारतीय होना आवश्यक था

 इसमें सांप्रदायिक आधार पर  भारतीय ईसाईयों, सिक्ख,  आंग्ल  भारतीयों और  यूरोपियों के लिए भी अलग निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया

 संपत्ति कर या शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया

 लंदन में भारत के उच्चायुक्त के कार्यालय का सर्जन किया और अब तक भारत सचिव द्वारा किए जा रहे कुछ कार्यों को उच्च युक्त को स्थानांतरित

 एक लोक सेवा आयोग का गठन

 1926 में सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केंद्रीय लोक सेवा आयोग का गठन किया गया

 पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया और राज्य विधानसभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने के लिए अधिकृत कर दिया

 एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया जिसका कार्य 10 वर्ष बाद जांच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था


 साइमन आयोग


नवंबर 1927 में( निर्धारित समय से 2 वर्ष पहले) नए संविधान में भारत की स्थिति का पता लगाने के लिए सर जॉन साइमन के नेतृत्व में 7 सदस्यीय वैधानिक आयोग के गठन की घोषणा

 आयोग के सभी सदस्य ब्रिटिश थे इसलिए सभी दलों ने इसका बहिष्कार किया

 1930 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की तथा द्वैध शासन प्रणाली, राज्यों में सरकारों का विस्तार, ब्रिटिश भारत के संघ की स्थापना और सांप्रदायिक निर्वाचन व्यवस्था को जारी रखने आदि की सिफारिशें की


आयोग के प्रस्तावों पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश सरकार कामा ब्रिटिश भारत और भारतीय रियासतों के प्रतिनिधियों के साथ तीन गोलमेज सम्मेलन किए

 इन सम्मेलनों में हुई चर्चा के आधार पर ‘संवैधानिक सुधारों पर एक श्वेत पत्र’ तैयार किया गया कामा जिसे विचार के लिए ब्रिटिश संसद की संयुक्त प्रवर समिति के समक्ष रखा गया

 इस समिति की सिफारिशों को (कुछ संशोधनों के साथ) भारत परिषद अधिनियम 1935 में शामिल कर दिया गया


 सांप्रदायिक अवार्ड


 ब्रिटिश प्रधानमंत्री रामजी मैकडॉनल्ड ने अगस्त 1932 में अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व पर एक योजना की घोषणा की

 इसे कम्युनल अवार्ड व सांप्रदायिक अवार्ड के नाम से जाना गया

 ना सिर्फ मुस्लिम सिख ईसाई यूरोपियन और आंग्ल भारतीयों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था का विस्तार किया बल्कि इसे दलितों के लिए भी विस्तारित कर दिया गया

दलितों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था से गांधीजी ने इसमें संशोधन के लिए पुणे की यरवदा जेल में अनशन प्रारंभ कर दिया

 कांग्रेस नेताओं और दलित नेताओं के बीच एक समझौता हुआ जिसे पूना समझौता के नाम से जाना गया इसमें संयुक्त ने हिंदू निर्वाचन व्यवस्था को बनाए रखा गया और दलितों के लिए स्थान भी आरक्षित कर दिए गए


 1935  का भारत शासन अधिनियम


 अधिनियम भारत में पूर्ण उत्तरदाई सरकार के गठन में एक मील का पत्थर साबित हुआ

 जिसमें 321 धाराएं और 10 अनुसूचियां थी

 विशेषताएं

 अखिल भारतीय संघ की स्थापना जिसमें राज्य और  रियासतों को एक इकाई की तरह माना गया

 केंद्र और इकाइयों के बीच तीन सूचियों- संघीय सूची(59  विषय), राज्य सूची(54 विषय) और समवर्ती सूची( दोनों के लिए,36 विषय) के आधार पर शक्तियों का बंटवारा कर दिया

 अवशिष्ट शक्तियां वायसराय को दे दी गई

 यह संघीय व्यवस्था कभी अस्तित्व में नहीं आई क्योंकि देसी रियासतों ने इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया था

प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था समाप्त, प्रांतीय स्वायत्तता का शुभारंभ

 राज्यों को अपने दायरे में रहकर स्वायत्त तरीके से तीन पृथक क्षेत्रों में शासन करने का अधिकार

  राज्यों में उत्तरदाई सरकार की स्थापना यानी गवर्नर को राज्य विधान परिषदों के लिए उत्तरदाई मंत्रियों की सलाह पर काम करना आवश्यक था यह व्यवस्था 1937 में शुरू की गई और 1939 में इसे समाप्त कर दिया गया

 केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली का शुभारंभ, संघीय विषयों को स्थानांतरित और आरक्षित विषयों में विभक्त करना पड़ा हालांकि यह प्रावधान कभी लागू नहीं हो सका

 11 राज्यों में से 6 में द्विसदनीय व्यवस्था प्रारंभ- बंगाल, मुंबई, मद्रास, बिहार, संयुक्त प्रांत और असम में द्विसदनीय विधान परिषद और विधानसभा बन गई हालांकि इन पर कई प्रतिबंध थे

दलित जातियों महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था कर सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था का विस्तार

 भारत शासन अधिनियम,1858 द्वारा स्थापित भारत परिषद को समाप्त कर दिया

 मताधिकार का विस्तार लगभग 10% जनसंख्या को मत कार्यकाल मिल गया

 देश की मुद्रा और साख पर नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई

 संघ लोक सेवा आयोग की स्थापना की प्रांतीय सेवा आयोग और दो या दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त सेवा आयोग की स्थापना भी की

 1937  मैं संघीय न्यायालय की स्थापना


 भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947


 20 फरवरी 1947- ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली  की घोषणा- 30 जून 1947 को भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हो जाएगा  इसके बाद सत्ता उत्तरदाई भारतीय हाथों में सौंप दी जाएगी

 इस घोषणा पर मुस्लिम लीग ने आंदोलन किया और भारत के विभाजन की बात कही

 3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार ने फिर स्पष्ट किया की 1946 में गठित संविधान सभा द्वारा बनाया गया संविधान उन क्षेत्रों में लागू नहीं होगा ,जो इसे स्वीकार नहीं करेंगे

3 जून 1947 को ही वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने विभाजन की योजना पेश की जिसे माउंटबेटन योजना कहा गया

 इस योजना को कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने स्वीकार कर लिया इस प्रकार भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 बनाकर उसे लागू कर दिया गया


 अधिनियम की विशेषताएं

 भारत में ब्रिटिश राज समाप्त

 15 अगस्त, 1947 को इसे स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र घोषित

 भारत का विभाजन दो स्वतंत्र   डोमिनियन में- संप्रभु राष्ट्र भारत और पाकिस्तान का सृजन, जिन्हें ब्रिटिश राष्ट्रमंडल से अलग होने की स्वतंत्रता थी

 वायसराय का पद समाप्त उसके स्थान पर दोनों डोमिनियन राज्यों में गवर्नर जनरल पद का सृजन किया जिनकी नियुक्ति ने राष्ट्र की कैबिनेट की सिफारिश पर ब्रिटिश ताज को करनी थी इन पर ब्रिटेन की सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होना था

 दोनों डोमिनियन राज्य विधानसभाओं को अपने देशों का संविधान बनाने और उसके लिए किसी भी देश को संविधान को अपनाने की शक्ति थी 

ब्रिटेन में भारत सचिव का पद समाप्त इसकी सभी शक्तियां राष्ट्रमंडल मामलों के राज्य सचिव को स्थानांतरित

 15 अगस्त 1947 से भारतीय रियासतों पर ब्रिटिश संप्रभुता की समाप्ति की घोषणा 

ब्रिटिश शासक के नाम पर गवर्नर जनरल को किसी भी विधेयक को स्वीकार करने का अधिकार प्राप्त था

 भारत के गवर्नर जनरल और प्रांतीय गवर्नर ओं को राज्यों का संवैधानिक प्रमुख नियुक्त किया गया इन्हें सभी मामलों पर राज्यों की मंत्रिपरिषद के परामर्श पर कार्य करना होता था

 शाही उपाधि से भारत का सम्राट शब्द समाप्त कर दिया 

 14-15  अगस्त, 1960 मध्य और समस्त शक्तियां दो नए स्वतंत्र डोमिनियन- भारत और पाकिस्तान को स्थानांतरित कर  दी गई

 लॉर्ड माउंटबेटन भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई

 1946 में बनी संविधान सभा को स्वतंत्र भारतीय  डोमिनियन की संसद के रूप में स्वीकार कर लिया गया


तालिका 1.1 


अंतरिम सरकार (1946) 

सदस्य



जवाहरलाल नेहरू


सरदार वल्लभभाई पटेल


डॉ. राजेंद्र प्रसाद 


 जॉन मथाई


जगजीवन राम


सरदार बलदेव सिंह



सी.एच.भाभा


लियाकत अली खां


अब्दुर-रब-निश्तार


आसफ अली


सी. राजगोपालाचारी


आई. आई. चुंदरीगर


गजनफर अली खान


जोगेंद्र नाथ मंडल

धारित विभाग



राष्ट्रमंडल संबंध तथा विदेशी मामले


गृह, सूचना एवं प्रसारण


खाद्य एवं कृषि


उद्योग एवं नागरिक आपूर्ति


श्रम


रक्षा



कार्य, खान एवं ऊर्जा


वित्त


डाक एवं वायु


रेलवे एवं परिवहन


शिक्षा एवं कला


वाणिज्य


स्वास्थ्य


विधि





नोट: अंतरिम सरकार के सदस्य वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य थे वायसराय परिषद का प्रमुख बना रहा, लेकिन जवाहरलाल नेहरू को परिषद का उपाध्यक्ष बनाया गया।


तालिका 1.2


स्वतंत्र भारत का पहला मंत्रिमंडल (1947)



सदस्य


जवाहरलाल नेहरू(S+)



सरदार वल्लभभाई पटेल (S+)


डॉ. राजेंद्र प्रसाद(S)


मौलाना अबुल कलाम आजाद(D)


डॉ. जॉन मथाई(D)


आर.के. षणमुगम शेट्टी(D)


डॉ. बी.आर. अंबेडकर(D)


जगजीवन राम(S)


सरदार बलदेव सिंह(S)


राजकुमारी अमृत कौर(D)


सी.एच. भाभा(D)


रफी अहमद किदवई(D)


डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी(D)


वी.एन. गाडगिल(D)


धारित विभाग


प्रधानमंत्री; राष्ट्रमंडल तथा विदेशी मामले; वैज्ञानिक शोध


गृह, सूचना एवं प्रसारण, राज्यों के मामले


खाद्य एवं कृषि


शिक्षा


रेलवे एवं परिवहन


वित्त


विधि


श्रम


रक्षा


स्वास्थ्य


वाणिज्य


संचार


उद्योग एवं आपूर्ति


कार्य, खान एवं ऊर्जा






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